Total Samachar राष्ट्र साधना का संकल्प

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भारतीय चिंतन में कर्मयोग और सन्यास का वृहत का वृहत विश्लेषण किया है। इन पर अमल करने वालों की अनवरत परंपरा रही है। अनगिन शासकों और राजनेताओं ने समाज के लिए निजी हित और पारिवारिक जीवन का परित्याग किया. नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ जैसे लोग आज भी इस महान विरासत को चरितार्थ कर रहे हैं. योगी आदित्यनाथ ने विधिवत सन्यास ग्रहण किया है. वह सन्यास धर्म की मर्यादाओं में रहते हुए समाज सेवा के पथ पर चल रहे हैं. अपने पूर्व आश्रम पिता के निधन का समाचार सुनते हैं. लेकिन कोरोना आपदा प्रबंधन के कार्यों में लगे रहते हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने  आध्यात्मिक रूप से सन्यास आश्रम ग्रहण नहीं किया है. वह भारतीय चिन्तन के अनुरूप सामाजिक सन्यास पर अमल करते हैं. अपनी माँ की अंतिम यात्रा में जाते हैं. इसके बाद उनका राजधर्म निर्वाह शुरू हो जाता है. पहले से तय कार्यक्रमों में कोई बदलाव नहीं किया जाता है. बाईस वर्ष के संवैधानिक दायित्व निर्वाह में एक भी दिन अवकाश ना लेने की परम्परा कायम रहती है.मुख्यमंत्री रहे तो पूरे गुजरात को समझा परिवार समझा. प्रधानमंत्री बने तो उनके परिवार में पूरा भारत आ गया. वह उदार चरित्र का परिचय देते हैं. यह मेरा है और यह पराया इस तरह की सोच संकीर्ण विचारधारा वालों की होती है लेकिन विस्तृत विचारधारा वालों के लिए तो यह सम्पूर्ण पृथ्वी ही परिवार के समान होती है। अच्छे जनसेवक पर भी यही सिद्धांत लागू होता है। नरेंद्र मोदी ने जब जनसेवा का मार्ग अपनाया तो उन्होंने इसी सिद्धांत का अनुसरण किया। नरेन्द्र मोदी की कार्य शैली विलक्षण है। राष्ट्र और समाज की सेवा में सम्पूर्ण समर्पण। इसी के अनुरूप परिवार भावना का विस्तार। एक बार उनकी माँ ने कहा था कि हमारे परिवार ने नरेन्द्र मोदी को समाज के लिए समर्पित मान लिया था, न परिवार ने कभी उनसे कोई अपेक्षा की, ना नरेन्द्र मोदी ने अपने को सीमित दायरे में रखा। मुख्यमन्त्री के रूप में वहां के छह करोड़ लोगों को अपना परिवार मानते रहे, उन्हीं के हित में कार्य करते रहे। प्रधानमंत्री बने तो 130 करोड़ लोगों तक उनका परिवार विस्तृत हो गया। आठ वर्षों तक बिना विश्राम के इस परिवार की सेवा में समर्पित हैं। यह कार्यशैली और चिंतन ही उनको विशिष्ट बनाता है। बिल्कुल अलग। नरेन्द्र मोदी के लिए जन्म दिवस और पर्व आदि भी समाज सेवा के अवसर होते हैं। नरेन्द्र मोदी दीवाली सैनिकों के बीच मनाते हैं। उनके ये आयोजन व्यक्तिगत नहीं होते।

नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को प्राथमिकता दी है व गरीब कल्याण के संकल्प से असंभव कार्यों को संभव करके दिखाया है। गरीब कल्याण, सुशासन, विकास, राष्ट्र सुरक्षा व ऐतिहासिक सुधारों के समांतर समन्वय से नरेन्द्र मोदी ने माँ भारती को पुनः सर्वोच्च स्थान पर आसीन करने के अपने संकल्प को धरातल पर चरितार्थ किया है। यह निर्णायक नेतृत्व और उस नेतृत्व में जनता के अटूट विश्वास के कारण ही सम्भव हो पाया है। एक सुरक्षित, सशक्त व आत्मनिर्भर नए भारत के निर्माता मोदी का जीवन सेवा और समर्पण का प्रतीक है। आजादी के बाद पहली बार करोड़ों गरीबों को उनका अधिकार देकर उनमें आशा और विश्वास का भाव जगाया है। भारतीय संस्कृति के संवाहक नरेन्द्र मोदी ने देश को अपनी मूल जड़ों से जोड़ हर क्षेत्र में आगे ले जाने का काम किया है। उनकी दूरदर्शिता व नेतृत्व में नया भारत एक विश्वशक्ति बनकर उभरा है। वैश्विक नेता के रूप में उनकी विशेष पहचान और छवि है। वह दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। वह कहते हैं कि अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी विरोधाभासी नहीं है।

देश की प्रगति में सभी का योगदान और महत्त्व होता है। पर्यावरण की रक्षा से देश की प्रगति हो सकती है, ये भारत ने दुनिया को करके दिखाया है। प्रकृति पर्यावरण,पशु पक्षी भारत के लिए केवल स्थिरता सुरक्षा के विषय नहीं हैं, यह हमारी संवेदनशीलता और आध्यात्मिकता का भी आधार हैं। अपने पिछले जन्म दिन पर नरेन्द्र मोदी मध्य प्रदेश के श्योपुर में स्वयं सहायता समूह सम्मेलन में सहभागी हुए। उन्होंने कहा था कि आमतौर पर वह अपने जन्मदिन पर मां से मिलते हैं। उनका आशीर्वाद लेते हैं। आज मैं उनके पास नहीं जा सका, लेकिन आदिवासी क्षेत्रों और गांवों में कड़ी मेहनत करने वाली लाखों माताएं आज यहां मुझे आशीर्वाद दे रही हैं। यह दृश्य देखकर मेरी मां को संतोष होगा कि भले बेटा आज यहां नहीं आया,लेकिन लाखों माताओं ने आशीर्वाद दिया है। नए भारत में पंचायत भवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक नारीशक्ति का परचम लहरा रहा हैं। विगत आठ वर्षों के दौरान देश में ग्यारह करोड़ से ज्यादा शौचालय बनाये गए। नौ करोड से ज्यादा उज्जवला के गैस कनेक्शन प्रदान किए गए। करोड़ों परिवारों में नल से जल की सुविधा उपलब्ध करायी गई। महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण हो रहा है। पिछले आठ सालों में स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने की दिशा में अनेक कदम उठाए गए। आठ करोड़ से अधिक महिलाएं इस अभियान से जुड़ी हैं।

सरकार का लक्ष्य हर ग्रामीण परिवार से कम से कम एक महिला को इस अभियान से जोड़ने का है। गांव की अर्थव्यवस्था में, महिला उद्यमियों को आगे बढ़ाने के लिए सरकार निरंतर काम कर रही है। एक जिला एक उत्पाद के माध्यम से हर जिले के लोकल उत्पादों को बड़े बाजारों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी महापुरूषों द्वारा देखे गए सपनों को साकार कर रहे है। विगत आठ वर्षों में अनेक योजनाओं के माध्यम से भारत को विकसित बनाने का कार्य चल रहा है। ब्रिटेन को पछाड़ कर भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था व्यवस्था वाला देश बन गया है। अपनी माँ के अंतिम संस्कार से खाली होने के तुरंत बाद मोदी वर्चुअल माध्यम से सरकारी कार्यक्रम में सहभागी हुए. हावड़ा और न्यू जलपाईगुड़ी के बीच वन्दे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को हरी झंडी दिखाई.कहा कि कनेक्टिविटी में सुधार करेगी और आर्थिक विकास और पर्यटन के लिए अधिक अवसर लाएगी। इस ट्रेन का सफर शुरू कर खुशी हो रही है। कोलकाता मेट्रो की पर्पल लाइन के जोका-तारातला सेक्शन के खुलने से दक्षिण कोलकाता के निवासियों को विशेष लाभ होगा। यह परियोजना शहरी बुनियादी ढांचे के विकास के हमारे प्रयासों के अनुरूप है।

इस सदी में देश का तेजी से विकास करने के उद्देश्य से भारतीय रेलवे के बुनियादी ढांचे को विकसित करने का अभियान पूरे देश में जारी रहेगा, ताकि रेलवे को एक आधुनिक पहचान मिले। यूपीए सरकार के समय इस परियोजना का शिलान्यास किया गया था. वर्तमान सरकार ने इस सपने को साकार किया. माझेरहाट से एस्प्लेनेड तक के बाकी हिस्सों पर भी काम तेजी से चल रहा है। इसे बहुत जल्द लॉन्च किया जाएगा। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार इस दिन प्रधानमंत्री को कोलकाता आना था, जहां हावड़ा स्टेशन पर उनका मूल कार्यक्रम आयोजित था। इस बीच सुबह के समय जब हीरा बा के निधन की खबर आई तो इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि कार्यक्रम को टाला जा सकता है। लेकिन थोड़ी देर बाद ही आधिकारिक तौर पर बताया गया कि प्रधानमंत्री वर्चुअल तरीके से कार्यक्रम में शामिल होंगे। मां के अंतिम संस्कार के बाद ही प्रधानमंत्री अहमदाबाद के राज भवन जा पहुंचे। वहां वर्चुअल माध्यम से वह कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के संबोधन के बाद पूर्वी भारत की पहली बहुप्रतीक्षित वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाई। इसके साथ ही उन्होंने कई अन्य परियोजनाओं का शिलान्यास भी किया। हावड़ा न्यू जलपाईगुड़ी के बीच ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के बाद अपने सम्बोधन में उन्होंने बंगाल की जनता से माफी मांगते हुए कहा कि वह निजी कारणों से कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके, इसके लिए वह क्षमा प्रार्थी हैं। जिस धरती से वंदे मातरम का जय घोष हुआ वहां वंदे भारत को हरी झंडी दिखाई गई।

30 दिसंबर1943 में नेताजी सुभाष में अंडमान में तिरंगा फहराकर भारत की आज़ादी का बिगुल फूंका था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल माध्यम से ही राज्य में चार और रेल परियोजनाओं का भी उद्घाटन किया। इनमें बोइंची-शक्तिगढ़ तीसरी लाइन, डानकुनी चंदनपुर चौथी लाइन, निमतिता-न्यू फरक्का डबल लाइन और अम्बारी फालाकाटा-न्यू मयनागुड़ी-गुमानीहाट दोहरीकरण परियोजनाएं शामिल हैं। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन के पुनर्विकास की भी आधारशिला रखी।

इसके बाद प्रधानमंत्री को दूसरी राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक में भी शामिल हुए। वह अपनी माँ की तबियत बिगड़ने पर देर रात से ही जाग रहे थे. करीब साढ़े तीन बजे भोर में उनका निधन हुआ. नरेन्द्र मोदी ने अपनी माता को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनकी माता की सीख थी कि काम करो बुदि्ध से और जीवन जियो शुद्धि से।
हीरा बा का जन्म 18 जून 1923 को मेहसाणा जिले की विसनगर तहसील में हुआ था। बचपन में ही हीरा बा की माता चल बसी थीं। बिन माता की हीरा बा का बचपन बहुत गरीबी में बिता। संघर्षों के कारण कम उम्र में ही उनके पास अनुभव का खजाना था। घर में बड़ी होने के कारण पूरे परिवार की जिम्मेदारी भी उठाती रहीं। बाद में छोटी उम्र में ही वडनगर के मोदी परिवार में उनकी शादी हो गई। वहां भी वे परिवार की सबसे बड़ी बहु थीं। यहां भी उनपर जिम्मेदारी बड़ी थी, लेकिन उन्होंने तनिक भी विचलित हुए बिना इसे उठाते हुए परिवार को एकजुट रखा। वडनगर के एक छोटे से घर में वे रहती थीं, जहां एक भी खिड़की नहीं थी। घर पर आर्थिक संकट के दौर में हीरा बा ने दूसरे घरों में जूठे बर्तन भी मांजे। चरखा चलाने का भी उन्होंने काम किया। वे रुई कातने का भी काम करती रहीं। उनके पांच पुत्र और एक पुत्री है।
वे छोटे पुत्र पंकज मोदी के साथ ही रहती थीं. नरेन्द्र मोदी वर्ष 2016 में अपनी माता हीरा बा को अपने साथ दिल्ली लेकर गए थे। वह कुछ दिन यहां रहीं थीं.

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