समीक्षक : डा.आशीष तिवारी
“मजहब से मलेरिया फैलता है”
लाल सिंह चड्ढा का यह डायलाॅग आज के परिपेक्ष्य में अक्षरशः सत्य प्रतीत हो रहा है क्यों कि आज हर मजहब को राजनीति ने नियंत्रित कर लिया है और मजहब का दुरुपयोग शीर्ष पर पहुँच गया है ।
लाल सिंह चड्ढा एक ऐसे बच्चे की कहानी है जो स्पेशल चाइल्ड है जिसके पैरों में कमजोरी है । जिसने देश की अनेक भयानक घटनाओं को रुह से महसूस किया और इन भयानक घटनाओं के प्रभाव के बावजूद वो मानवीय संवेदनाओं के शीर्ष को पाने का अनवरत् प्रयास करता रहता है और सफल भी होता है ।
लाल सिंह गुजरता है ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद के दंगों से । 1984 के दंगों में सिख समुदाय के उपर हुए भयावह हमलों को कौन भूल सकता है । उस दंगों के समय जब लाल की माँ उसके साथ ऑटो में जा रही होती है अचानक से सामने दंगाईयों का समूह आता दिखता है । ऑटो चालक ऑटो को घुमाकर भागने की कोशिश करता है पर मारा जाता है । परंतु लाल और उसकी माँ किसी तरह छिपकर जान बचाते हैं । जहाँ पर वे छिपे हैं दंगाई आसपास ही घूम रहे हैं ऐसे में लाल की माँ उसके केश खोलकर एक काँच के टुकड़े से काट देती है । ये बेहद मार्मिक दृश्य था । लाल की और उसकी माँ की भाव-भंगिमाये दिल को झकझोर देने वाली थीं ।
ये तो एक सीन था ऐसे दर्जनों सीन्स को समेटे इस फिल्म ने एक विशेष चरित्र के इर्द गिर्द एक ऐसा ताना बाना बुना है जो भारतीय दर्शकों के लिए नितांत नया है और भारतीय सिनेमा की बुलंद इमारत में एक नयी खिड़की खोलता दिखता है ।
लाल सिंह चड्ढा के रोल में आमिर खान हैं और पूरी फिल्म में आमिर की उपस्थिति साफ साफ नज़र आती है । यह फिल्म हाॅलीवुड की महान फिल्म फाॅरेस्ट गंप का आधिकारिक हिन्दी रुपांतरण है । इसमें आमिर खान के कई रूप देखने को मिले । सेना में जाने से पहले वाला गठे बदन वाला जवान, वहीं बढ़ी हुई दाढ़ी वाला वजनी सरदार । शरीर के वजन के साथ इतने बड़े हेर-फेर का कमाल हिन्दी फिल्मों में आमिर ही कर सकते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि रोल की डिमांड में कुछ भी कर गुजरने का जज़्बा लिए यह सितारा इस फिल्म की जान है और अभिनय की जिन बुलंदियों को आमिर ने छुआ है वो अद्भुत है । संवेदनहीन आँखों से भी आँसू छलका देने वाली और कठोर दिल को ठहाकों में डुबा देने वाली करामात आमिर ने कर दिखाई है । आमिर का अभिनय उनकी अभी तक की सभी फिल्मों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ है । मैं उन्हें मिस्टर परफेक्शनिस्ट नहीं मानता था पर इस फिल्म में एक एक दृश्य पर की गयी उनकी मेहनत और लगन को देखकर मैं भी मान गया हूँ ।
अन्य कलाकारों में करीना कपूर बेहतरीन रही हैं । उस रोल में करीना ने जान फूंक दी है । करीना का किरदार जटिल था जिसे करीना ने करीने से सुलझा दिया । माँ के रोल में मोना सिंह ने बेहद खूबसूरत एक्टिंग की है । नागा चैतन्य भी रोचक लगा है ।
फिल्म की कथा तो फाॅरेस्ट गंप की है । टाईम टेस्टेड है । स्क्रीन प्ले भी आकर्षक है । फोटोग्राफी बेहद आकर्षक है । इसकी शूटिंग 100 से अधिक जगहों पर हुई है । कारगिल युद्ध के दृश्य बेहद जानदार थे । इस फिल्म के डायलाॅग्स सचमुच बेहतरीन है । अतुल कुलकर्णी ने गजब मेहनत की है । फिल्म का संगीत प्रीतम का है और कमजोर है । शायद आमिर की पहली फिल्म होगी जिसका संगीत इतना कमजोर है और फिल्म का इकलौता नाॅन परफार्मर हिस्सा ।
इस फिल्म के निर्देशक अद्वैत चंदन है जिन्होंने सीक्रेट सुपरस्टार जैसी रोचक फिल्म को डायरेक्ट किया था । पर इस फिल्म को देखकर जाने क्यों महसूस होता है कि इसके अघोषित निर्देशक आमिर खान हैं । ऐसा एक बार पहले भी महसूस हुआ जब फिल्म डीडीएलजे में मेरे मन ने आदित्य चोपड़ा को निर्देशक नहीं माना बल्कि यश चोपड़ा को माना था । कुछ वैसा ही आज भी दिखा । फिर भी अद्वैत को बधाई ।
यह फिल्म एक मील का पत्थर है और भारतीय फिल्मों के गौरवशाली सफरनामें में खूबसूरती से पिरोया गया एक मोती । इस फिल्म को आमिर के सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए याद रखा जायेगा । मेरा दावा है कि फिल्म देखने के बाद आपकी आँखों में आँसू, होंठों पर मुस्कान और दिल में उम्मीदों के चिराग जरूर जल जायेंगे ।
ये फिल्म को मस्ट वाॅच की कैटेगरी में है । IMDb की रेटिंग्स पर विश्वास करना अपने आप को बुद्धू बनाने जैसा होगा ।
मेरी ओर से इस फिल्म को 4 स्टार
⭐⭐⭐⭐
(एक स्टार इसलिए कटा कि संगीत कमजोर था)