दीपक श्रीवास्तव
नव युवकों को भारत के इतिहास को खुद पढ़ना चाहिए और उसका विश्लेषण करना चाहिए हमें जो इतिहास पढ़ाया गया वह दूषित था एक एजेंडे को सर्व कर रहा था।
आजादी के बाद देश के पहले शिक्षा मंत्री बने मौलाना साहब ने यह सुनिश्चित किया कि मुगलों के द्वारा हिंदुओं पर किए गए मानवीय राक्षसी कृत्य जिनको शब्दों में कह पाना भी बहुत मुश्किल था वह ज्यादा ना पढ़ाया जाए अन्यथा हिंदू और मुसलमानों के बीच प्रेम और सौहार्द नहीं बन पाएगा यह उस समय की शिक्षा नीति का एक मूक संदेश था।
इतिहास का काम सच लिखना होता है अच्छा या बुरा नहीं
इतिहासकार इतिहास नहीं प्रकाशक की मर्जी के अनुसार राजनीतिक उपन्यास लिख रहे थे…हिंदुओं की कुरीतियों को अतिरंजित करना मुस्लिम समाज में फैली कुरीतियों पर चर्चा भी ना करना यह सब उसी एजेंडे का हिस्सा था।
इसका प्रभाव पड़ना ही था और पड़ा भी… हिंदू संवेदनशील और परिवर्तनशील होने के मूल स्वभाव के चलते अपने धर्म और धार्मिक क्रियाकलापों से हीन भावना से ग्रस्त होकर दूर होने लगे और मुस्लिम और भी कट्टर।
हालांकि आज दिन तक मुस्लिम समाज में व्याप्त अशिक्षा महिला शोषण कट्टरता कौमी विचारधारा का मूल कारण भी इसी एजेंडे को माना जा सकता है।
खिलजी से लेकर अकबर और उसकी और औलादों तक ने हिंदू रानियों और महिलाओं के ऊपर बुरी नजर रखी… क्या हमें अकबर के हरम के बारे में और मीना बाजार के बारे में पढ़ाया गया?
इतिहास साक्षी है कि किस तरह चित्तौड़ के दुर्ग में १६००० हिंदू स्त्रियों ने अपनी रानी के नेतृत्व में अपने बच्चों को सीने से लगाकर पूरा श्रंगार करके अपने शरीर को अग्नि को समर्पित करके अग्नि को भी पवित्र कर दिया था… यह बिना मतलब नहीं था हिंदुओं ने सुन रखा था कि यह नराधम महिलाओं की लाशों तक के साथ बलात्कार करते थे।
खिलजी ने जब यह दृश्य देखा तो हतप्रभ रह गया मगर अपनी नीचता के चलते उसने उस राख जिस में जिसमें रानियों और हिंदू स्त्रियों ने अपना आत्मसम्मान समर्पित कर दिया था सवा ७४ मन सोना निकलवा लिया था…!
क्या इतिहासकारों को यह इतिहास पढ़ाना गैरजरूरी लगा था?
हिंदू समाज के किन्ही किन्ही क्षेत्रों में व्याप्त पर्दा रखने या पति की मृत्यु के साथ सती हो जाने की मजबूरी को पर्दा प्रथा सती प्रथा का नाम लेने से पहले इसकी शुरुआत क्यों करनी पड़ी क्या यह बताना जरूरी नहीं था?
पर उससे मुस्लिम आक्रांताओं की अमानवीय क्रूरता सामने आ जाती है इसलिए एक तीर से दो निशाने साधे गए…अलाउद्दीन खिलजी की बर्बरता छुपा दी गई और हिंदू समाज में सती जौहर लेने वाली स्त्रियों को की मजबूरी को सती प्रथा का नाम लेकर हिंदू युवा और विचारशील हिंदुओं को अपने ही धर्म के प्रति हीनता के भाव से भर दिया गया।
क्या इतिहासकारों ने गुरु साहब के चार चार सपूतों और पत्नी के साथ किए गए औरंगजेबी अत्याचार का वर्णन किया क्या उन्होंने बताया कि किस तरह से बंदा बहादुर को इस्लाम कबूल ने के लिए मजबूर किया गया क्या वह सारे छल कपट और वादाखिलाफी जो मुस्लिम शासकों ने हिंदू राजाओं के साथ की उसका वर्णन किया गया?
हमें तो उल्टा ये पढ़ाया गया कि हिंदुओं पर हिंदू होने का जजिया कर लगाने, और हर दिन मनों जनेऊ जलवाने के बाद नाश्ता करने वाला औरंगजेब इतना शक्तिशाली था पर टोपी सीकर अपना गुजारा करता था।
दशकों तक हिंदुओं को हीन भावना से ग्रस्त करने वाला झूठा इतिहास पढ़ाया गया पर यह तो वह पढ़ रहे थे जो शिक्षित हो रहे थे पर एक बहुत बड़ा तबका पढ़ने भी नहीं जाता था इसलिए उन को प्रभावित करने के आजादी के लगभग 30 साल बाद हिंदी फिल्म उद्योग में जेहादी मानसिकता वाले पटकथा लेखको ने घुसपैठ चालू की और वही हिंदू समाज की कुरीतियों को बढ़ा चढ़ा कर और मुस्लिमों को अदब, ईमान, दोस्ती, वफादारी जैसे नैसर्गिक गुणों वाला दिखाने की कोशिशें शुरू की।
किसी फिल्मकार या पटकथा लेखक में हलाला पर, तीन तलाक पर, बुर्के पर, या चार शादियों पर कभी कोई कहानी लिखने की हिम्मत नहीं दिखाई एक फिल्म बनी हुई थी जिसका नाम था तलाक तलाक तलाक पर मुस्लिम लॉबी के दबाव में आकर उसका नाम निकाह कर दिया गया।
देश के मुस्लिमों का दुर्भाग्य भी यही रहा हीन भावना से ग्रस्त होने के बाद हिंदू अपने जीवन स्तर में इस एजेंडे के चलते सुधार करते गए, वही मुस्लिमों में यह कट्टरता और शोषण बढ़ता चला गया जो आज इस मुकाम तक आ पहुंचा है की आजादी के ७० साल बाद भी आपको तालिबान का समर्थन करने वाले वह लोग मिल जाते हैं जो आजादी के समय पैदा भी नही हुए थे।
इतिहास के साथ करी गई यह छेड़खानी हिंदुओं ही नहीं बल्कि मुस्लिमों के साथ भी धोखाधड़ी थी… इतिहास सच बताता है अच्छा या बुरा नहीं।