डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

जिन पूर्व सरकारों के समय कृषि मंडी से औसत तीन प्रतिशत खरीद होती थी, बिचौलियों का वर्चस्व रहता था। जिन्होंने आठ वर्षों तक स्वामीनाथन रिपोर्ट दबाए रखी न्यूनतम समर्थन मूल्य में वर्तमान सरकार की तरह वृद्धि नहीं की, जो यूरिया की किल्लत दूर नहीं कर सके,उसकी कालाबाजारी रोकने का प्रयास नहीं किया,लाखों करोड़ रुपये की सिंचाई परियोजनाएं लंबित रखी गई,वह अब तीन कृषि कानूनों को काला बता रहे है। उनको वापस लेने की मांग में शामिल है। अब तो तीन कृषि कानूनों के प्रत्यक्ष लाभ भी दिखाई देने लगे है। कृषि उपज की कृषि मंडी से सर्वाधिक खरीद पंजाब व हरियाण से होती थी। यहां पहली बार किसानों को उनकी उपज का शत प्रतिशत भुगतान सीधे उनके खातों में पहुंचाया गया। बिचौलिया व्यवस्था समाप्त हुई। इसका लाभ किसानों को मिला। केंद्र ने पंजाब सरकार पर किसानों को शत प्रतिशत भुगतान की शर्त लगाई थी। उस पर अमल हुआ। इसके बाद भी किसानों के नाम पर आंदोलन प्रदर्शन जारी रखना बेमानी है। अनेक नेताओं ने इस आंदोलन से किनारा कर लिया है। यह आंदोलन शुरू से ही दिल्ली सीमा पर ही सिमटा हुआ था। देश के किसानों का तो इसे कभी समर्थन ही नहीं मिला था। अब तो यह एक संगठन का राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन मात्र बन गया है। ऐसे में कांग्रेस जैसी मुख्य विपक्षी पार्टी का इस आंदोलन के पीछे भागना हास्यास्पद है। इससे कांग्रेस पर ही सवाल उठने लगे है। पिछली व्यवस्था के प्रति उसका लगाव आश्चर्यजनक है। उसे यह बताना चाहिए कि किसान कल्याण के लिए पिछली व्यवस्था कितनी लाभप्रद थी। अथवा उस व्यवस्था में उसने किसानों का कितना कल्याण किया। कॉंग्रेस नेता ऐसे सभी सवालों से बच रहे है। अमेठी के मेगा फूड पार्क,सम्राट साइकिल,हरियाणा व राजस्थान में किसानों की जमीन खरीद के उदाहरण पिछली व्यवस्था में ही दिखाई दिए थे। ऐसे लोग अब किसानों के हमदर्द बन रहे है। इनको बताना चाहिए कि यह लोग पिछली व्यवस्था के इतने दीवाने क्यों है। किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन में सिद्धांत का अभाव तो पहले ही था,अब संख्या और नेतृत्व का भी अभाव है। यह आंदोलन एक नेता विशेष के समर्थकों का जमावड़ा मात्र बन गया है। अनेक किसान नेता आंदोलन से ना केवल अलग हो चुके है,बल्कि उन्होंने आंदोलन पर गंभीर आरोप भी लगाए है। ऐसे में कॉंग्रेस नेता राहुल गांधी की ट्रैक्टर यात्रा चर्चा में है। उन्होंने आंदोलन की मांग को यथावत दोहरा दिया। कहा कि किसान की जमीन चली जायेगी। इसलिए तीनों कृषि कानून वापस होने चाहिए। जबकि नए कृषि कानूनों का उद्देश्य किसानों तक सीधे लाभ पहुचाने की व्यवस्था करना है। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सुविधा मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान संरक्षण एवं सशक्तिकरण और आवश्यक वस्तु संशोधन बिल किसानों को सीधे लाभान्वित करने और बिचौलियों से मुक्ति दिलाने के लिए है। राहुल गांधी के अनुसार मोदी सरकार के तीन काले कानून किसान खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार हैं। ताकि न तो उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य व हक़ मिलें और मजबूरी में किसान अपनी जमीन पूंजीपतियों को बेच दें।

राहुल ने इसे मोदी का एक और किसान विरोधी षड्यंत्र करार दिया है। लेकिन अब कानून के माध्यम से किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों की फसल खरीद सकेंगे। पहले फसल की खरीद केवल मंडी में ही होती थी। राज्यों के अधिनियम के अंतर्गत संचालित मंडियां भी राज्य सरकारों के अनुसार चलती रहेगी। किसानों का भुगतान सुनिश्चित करने हेतु प्रावधान है। देय भुगतान राशि के उल्लेख सहित डिलीवरी रसीद उसी दिन किसानों को दी जाएगी। इसमें मूल्य के संबंध में व्यापारियों के साथ बातचीत करने के लिए किसानों को सशक्त बनाने हेतु प्रावधान है। विवादों के समाधान हेतु बोर्ड गठित किया जाएगा,जो तीस दिनों के भीतर समाधान करेगा। ढुलाई लागत,मंडियों में उत्‍पादों की बिक्री करते लिए गए विपणन शुल्‍कों का भार कम होगा। किसानों को उपज की बिक्री करने के लिए पूरी स्‍वतंत्रता रहेगी। करार अधिनियम से कृषक सशक्त होगा।सरकार उसके हितों को संरक्षित करेगी। निवेश बढ़ने अनाज की बर्बादी नहीं होगी। उपभोक्ताओं को भी खेत या किसान से सीधे उत्पाद खरीदने की आजादी मिलेगी। कोई टैक्स न लगने से किसान को ज्यादा दाम मिलेगा। उपभोक्ता को भी कम कीमत पर वस्तुएं मिलेगी,अनुबंधित किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज की आपूर्ति, सुनिश्चित तकनीकी सहायता,फसल स्वास्थ्य की निगरानी,ऋण की सुविधा व फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। सरकार किसानों को लाभ पहुंचाने का लगातार प्रयास कर रही है। छह वर्ष के दौरान अनेक अभूतपूर्व कदम उठाए गए है। उनको इतनी सुविधाएं पहले कभी भी उपलब्ध नहीं कराई गई।

यूपीए सरकार ने दस वर्ष में एक बार किसानों की कर्ज माफी की थी। लेकिन उस समय किसानों के पास जनधन खाते ही नहीं थे। ऐसे में किसानों को इस कर्ज माफी का पर्याप्त लाभ ही नहीं मिला था। लेकिन यूपीए सरकार इसी को अपनी उपलब्धि बताती रही। क्योंकि उसके पास किसान हित के नाम पर ज्यादा कुछ बताने के लिए नहीं था। जबकि नरेंद्र मोदी सरकार की इस क्षेत्र में बेहतरीन उपलब्धियां है। अब किसानों को सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ मिल रहा है। किसानों के नाम पर नकारात्मक राजनीति चल रही है। लेकिन इसका क्षेत्र अति सीमित है। नरेंद्र मोदी ने इसका उल्लेख किया। कहा कि दिल्ली के आसपास किसानों को भ्रमित करने की बड़ी साजिश चल रही है। किसानों को डराया जा रहा है। उन्हें बताया जा रहा है कि नए कृषि सुधारों के बाद किसानों की ज़मीन पर दूसरे कब्ज़ा कर लेंगे। जबकि ऐसा सोचने का कोई आधार नहीं है। गुजरात में पशुपालकों व कम्पनियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट आधार पर व्यवसाय चल रहा है। डेरी वाले पशुपालकों से दूध लेने का कॉन्ट्रैक्ट करते है,लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि उद्यमी पशुपालकों के मवेशी ले गए हों। इस योजना से पशुपालकों को लाभ मिल रहा है। ऐसा ही लाभ किसान को भी मिलेने लगा है। इसकी व्यवस्था नए कृषि कानून में कई गई है। फल सब्ज़ी व्यवसाय में लगे उद्यमी किसान की जमीन पर कब्जा नहीं करते है। देश में डेरी उद्योग का योगदान कृषि अर्थव्यवस्था के कुल मूल्य में पच्चीस प्रतिशत से भी ज्यादा है। यह योगदान करीब आठ लाख करोड़ रुपए होता है। दूध उत्पादन का कुल मूल्य अनाज और दाल के कुल मूल्य से भी ज्यादा होता है। इस व्यवस्था में पशुपालकों को आज़ादी मिली हुई है। कृषि कानून के माध्यम से ऐसी ही आजादी अनाज और दाल पैदा करने वाले छोटे और सीमांत किसानों को मिलेगी।

ऐसा भी नहीं कि कृषि कानून आकस्मिक रूप से लागू कर दिए गए। सुधारों की मांग बरसों से की जा रही थी। कांग्रेस ने चुनाव घोषणापत्र में ऐसे सुधारों व वादा किया था। यूपीए सरकार के कृषि मंत्री ने इसके लिए मुहिम भी चलाई थी। अनेक किसान संगठन भी पहले ही मांग करते थे। कृषि कानून में किसान को कहीं पर भी अनेज बेचने का विकल्प दिया गया है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि विपक्ष के वही लोग किसानों को भ्रमित कर रहे हैं। वह भी अपनी सरकार के समय इन कृषि सुधारों के समर्थन में थे। लेकिन अपनी सरकार के रहते वह निर्णय लेने का साहस नहीं दिखा सके।

सरकार आशंका समाधान को तैयार है।

आंदोलनकारियों से वार्ता का प्रस्ताव सरकार ने ही किया था। कई दौर की वार्ता हुई। नरेंद्र मोदी ने कहा कि किसानों की प्रत्येक आशंका के समाधान के लिए सरकार चौबीसों घंटे तैयार है। किसानों का हित पहले दिन से हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रहा है। खेती पर किसानों का खर्च कम करने व लाभ बढ़ाने के प्रयास किया गए। किसानों को विकल्प प्रदान किये गए। उनकी कठिनाइयों को दूर करने के लिए निर्णय लिए गए। देश के किसान सरकार के साथ है। दिल्ली सीमा के आंदोलन को केवल अपवाद के रूप में देखना चाहिए। इसीलिए नरेंद्र मोदी ने कहा कि करीब करीब पूरे देश ने आशीर्वाद दिया है। देश के हर कोने के किसानों ने आशीर्वाद दिया है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि देशभर के किसानों के आशीर्वाद की ये ताकत जो भ्रम फैलाने वाले लोग हैं,जो राजनीति करने पर तुले हुए लोग हैं, जो किसानों के कंधों पर बंदूकें फोड़ रहे हैं, देश के सारे जागरुक किसान उनको भी परास्त करके रहेंगे।

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