डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

 

महिला का जीवन उस मोरनी के पैर की तरह है जो उसकी हर सुन्दरता को फीका कर देती है| वर्षो पहले एक अल्हड जीवन जीते हुए किशोर को जब उसकी माँ उसकी शैतानी के लिए मारे दौड़ी तो वो भागा…माँ पीछे पीछे भागी पर तभी किशोर ने देखा कि माँ ने दौड़ना बंद कर दिया और वो एक दरवाजे के सहारे खड़ी है और चुप है किशोर कुछ समझता कि उसने कमरे की फर्श आर माँ के नीचे कुछ खून की बूंदे देखी पर वो समझ नहीं पा रहा था कि माँ को चोट कहा लगी और कैसे लगी उसने अपनी को पूरा ध्यान से देखा पर उसको कही भी कोई चोट नहीं दिखाई दे रही थी …अपनी शैतानी भूल कर उसने माँ से पूछ !!! क्या हुआ आपको चोट कैसे लगी पर माँ ने उत्तर देने के बजाये चुप रहना उचित समझा और वो उसी दरवाजे को पकडे खड़ी रही ….एक बहुत हलकी और कोई भी मतलब न रखने वाली घटना ने उस किशोर के मन को झकझोर दिया कि आखिर माँ अपनी केचोट बारे में बता क्यों नहीं रही पर भारत जैसे देश में संस्कार और नैतिकता के इतने मकडजाल है कि माँ से पैदा बेटा ही ज्यादा कुछ नहीं जान सकता ……समय गुजरता रहा पर किशोर के दिमाग में उलझन बनी रही गणित का स्टूडेंट होने के बाद भी उसने प्राइवेट जीवविज्ञान पढ़ा जैसे जैसे वो अपना ज्ञान बढ़ाता गया उसको अपनी माँ के खून का मर्म समझ में आने लगा …

सृजन के उस प्रवाह की बात समझने के बाद उसने अपना अध्ययन जारी रखा और ये समझ पाया कि कैसे बच्चे पैदा होने से गर्भासय पर असर पड़ता है और उसने माँ को काफी जोर डाला कि वो अपने गर्भाशय का ऑपरेशन कराये पहले तो उसकी माँ कहती रही कि तुम बहुत बदतमीज हो कैसी फर्जी बात करते रहते हो किसके साथ बैठते हो पर उसके लगातार प्रयास के बाद एक दिन माँ का दूसरा स्वरुप सामने आया जो शायद इस देश की हर माँ का स्वरुप है उसने कहा कि क्या मैंने जो बच्चे पैदा किये है उनको बड़ा होते नौकरी करते और शादी होते न देखू और अपना ऑपरेशन करा के मर जाऊ उस समय महिला को ऑपरेशन से मरने का डर भी ज्यादा होता था और उस माँ ने लाख कहने पर भी ऑपरेशन नहीं कराया समय के साथ सब बच्चे बड़े हो गए सबकी शादी नौकरी हो गयी पर इन सबके बीच उस माँ के गर्भ की समस्या बढ़ गयी और अंत में जीत उस किशोर से अधेड़ हो चुके पुरुष की हुई और उसने अपनी माँ का उसकी अनिच्छा के विरुद्ध ऑपरेशन करवाया …सब कुछ सामान्य था पर करीब ७१ साल की उम्र में ऑपरेशन करवाने के कारण सबके लिए जीने वाली उस माँ के जीवन में पार्किन्सन( पूरा शरीर स्थिर नहीं रहता ) जैसी बीमारी ने स्थान ले लिया | माँ अक्सर अपने बेटे को कोसती है कि तुम्हारे जिद के कारण मेरा ये हाल है पर बेटा सोचता है कि क्या माँ को अपने सामने ही गर्भ की समस्या में जूझने देता जबकि डॉक्टर के अनुसार वो कैंसर बन रहा था ….माँ अकेली लेटी रहती है जिनको पैदा किया सभी व्यस्त है पर माँ को यही अच्छा लगता है कि सब सामने है .माँ किसी की भी हो पर महिला को शुभकामना देने के बजाये हम सबको महिला की उम्र बढ़ने के साथ होने वाली समस्याओ के लिए संवेदनशील होना ही पड़ेगा ….प्रेम करना बुरा नहीं पर महिला की गरिमा पहले …आप अपनी माँ बहन पत्नी को कितनी बार खाना या पानी दिए है आप इसी से अपने दृष्टिकोण का आंकलन कर सकते है कि आपके जीवन में महिला कहा है …..सिर्फ शब्द नहीं वास्तविकता में महिला को सम्मान दीजिये ..महिला भी हसना चाहती है पर अपनी हसी खोकर नहीं ….क्या आप अब कभी पानी दे पाएंगे किस महिला को …… ये कहानी नहीं मेरी अपनी माँ और मेरे जीवन का सत्य है जिसने मेरे जीवन को इतना हिलाया कि मैं चाहता हूँ कि माँ के जीवन का थोडा कर्ज तो मैं महिलाओ के लिए कुछ बेहतर करके उतार सकूँ …..डॉ आलोक चान्टिया

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