आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

दूसरे विश्व युद्ध के बाद की वैश्विक स्थिति को देखते हुए इस बात को भी अनुभव किया गया की हेल्थ इज वेल्थ यानी स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है जैसे मुहावरे को यथार्थ में भी सत्य स्थापित करने की आवश्यकता है और इसीलिए 7 अप्रैल 1948 को विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी w.h.o. की स्थापना की गई यह एक ऐसा प्रयास था जिसमें भूमंडलीकरण को सत्य स्थापित करने के उद्देश्य से पूरे विश्व को स्वस्थ रखने का एक प्रयास किया जाना था और इसीलिए इस संगठन की स्थापना के 2 वर्ष बाद ही 7 अप्रैल 1950 से विश्व स्वास्थ्य दिवस को मनाया जाने लगा इसका उद्देश्य भी लोगों को उनके शरीर के प्रति जागरूक करना था यह एक हास्यास्पद सी बात है कि पृथ्वी के सबसे बुद्धिमान प्राणी मानव को यह ज्ञान तो है कि कौन से यंत्र पेट्रोल से चलते हैं कौन डीजल से चलते हैं कौन मिट्टी तेल से चलते हैं लेकिन उससे मर्ग के कस्तूरी की तरह ही इस बात का तनिक भी ज्ञान नहीं है कि उसके शरीर के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य दिवस जैसे दिन की स्थापना की गई।

वर्ष 2019 में जब कोरोना विषाणु ने अपने पैर का विस्तार किया तो यह दिवस नर्स और मिडवाइफ को समर्पित हो गया क्योंकि उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए पूरे विश्व को बचाने की कोशिश करें लेकिन इसके बाद भी विश्व स्वास्थ संगठन ने माना कि वैश्विक स्तर पर 6000000 नर्स की कमी है लेकिन इस वर्ष यानी 2021 में विश्व स्वास्थ्य दिवस का थीम है एक निष्पक्ष स्वस्थ दुनिया का निर्माण और इस निर्माण शब्द में यह भाव समाहित है कि लोगों को प्रयास करना होगा और यह प्रयास उनकी जागरूकता चेतना कर्तव्य निष्ठा पारस्परिकता सहयोग वसुधैव कुटुंबकम की भावना सबको जियो और जीने दो की भावना में समेटना है क्योंकि निर्माण सदैव ही प्रयास से आरंभ होता है लेकिन वर्तमान में यह प्रयास जिस विषाणु के विरुद्ध किया जाना है वह 60 नैनोमीटर का विषाणु सिर्फ 6 जींस से बना है और इसके निर्माण में सिर्फ प्रोटीन और एक एंजाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्ट्से की प्रमुख भूमिका में है या वही रिवर्स ट्रांसक्रिप्ट्से एंजाइम है जिस की संरचना Rebo न्यूक्लिक एसिड यानी आर एन ए की बनी होती है और जो मानव शरीर के डीएनए के संपर्क में आते ही इस एंजाइम की मदद से अपनी संरचना बदल लेता है और मानव शरीर में आसानी से निवास करने लगता है क्योंकि इसका संक्रमण सांसो के द्वारा हो रहा है इसलिए यह खतरनाक है वर्तमान में इसके लिए वैक्सीन भी बन गई है जिसे को वैक्सीन और को शील्ड नाम से जाना जाता है लेकिन निर्माण का कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि हम इस बात को भी जाने की प्रिवेंशन इस बेटर देन क्योर अर्थात इलाज से बेहतर बचाव है और आज इसी की आवश्यकता है कि विश्व स्वास्थ्य दिवस के दिन हम इस बात को समझने का प्रयास करें कि यदि 2 गज की दूरी रहने पर मुंह पर मास्क लगाने पर हमारे शरीर की सुरक्षा हो सकती है तो हमें इसका पालन करना चाहिए हर घर में साबुन है उससे हाथों शरीर धोने से एक दूरी पर की फिल्म बन जाती है जो विषाणु के बाहरी आवरण पर स्थित प्रोटीन को तोड़ देती है और वह शरीर को क्षति नहीं पहुंचा पाता है इसलिए हर व्यक्ति को कहीं बाहर से आने पर अपना हाथ पैर धोना चाहिए अपने कपड़ों को साबुन से धो लेना चाहिए क्योंकि मानव जीवन पानी के बाद प्रत्येक व्यक्ति को यह प्रयास करना चाहिए कि वह अपनी सामान्य स्थिति में रहते हुए अपनी आयु को पूरा करें और जब वह सिर्फ बचाव से अपने जीवन को सुरक्षित रख सकता है तो उसे करना चाहिए ज्यादातर लोग यह मान लेते हैं कि दुनिया में विश्व स्वास्थ संगठन और स्वास्थ्य मंत्रालय का ही यह काम है कि वहां एक स्वस्थ देश या समाज का निर्माण करें लेकिन ऐसे में वह भूल जाते हैं कि चाहे समाज है चाहे जैसे चाहे विश्व है।

उनकी परिभाषाएं ही तब सत्य है जब तक कि उसमें व्यक्तिगत स्तर पर प्रत्येक मानव को सम्मिलित न कर लिया जाए इसलिए निर्माण के लिए सबसे महत्वपूर्ण योगदान अकेले व्यक्ति का है जो समूह के साथ मिलकर समाज देश विश्वi का निर्माण करता है और 7 अप्रैल को विश्व साथ दिवस के दिन यही शपथ लेने का समय है कि प्रत्येक व्यक्ति एक निष्पक्ष स्वस्थ दुनिया का निर्माण करेगा बहुत से लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि भारत में 14 सो लोगों पर एक डॉक्टर है और अस्पतालों की भी संख्या उतनी नहीं है यही नहीं इलाज के लिए रोज इतना पैसा लग रहा है कि एक सामान्य गरीब व्यक्ति के लिए वह भी संभव नहीं है ऐसी स्थिति में सबसे उपयुक्त बात यही है कि संतोषम परम सुखम के सिद्धांत पर चलते हुए अपने को हम लोग अपने सीमित दायरों में कैद कर ले ताकि वास्तविकता के अर्थ में निष्पक्षता के साथ जियो और जीने दो का मूल मंत्र स्थापित हो और एक निष्पक्ष स्वस्थ दुनिया का निर्माण समय के साथ हो सके क्योंकि जितना अधिक समय हम बचाव के माध्यम से डॉक्टर को देंगे वैज्ञानिकों को देंगे उतनी बेहतर वैक्सीन और दवा आ सकेगी अन्यथा जल्दबाजी में कोई भी दवा या वैक्सीन उस तरह प्रभावी है या नहीं इसको जानने का अवसर ही नहीं मिल पाएगा इसीलिए बिना किसी ईर्ष्या और धर्म जाति लिंग के आधार पर भेदभाव करते हुए सभी मानव को एक सा मानते हुए सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र 1948 की पहली धारा के अनुसार कि हम सभी समान रूप से स्वतंत्र पैदा हुए हैं कार्य करते हुए सभी को जीने का अवसर प्रदान करें यही आज विश्व स्वास्थ्य दिवस की मांग है और हमें मानव होने के कारण इस मांग के अनुरूप कार्य करना चाहिए

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