डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

दुनिया में जब मानव सभ्यता का विकास नहीं हुआ था,उसके बहुत पहले भारत में श्रेष्ठ काव्य की रचना होने लगी थी। महर्षि बाल्मीकि पहले महाकवि थे। संस्कृत जैसी वैज्ञानिक भाषा में उनके मुख से निकले वाक्य प्रथम काव्य रूप में प्रतिष्ठित हुए।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।

महर्षि बाल्मीकि ने यह कथन अपने शिष्य भरद्वाज को सुनाया।इस छंद निबद्ध वाक्य में आठ आठ अक्षरों के चार चरण व बत्तीस अक्षर है। यह श्लोक बन गया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने उनका मार्गदर्शन किया। देवर्षि नारद द्वारा उन्हें सुनाये गये रामकथा का स्मरण कराया। श्री राम कथा को काव्यबद्ध करने का सन्देश दिया।

रामस्य चरितं कृत्स्नं कुरु त्वमृषिसत्तम ।
धर्मात्मनो भगवतो लोके रामस्य धीमतः ।।
वृत्तं कथय धीरस्य यथा ते नारदाच्छ्रुतम् ।
रहस्यं च प्रकाशं च यद् वृत्तं तस्य धीमतः ।।

इस प्रकार रामायण महाकाव्य मानवता की धरोहर बन गई। महर्षि बाल्मीकि महाकवि मात्र नहीं,महान साधक व त्रिकाल दर्शी थे। तब भारत के अरण्य ज्ञान विज्ञान आध्यात्मिक चेतना के अनुसन्धान केंद्र हुआ करते थे। इन्हीं के बल पर भारत विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित हुआ था। महर्षि वाल्मीकि जयंती के पावन अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महर्षि वाल्मीकि आश्रम, चित्रकूट में यज्ञ किया। गौ पूजा कर उनका नमन किया। योगी आदित्यनाथ ने चित्रकूट के महर्षि बाल्मीकि आश्रम में रामायण पाठ का शुभारंभ भी किया। उन्होंने असावर देवी की पूजा अर्चना और संतों का भी आशीर्वाद लिया।

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