डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

हरित क्रांति के पहले तक भारत में मोटे अनाज का ही आमतौर पर प्रचलन था। इसमें कोई संदेह नहीं कि हरित क्रांति ने गेंहू व धान का उत्पादन खूब बढ़ाया। लेकिन अब वैज्ञानिक भी इसके साइड इफेक्ट को स्वीकार कर रहे है। अत्यधिक केमकल खाद के प्रयोग से मनुष्य व खेत दोनों की सेहत पर प्रतिकूल असर हो रहा है। इसके अलावा अपरोक्ष रूप से पशुपालन की भी उपेक्षा हुई। पहले जैविक कृषि के माध्यम से मोटे अनाज का उत्पादन होता था। इसमें कृषि व पशुपालन परस्पर पूरक होते थे। बढ़ती आबादी के साथ कृषि उत्पाद बढ़ाने की आवश्यकता थी। लेकिन मनुष्य के साथ ही खेत के स्वास्थ्य पर भी ध्यान रखना आवश्यक था। केमिकल के अधिक प्रयोग से खेत की उपजाऊ क्षमता भी समय के साथ कम होने लगती है। इसी के दृष्टिगत नरेंद्र मोदी सरकार ने मृदा परीक्षण अभियान चलाया है। करोड़ों किसानों ने इसका लाभ उठाया है। इससे पता चलता है कि किस खेत को कितनी खाद व पानी की आवश्यकता है।

राज्यपाल ने किया आह्वान

राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने कहा था कि वह किसान की बेटी है। उनको कृषि व किसान दोनों की समस्याओं की बेहतर समझ है। उन्होंने मोटे अनाज के प्रचलन से लेकर वर्तमान दौर को देखा है। उन्होंने कहा कि अब एक ऐसी नई हरित क्रांति लाने की आवश्यकता है,जिससे मोटे अनाजों की पैदावार में वृद्धि हो। इससे जलवायु परिवर्तन,ऊर्जा संकट,भू-जल ह्रास, स्वास्थ्य और खाद्यान्न संकट जैसी समस्याओं से भी निपटा जा सकता है। इसके साथ ही इससे न केवल कृषि का विकास होगा,बल्कि खाद्य सुरक्षा,उचित पोषण और स्वास्थ्य सुरक्षा भी हासिल होगी। उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये फसलें अब हमारे किसानों की समृद्धि बढ़ाने तथा उनकी आयु को दोगुनी करने में भी सहायक हो सकती हैं।

इम्युनिटी के प्रति जागरूकता

कोरोना संकट के दौरान इम्युनिटी शब्द व्यापक प्रचलन में आया। राज्यपाल ने कहा कि कोविड महामारी काल में लोग अपने स्वास्थ्य के साथ खान पान के प्रति अत्यधिक जागरूक हुए हैं। इम्युनिटी बढ़ाने वाले आहार का सेवन अधिक करने लगे। क्योंकि मोटे अनाजों में फाइबर एवं अन्य पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है। इस प्रकार हमारे पारम्परिक भारतीय जीवन में प्रयुक्त होने वाली खाद्य सामग्री कोराना काल में उपयोगी सिद्ध हुई है। राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अपने बत्तीसवें स्थापना दिवस पर आयोजित मोटे अनाज: प्रतिरक्षा एवं पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु सम्भावनाएं एवं अवसर वेबिनार को संबोधित किया। कहा कि हम भारतवासियों को कोरोना काल में इम्युनिटी बढ़ाने की जरूरत इसलिये पड़ी। क्योंकि हमने देश के पारम्परिक अनाजों जैसे ज्वार,बाजरा,रागी, संवा, कोदों से दूरी बना ली और गेहूं चावल का अधिक प्रयोग करने लगे। मोटा अनाज खाकर हमारे पूर्वज लम्बे समय तक जीवित रहें। आज पूरी दुनिया मोटे अनाज की ओर वापस लौट रही है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मोटे अनाजों की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है। गेहूं एवं चावल जीवन की ऊर्जा एवं शारीरिक विकास की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, परन्तु इम्युनिटी कम हो रही है। इसके परिणाम स्वरूप मानव शरीर में कई प्रकार की दैहिकीय समस्याओं तथा गम्भीर बीमारियों की समस्याएं उत्पन्न हो गई। यही कारण है कि आज केन्द्र सरकार भी मोटे अनाजों की खेती पर जो दे रही है।

सरकार के प्रयास

आनंदीबेन पटेल ने कहा कि उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड क्षेत्र तथा दक्षिण पश्चिम का मैदानी क्षेत्र मोटे अनाजों की फसलों की खेती हेतु सर्वथा उपुयक्त है,जहां कई दशकों से मिलेट्स की खेती की जाती रही है। इन क्षेत्रों मेें पुनः मोटे अनाज के फसलों की खेती को बढ़ाने हेतु सभी सम्भावनाओं की तलाश की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज इस प्रकार के अनुसंधान की आवश्यकता है, जिससे इन फसल उत्पादों को सहजता के साथ मूल्य संवर्धंन किया जा सकें। राज्यपाल ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि यह वेबिनार मिलेट्स फसल उत्पादन का मूल्य संवर्धन एवं नवीन उत्पादों के विकास के साथ प्रदेश की पोषण सुरक्षा में मोटे अनाज की फसलों के प्रासंगिक योगदान के संबंध में प्रचार।प्रसार की महती भूमिका निभायेगा। केन्द्र सरकार ने वर्ष 2018 को मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया था। और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग बढ़ने से अब खाद्य और कृषि संगठन ने वर्ष 2023 को ‘अंतराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ घोषित कर दिया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here