डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
ज्यादातर लोगों की मान्यता यही है कि यदि किसी भी देश में विदेशियों के द्वारा किए गए कब्जे से उस देश को मुक्त करा लिया गया है तो वह स्वतंत्रता है जबकि यह एक वैधानिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं है क्योंकि मानव द्वारा जिस शरीर को स्वतंत्रता की श्रेणी में रखा जाना चाहिए उसके प्रति वह संवेदनशील ही नहीं शरीर में कार्य करने की स्वतंत्रता और शरीर के माध्यम से एक स्वतंत्र सोच रखने की स्थिति में व्यक्ति को अपने को स्वतंत्र मानने के तथ्य पर विचार करना चाहिए और इस अर्थ में किसी भी देश का सर्वोच्च प्रतीक राष्ट्रध्वज एक सामान्य नागरिक की पहुंच में कितना है इसके आधार पर भी व्यक्ति को उस देश में अपने अधिकारों को सुनिश्चित करना चाहिए भारत जैसे देश में जहां पर स्वतंत्रता का अर्थ अंग्रेजों के भारत से चले जाने को लगाया जाता है उस देश में वर्ष 2000 तक ऐसी स्थिति नहीं थी कि कोई भी व्यक्ति अपने ही स्वतंत्र देश के राष्ट्रीय ध्वज को अपने घर पर लगा सकता था उसको फहरा सकता था निश्चित रूप से देश में नागरिकों को राष्ट्रीय प्रतीक से दूर रखा गया था। जो उनके मानवाधिकार हनन का ही एक विषय था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से स्वतंत्रता के करीब 50 साल बाद देश के नागरिकों को यह अधिकार मिला कि वह अपने घरों पर झंडे को फहरा सकते थे यह भी एक विडंबना ही थी।किस संविधान जैसे सर्वोच्च विधि ग्रंथि का निर्माण होने के बाद भी उस विधिक ग्रंथ में कहीं पर भी राष्ट्रीय ध्वज की कोई संकल्पना कोई कर्तव्य रखे ही नहीं गए थे।
ऐसा मानकर चला जा रहा था कि सिर्फ अंग्रेजों के बाहर जाने की स्थिति ही स्वतंत्रता है जबकि स्वतंत्रता इस तथ्य की भी होनी चाहिए थी कि व्यक्ति की अभिव्यक्ति में प्रजातंत्र और गणतंत्र की परिभाषा में प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में अपने राष्ट्रीय ध्वज को लेकर चलने की ताकत हो और उसके प्रति उनमें संवेदनशीलता हो इसीलिए 1972 में 42 वें संविधान संशोधन के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 51 आ के अंतर्गत मौलिक कर्तव्यों का समावेश किया गया जिसमें इस तथ्य को भी नागरिकों के लिए समाहित किया गया कि वह राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का आदर और सम्मान करने के लिए कार्य करें जो उनको कर्तव्य के उस श्रेणी पर खड़ा कर रहा था जहां पर वह राष्ट्रीय ध्वज को अपने जीवन में पाने के अधिकार को सुनिश्चित कर सकें वर्तमान में राष्ट्रीय ध्वज को रात्रि में भी फहराया जा सकता है लेकिन दूसरे देशों की तरह इसके लिए भी यह शर्त है कि राष्ट्रीय ध्वज कम से कम 100 फीट की ऊंचाई पर हो प्रकाश की उचित व्यवस्था हो राष्ट्रीय ध्वज चमक रहा हो किसी भी गाड़ी में राष्ट्रीय ध्वज लगाने के लिए उसे या तो दोनों सीटों के बीच में लगाया जाएगा या दाहिनी तरफ लगाया जाएगा राष्ट्रीय ध्वज को झुका कर नहीं लगाया जा सकता या अशोक का विषय है राष्ट्रीय ध्वज को कटा फटा नहीं लगाया जा सकता लेकिन इन सबसे बड़ा बिंदु यह था कि राष्ट्रीय ध्वज को कोई भी व्यक्ति खरीद कर ही पा सकता है आज भी स्वतंत्रता के बाद उसे भारत में राष्ट्रीय ध्वज बनाने वाली कंपनी हुबली ही संपूर्ण राष्ट्र को ध्वज को एक मानक आकार में प्रदान करती है जिसके लिए एक निश्चित राशि देकर लोग प्राप्त करते हैं राष्ट्रीय ध्वज के लिए बनाए गए कोड जिसे नेशनल फ्लैग कोड 2002 भी कहते हैं उसके अनुसार कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज को व्यवसाय के माध्यम से नहीं कर सकता लेकिन जिस तरह से राष्ट्रीय ध्वज के प्रति के आधार पर देश की बढ़ती जनसंख्या ने राष्ट्रीय ध्वज को राष्ट्रीय पर्वों के समय बेचकर जीविकोपार्जन चलाने का एक बड़ा माध्यम समझ लिया है वह राष्ट्र की गरिमा काही एक गंभीर प्रश्न है।
अखिल भारतीय अधिकार संगठन के प्रयास से इस तरह के प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज को बेचने पर भी प्रतिबंध लगाने के आदेश हो चुके हैं लेकिन उसका अभी वह सार्थक अर्थ समाज में नहीं दिखाई देता है यही नहीं यह भी एक विचारणीय और मानवाधिकार का ही प्रश्न होना चाहिए कि राष्ट्रीय ध्वज को खरीद कर नागरिकों को ना लेना पड़े क्योंकि इसमें राष्ट्र के आंदोलन क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता की कहानी छुपी है यह राष्ट्र का सर्वोच्च प्रतीक है और ऐसे अर्थ में जबकि भारत में गर्भनिरोधक मुफ्त में दिए जा रहे हैं अनाज मुफ्त में बांटा जाता है उस स्थिति में भारत जैसा राष्ट्र अपने ही राष्ट्रीय ध्वज को नागरिकों के बीच में बेचने के लिए रखता है वह भी राष्ट्रीय ध्वज का एक अपमान है और नेशनल फ्लैग कोड 2002 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति झंडे को नहीं भेज सकता है तो राज भी एक विधिक व्यक्ति है और code 2002 में कहीं पर यह नहीं लिखा है कि सरकार या राज्य भी झंडे को बेच सकते हैं ऐसी स्थिति में उस नेशनल फ्लैग कोड 2002 का सही ढंग से सरकार द्वारा भी पालन नहीं किया जा रहा है और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है क्योंकि जो भी तथ्य मूल अधिकार या मूल कर्तव्य से संबंधित हैं वह यदि नागरिकों पर बाध्यकारी हैं तो उतने ही सरकार पर भी बात अधिकारी हैं और यदि ऐसा नहीं है तो वह मानवाधिकार उल्लंघन का ही विषय है यह राष्ट्रीय प्रतीक के अपमान का विषय राष्ट्रीय प्रतीक अधिनियम 1971 के अनुसार या दंडनीय अपराध है राष्ट्रीय ध्वज को व्यवसाय के आधार पर प्रयोग किया जाए अखिल भारतीय अधिकार संगठन कई वर्षों से इस तथ्य के लिए प्रयास कर रहा है कि सभी को झंडा मुफ्त में दिया जाए काफी लंबी लड़ाई के बाद संगठन को यह सूचित भी किया गया कि हर शहर के जिला अधिकारी ऑफिस के नजारत विभाग में कोई भी व्यक्ति एप्लीकेशन देकर झंडे को मुफ्त में प्राप्त करने की प्रक्रिया कर सकता है लेकिन सामान्य जनता को यह तथ्य मालूम नहीं है लेकिन संगठन द्वारा इस तथ्य को ज्यादा उठाया गया कि क्यों नहीं सरकार द्वारा ही सभी को एक राष्ट्रीय ध्वज मुफ्त में दिया जाता है इस पर केंद्र सरकार द्वारा यह जवाब दिया गया कि ऐसा नेशनल फ्लैग कोड 2002 में नहीं लिखा है जिस पर संगठन ने यह प्रतियोगिता में कहा यदि लोगों को मुफ्त में झंडा देने की बात नहीं लिखी है तो यह भी नहीं लिखा है कोड में झंडे को बेचा जाएगा यही नहीं यदि नागरिक झंडे को व्यवसाय के रूप में नहीं अपना सकते हैं तो सरकार को भी यह अधिकार नहीं प्राप्त है और ऐसी स्थिति में सरकार भी नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकती इन तथ्यों के प्रकाश में सरकार द्वारा संगठन से या कहा गया कि यदि मुफ्त में लोगों को राष्ट्रीय ध्वज दिया जाएगा तो लोगों के मन में उसके प्रति सम्मान नहीं रह जाएगा संगठन द्वारा प्रत्युत्तर में इस बात का जवाब दिया गया कि जब संपूर्ण देश के लोगों के प्रत्येक कार्य को आधार कार्ड से जोड़ा जा रहा है तो राष्ट्रीय ध्वज को प्रत्येक व्यक्ति को मुफ्त में दिए जाने को भी आधार कार्ड से जोड़ा जाए जिसके कारण जिस भी व्यक्ति के पास राष्ट्रीय ध्वज होगा उसका आधार कार्ड से जुड़ा होगा जिसके कारण वह संपूर्ण भारत में कहीं से भी अधिकारिक रूप से दूसरा झंडा नहीं प्राप्त कर सकता है इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति के आधार कार्ड के आधार पर उसे दूसरा झंडा तभी प्राप्त हो सकता है जब वह पहले वाले झंडे को जमा करें और यदि जमा नहीं कर पा रहा है तो इसे झंडे का अपमान मानते हुए उसे राष्ट्रीय प्रतीक अधिनियम 1971 के अंतर्गत कारावास और झंडे की लागत का 100 गुना वसूला जाए जिससे कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करेगा ही नहीं बल्कि उसको अपने जरूरी कागजात और राष्ट्रीय प्रतीक के प्रति सम्मान के लिए अपने कर्तव्य को समझते हुए सुरक्षित रखा जाएगा।
इस तथ्य को सुलझाए जाने के बाद आज तक यह मुद्दा लंबित है जो एक व्यक्ति के अधिकारों का ही उल्लंघन है जो स्वतंत्र राष्ट्र में स्वतंत्र रूप से एक मुक्त झंडा चाहता है और उसके लिए उपाय भी हैं राष्ट्र के पास जिन विधियों के माध्यम से देश की जनता को मुफ्त में कई सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं उन सभी सुविधाओं की तुलना में राष्ट्रीय ध्वज का स्थान सर्वोच्च है और उसको एक विधिक कर्तव्य मानते हुए सरकार द्वारा नागरिकों को दिया जाना चाहिए और नागरिकों के पास भारतीय होने के एहसास में एक मुफ्त झंडा उसके आधार कार्ड के आधार पर निश्चित रूप से होना चाहिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज के साथ वास्तविकता में जुड़ सकें उसके प्रति उसके मन में एक एहसासों एक कर्तव्य हो जिससे वाह सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र 1948 की प्रथम धारा के प्रकाश में अपने को स्वतंत्र और समानता वाले नागरिक के रूप में चयनित कर सके और यही प्रयास मौलिक कर्तव्य में मानवाधिकार की स्थापना के लिए किए गए हैं इसलिए आज राष्ट्रीय ध्वज के विक्रय उसको बेचे जाने के प्रकाश में प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकारों के लिए मुफ्त झंडा पांडे के प्रयास पर एक विमर्श निश्चित रूप से करना चाहिए ताकि इस बात की स्थापना हो सके कि वह सिर्फ अंग्रेजों के देश से चले जाने को स्वतंत्रता मानने के बजाय अपनी अभिव्यक्ति में भी स्वतंत्र होने के अर्थ को महसूस कर रहा है