कहा जाता है कि इतिहास अपने को किसी न किसी रूप में दोहराता है.राष्ट्रपति रामनाथ कोविद की गोरखपुर यात्रा में य़ह दिलचस्प रूप में दिखाई दिया .राष्ट्रपति गीता प्रेस के शताब्दी समारोह में सहभागी होने गोरखपुर आए थे. 1955 में गीता प्रेस के मुख्य द्वार एवं चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के लिए देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद यहां पर आए थे। तब उनके साथ तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महन्त दिग्विजयनाथ भी थे। इसके शताब्दी वर्ष के इस समारोह का शुभारम्भ वर्तमान राष्ट्रपती रामनाथ कोविद ने किया.इस अवसर पर वर्तमान गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ उपस्थित रहे .रामनाथ कोविद ने कहा कि प्राचीन भारतीय शासकों ने प्रायः अपने शासन में धर्म का अनुपालन किया है। धर्म और शासन एक-दूसरे के पूरक हैं। आज वही दृश्य यहां देखने को मिल रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के गोरक्षपीठाधीश्वर के साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं। एक व्यक्ति में दोनों चीजें समाहित होना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। गीता प्रेस से हिन्दू परिवारों का सहज स्वाभाविक लगाव रहा है .घर के पूजा घरों में गीता प्रेस से प्रकाशित ग्रंथ सुशोभित रहते है. लगभग लागत के मूल्य पर यहां का प्रकाशित साहित्य उपलब्ध रहता था. गीता, राम रचित मानस आदि अमूल्य साहित्य भी निर्धनता परिवारों की पहुँच में रहता था .यहां से प्रकाशित कल्याण पत्रिका भी बहुत लोकप्रिय हुआ करती थी .इसमें प्रकाशित देवी देवताओं के चित्र बहुत दर्शनीयता होते थे .इस कारण घर के छोटे बच्चे भी इस पत्रिका को रुचि के साथ देखते थे .सरल भाषा शैली में पाठकों को धार्मिक कथा प्रसंगों की जानकारी मिलती थी .अध्यात्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती थी .राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने कहा भी की गीता प्रेस को भारत के घर-घर में रामचरितमानस और श्रीमद्भगवद्गीता को पहुंचाने का श्रेय जाता है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पहले लोग कल्याण पत्रिका को प्राप्त करने के लिए महीने भर प्रतीक्षा करते थे। अब तकनीक के माध्यम से यह पत्रिका सर्वसुलभ है। गीता प्रेस एक प्रेस नहीं, साहित्य का मंदिर है। सनातन धर्म को बचाए रखने में जितना योगदान मंदिरों का है,उतना ही योगदान गीता प्रेस के द्वारा प्रकाशित साहित्य का भी है। भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ज्ञान के प्रसार में गीता प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।