सत्यम सिंह ठाकुर, ब्यूरोचीफ, गुजरात

 

गुजरात में दीपावली और भाईदूज गोवर्धन पूजा के साथ साथ नया साल भी मनाया जाता है। वैसे तो इस दिन लोग नए वस्त्र पहन मंदिरो में दर्शन के साथ एक दूसरे के घर जाकर मुँह मीठा भी करते है। नव वर्ष की बँधाईया देते है लेकिन गुजरात के कई जिलों में नववर्ष का स्वागत कुछ अनोखी परम्पराओं के साथ किया जाता है, जो गाय और गौभक्ति से जुडी है।

तस्वीरे देखकर आप भी हैरान हो जायेंगे और सोचेंगे की आखिर ये क्या हादसा हो गया इस तरह की भगदड़ क्यों मची हुई लेकिन ये कोई हादसा नहीं है बल्कि उत्सव मनाया जा रहा है और वो भी नए साल के आगमन का। पाटन के समी और झालावाड़ जैसे इलाको में सदियों से चली आ रही परम्परा के मुताबिक नए साल का स्वागत करने के लिए ग्रामीणों द्वारा गायों को उकसा कर दौड़ लगाईं जाती है और इस दौरान उड़ रही रजकणो को प्रसाद समझ माथे पर लगाया जाता है । तस्वीरें सुरनेदरनगर के पाटड़ी और धामा गाँव की है।

वही दाहोद के आदिवासी गाय गोहरी परंपरा से नए साल का स्वागत करते है, गाय गोहरी मतलब गाय की पुजा के जरिये गाय में बसने वाले तैतीस करोड़ देवी देवताओ की पूजा ,नरक चतुर्दशी से ही ग्रामीण मोरपंख और रंगीन वस्त्रो से रंगो से गायो को सजाते है और उसके बाद शुरू होती है इन गायो की दौड़ , दौड़ती गायो के इस समूह के निचे मन्नत रखने वाले ग्रामीण लेट जाते है और कुचले जाने को प्रसाद मानते है, सबसे हैरान करने वाली बात के कोई इसमें घायल नहीं होता। आदिवासियों की मान्यता है की गाय माता के शरीर के ऊपर से गुजरने पर साल भर कोई परेशानी या बीमारी नहीं आती।

ज़माना भले ही आज डिजिटल युग में प्रवेश कर गया है , लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में प्राचीन परंपराएं आज भी जीवित हैं। ऐसी ही एक प्रथा है नए साल के दिन गायों को दौड़ाना।

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