कोरोना काल में जिस तरह से प्रवासी मजदूरों ने पलायन किया और अपने वतन की ओर सैकड़ों किलोमीटर पैदल ही निकल पड़े। प्रवासी मजदूरों की इस व्यथा पर कवित्री स्निग्धा बनर्जी ने अपने कविता के माध्यम से बड़े ही मार्मिक ढ़ंग से दर्शाया हैं।
कोरोना काल में जिस तरह से प्रवासी मजदूरों ने पलायन किया और अपने वतन की ओर सैकड़ों किलोमीटर पैदल ही निकल पड़े। प्रवासी मजदूरों की इस व्यथा पर कवित्री स्निग्धा बनर्जी ने अपने कविता के माध्यम से बड़े ही मार्मिक ढ़ंग से दर्शाया हैं।