डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

 

कितना सुखद नाम रखा हमारे धर्म मनीषियों ने आ ………बला ( मुझे मालूम है आपको मेरे अक्षर ज्ञान अच्छा नहीं लगेगा ) इस नाम के बाद कौन नहीं मानेगा कि हर महिला भस्मासुर खुद ही बनी है पहले माँ बन कर पुरुष दिए और बदले उनको अबला , रमडी जैसे नाम मिले !!!!माँ बनने का इससे अच्छा सम्मान और क्या मनुष्य दे सकता था वैसे आप ये तो मानते है ना कि जिन्दा लड़की का कोई मोल नहीं इस देश में , जब तक निर्भया मर नहीं गयी तब तक लड़की के लिए समाज नहीं उठा और अब लखनऊ में गौरी जब मार डाली गयी तो शुरू हो गया चीखने चिल्लाने की बात | कितना अनोखा है देश कि द्रौपदी की साड़ी उतरने पर नहीं बोला और जब उसका अपमान हो गया तो महा भारत कर डाला क्या हमको जिन्दा लड़की का बोलना अच्छा नही लगता या मरी , गूंगी लड़की पर ही दया दिखाने का मन करता है क्योकि जिन्दा तो सच बोलती नही | !!!!!!!!

अब ऐसे झूठ बोलने वाली लड़की को क्या पैदा करना इसी लिए पैदा होने से पहले मार दो ( क्योकि जिन्दा के लिए खड़े होने की आपको आदत नहीं ) पर आप याद तो करिये कि ना जाने कितने घरों में जब जब पुरुष पर कोई समस्या आई है तो पुरुष को बचने के लिए घर की औरत ( माँ बहन , पत्नी ) सामने आई है पर तब किसी पुरुष ने नही कहा कि इससे घर की इज्जत नीलम हुई पर जब भी किसी महिला पर संकट आया तो उसी घर के पुरुष ने कहा कि कोई जरूरत नहीं फर्जी में बदनाम हो जायेंगे क्यों नहीं खड़ा हुआ पुरुष महिला के लिए ??????? ओह हो मैं तो भूल ही गया कि इज्जत का मतलब तो सब देख कर भी दुम दबा कर रहना है | खैर मैं कह रहा था कि आपने कितनी आसानी से कह दिया अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ….आँचल में दूध और आँखों में पानी और अपनी तरह से अर्थ भी निकाल लिया पर इसका अर्थ ये भी तो है कि औरत के आँचल में भी दूध है जो एक आशय से मनुष्य को इस पृथ्वी पर जीवे का अर्थ देता है और जब दुनिया में सबकी आँखों में सूअर के बा उग आये है तब भी औरत के आँख में आज के दौर में भी पानी ( शर्म ह्या ) है पर आप क्यों मानने लगे मेरी बात ये भी कोई बात है कि औरत में एक भी अच्छाई देखी जाये | लगाये न आवाज कि …ढोल गंवार शूद्र पशु नारी …सकल ताड़न के अधिकारी !!!!!!!!!!

आरे पर्थिवी के सबसे बुद्धिमान पुरुष इसका मतलब ये क्यों नहीं कि ये सब तक तक आवाज ही नहीं करते जब तक इनको चोट ना पहुचाई जाये !!!!!!क्या अब भी नहीं मानोगे कि औरत तब तक नहीं बोलती जब तक उसकी अस्मिता गरिमा को चोट ना पहुचाई जाये !!!!!!! आखिर सांस्कृतिक आदर पर कैसे सिद्ध होगा आप महिला नहीं है | देखिये वो लड़की मारी जा रही है पर शांत रहिएगा लड़की लक्ष्मी होती है और लक्ष्मी चंचल होती है और चंचल को सही रखने के लिए उसको बाँध ( मारना ) कर रखना जरुरी है | आइये किसी गौरी के मरने की खबर अख़बार में पढ़ते है | आखिर पढ़ना भी तो संस्कृति ही है ( व्यंग्य समझ कर अपने अंदर के हनुमान को जगाइए जो मंदिर में नही आपके अंदर है किसी सीता को बचाने के लिए )

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