शेर भालू चीता ,
हाथी तक को क्या कहें ,
उसने तो कीड़े ,
मकोड़े तक को मसल डाला l
यह सच भी है कि आदमी ने ,
अपने को पृथ्वी का ,
राजा तक बना डाला l
पर इन सब में वह ,
अकेला होता चला गया l
वह भस्मासुर बन कर ,
यह सोच भी ना पाया l
जिस ऑक्सीजन से वह जीवन पाया ,
उसका एक एक कतरा ,
हरियाली और पानी से आया l
एकोहम द्वितीयो नास्ति के ,
दर्शन पर चलकर उसने ,
नदी को सुखा डाला एक एक पेड़ ,
काटकर भूमि की सरसता नमी को ,
रेगिस्तान बना डाला l
समझा भी अपनी गलती को बार-बार,
पर वह भगवान नहीं था इसीलिए ,
भरपाई भी कि उसने अपने दिमाग से ,
गढ़ कर उन चीजों से जिनसे ,
सिर्फ प्रदूषण ही बढ़ता रहा और,
इसे ही आदमी आधुनिकता और ,
प्रगति का धागा कहता रहा l
ऐसा नहीं है कि वह जानता नहीं है ,
बस सच यही है कि वह मानता नहीं है l
आज वह जीवनदायिनी पृथ्वी पर ,
नितांत अकेला रह गया है l
ना जाने कितने अवसाद ,
चिंता में हर दिन रह गया हैl
पर अब वो भी क्या सकता है ,
जब चिड़िया चुग गई खेत l
मानव खड़ा बाजार में ,
लेकर मुट्ठी में रेत l
काश मानव सच में जियो और ,
जीने दो को जान पाता तो ,
पेड़ भी होते जीव जंतु भी होते ,
मिट्टी में उर्वरकों की जगह ,
केचुआ की एक जमात भी होतीl
और उन सब के बीच में ,
आदमी हंसता हंसाता ,
एक स्वप्निल सी रात भी होती l
पर मानव तो अब ,
सर्वशक्तिमान बन गया है !
भगवान के अवतार का स्वरूप
छोड़कर शैतान बन गया है !
वोआलोक चांटिया