ये कैसा सिस्टम है भाई। किसी की गाढ़ी कमाई से कटौती और किसी का हजारों करोड़ माफी की राह पर। हां, हाल में आरबीआई ने आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले साहब के सवालों के जवाब में स्वीकार कर लिया है कि उसने 68000 करोड़ से अधिक के विलफुल डिफाल्टर का कर्जा बट्टा खाते में डाल दिया है। महत्त्वपूर्ण तो यह है कि इसी सवाल को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने फरवरी माह में लोकसभा में पूछा तो सरकार ने पूरी तरह नकार दिया था। अंत में जनसूचना के घेरे ने इस 68000 करोड़ के सरकार के महादान को सामने ला दिया है। मतलब सदन में मंत्रियों के जवाब भी विश्वसनीय नहीं रहे।
यहीं पर सवाल उठता है जिस तरह इन लोगों को माफी मिलने की प्रक्रिया में है उसी तरह किसानों को क्यों नहीं माफी मिलती। किसान को जितना देते नहीं उससे अधिक ढ़िढोरा पीटते हैं। इतना बड़ा दान अपने करीबी लोगों के लिए किए तो इसका भी ढ़िढ़ोरा पीटते। आज गैस रेलवे टिकट पर सब्सिडी देने को आम आदमी पर एहसान दिखा सरकार शर्म का एहसास कराती है जबकि वह पैसा उसी जनता के टैक्स का है। आज जनता के हजारों करोड़ पैसे को चंद लोगों को देकर माफी देते समय सरकार की शर्म और जिम्मेदारी कहां चली जाती है।
आज और दुखद व हास्यास्पद लग रहा कि केंद्रीय और राज्य कर्मचारियों-अधिकारियों व शिक्षकों ने बढ़-चढ़कर अपना वेतन कटवा तथाकथित पीएम सीएम केयर फंड में दान कराया। उसके बाद सरकार ने एक साल के लिए महंगाई सहित छह भत्ते समाप्त कर दिए।
जिसे कैलकुलेट किया जाय तो एक कर्मचारी की चालीस दिन की तनख्वाह होती है। सरकार के इस कदम से उसकी तरक्की अगले कई साल के लिए बाधित हो गई। पूरे परिवार पर असर पड़ेगा। इस तरह कर्मयोगियों की सांसत और दूसरी तरफ डिफाल्टर्स की ऐश है। सब नामी-गिरामी लोगों को फायदा पहुंचाया गया है।
एक जानकार ने कहा इसी उद्देश्य से दीवालिया कानून में संशोधन किया गया। जिसका मजा अब डिफाल्टर लोग ले रहे हैं। अभी और मजा लेंगे। बस मरेगा आम मध्यमवर्गीय व निम्नमध्यवर्गीय समाज।
यही वर्ग सबसे बड़ा देशभक्त दानी और प्राणों का न्यौछावर करने वाला है। यही नौकरीपेशा या छोटे मोटे कारोबार वाला है। जब इसके ऊपर आती है तो मदद के नाम पर नारा और कुछ कभी न पूरे होने वाले सपने दिखाए जाते हैं।इतनी ही खुराक में यह समाज गदगद हो जाता है। यही समाज धर्म जाति क्षेत्र और इससे बचा तो पाकिस्तान के मुद्दे पर लड़ मरता है। इसकी यही कमजोरी राजनीति के खिलाड़ियों के लिए मुफीद बन रही। यही वह कारण है कि सरकारें खुलेआम पक्षपाती फैसले कर रही क्योंकि उन्हें जनता की परवाह नहीं।
एक तरफ छोटे से कर्ज के कारण किसान जलील होता है। उसके नाम को नोटिस बोर्ड पर चस्पा कर बेइज्जत किया जाता है। नौकरीपेशा तमाम तरह के लोन की ईएमआई भरते भरते रिटायर होता है। उसे जरा सी डिफाल्टर होने पर जलील होना पड़ता है और भविष्य में लोन नहीं मिलता।
दूसरी तरफ डिफाल्टर्स उद्योगपतियों को बचाने छिपाने का पर्दा खुद सरकार डाल रही। ये सरकार के दो रंग है। सरकार तमाम सुविधाएं देती है लेकिन मुश्किल के समय में उन पर कोई दबाव नहीं बनाती। यदि वह कुछ दिए तो उसका कई गुना वसूल लेते हैं। बस सबसे कमजोर गर्दन कर्मचारियों व शिक्षकों की है जिस पर सरकार आसानी से छूरा चलाती है और चला रही है।
अब यह कहा जा रहा कि इन कंपनियों का कर्ज माफ नहीं किया गया है बल्कि नहीं वसूले जा सकने वाली श्रेणी में डाला गया है। मतलब ये अपने को दीवालिया घोषित करेंगे और इनके फर्म की संपत्ति एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत निस्तारित की जाएगी। इस निस्तारण में बैंक या ये खुद सारी देनदारियों का प्लान तैयार कर के देंगे। मतलब सरकार का फंसा पैसा सीधे वापस नहीं होना है। दूसरे एक ही समूह की एक कंपनी कम मुनाफे से निबटने के लिए अपने को दीवालिया घोषित कर रही है और उसकी अन्य कंपनियां बगैर बाधा चल रही है।
संभव है कि वह कंपनी स्वामी अपनी अन्य कंपनियों के जरिए दीवालिया फर्म को मामूली राशि में खरीद लें। जैसे रुचि इंडस्ट्री 2000 करोड़ का बैंक की देनदारी लेकर बैठ गई है जबकि उसके समूह की अन्य कंपनियां मुनाफे में है। वह समूह यदि 200 करोड़ में रुचि इंडस्ट्री पा जाती है तो उसे फायदा है। लेकिन बैंक की पूंजी वापस नहीं होने वाली। यदि संपत्ति सीज भी करेंगे तो भी लोन का पैसा तो वापस नहीं ही मिलने वाला है।