के. विक्रम राव
बहुसंख्यक मूल-भारत वासियों पर विगत छः सदियों से हो रहे भावनात्मक साम्राज्यवादी अत्याचार के खात्मे की शृंखला में एक नई कड़ी मोदी हुकूमत ने कल (29 जनवरी 2023) जोड़ दी। राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डेन में आबे ह्यात डालकर। अब यह “अमृत उद्यान” कहलायेगा, उजबेकी लुटेरों की याद मिटाकर। जहीरूद्दीन बाबर ने पानीपत के मैदान (21 अप्रैल 1526) पर भारतीय सम्राट इब्राहिम लोधी को जेहादी-युद्ध में मारने के बाद बड़ा अचंभा व्यक्त किया था कि “तीन सदियों की इस्लामी हुकूमतों के बावजूद भारत को दारुल इस्लाम नहीं बनाया गया,” (बाबरनामा)। ऐसे ही एक ऐतिहासिक क्षेपक का कल (29 जनवरी 2023) भाजपाइयी सत्ता ने पटाक्षेप कर दिया। वस्तुतः राष्ट्रीयकरण किया। “मुगल” मिटाकर, पीयूषमय बना दिया !
जनजाति (संथाली) में जन्मी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह नामकरण किया। भले ही दलित दौलतमंद मायावती ने इस नाम के परिमार्जन की निंदा की हो। इस बसपायी नेता का आरोप था कि अपनी प्रशासनिक विफलताओं पर भाजपाई पर्दा डाल रहे हैं। तुर्रा यह कि इसी बहुजन पुरोधा ने सरकारी भ्रष्टाचार में ओलंपिक कीर्तिमान रचे थे। अर्थात चलनी भी अब शोर कर रही है। उनके प्रेरक का स्मरण कर लें। “भारत छोड़ो” जनसंघर्ष में जब औपनिवेशिक ब्रिटिश-राज गुलाम भारतीय सत्याग्राहियों को गोलियों से भून रहा था और फांसी पर लटका रहा था तो गोरे वायसराय (लार्ड वेवेल) की सरकार में डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर काबीना मंत्री थे। उनकी खुली मांग थी कि अंग्रेज अभी अधिक समय तक भारत पर राज करें। अतः मायावती के विरोध का तर्क समझा जा सकता है।
यूं बेहतर होता कि मुगल गार्डेन का नाम प्रथम राष्ट्रपति, आम हिंदुस्तानी के प्रतीक, छपरा के ग्रामीण बाबू राजेंद्र प्रसाद के नाम रखा जाता। पर भाजपाई इतने उदार क्यों हो ? हालांकि स्वाधीनता सेनानी राजेंद्र बाबू अपने ही साथी जवाहरलाल नेहरू की साजिशों के शिकार रहे। ब्रिटिश वायसरायों की रंगरेंलियों का यह बगीचा अब बेहतर नाम से जाना जाएगा, आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में। भगत सिंह को फांसी देने वाले लॉर्ड इर्विन की रूह कल से सिसक रही होगी। इसी संदर्भ में पटना के निकट एक रेलवे स्टेशन जंक्शन के नाम पर आज भी डकैत बख्तियार खिलजी पढ़कर दिल दुखता है। क्रोध आता है। तुर्की कबीले के इस हत्यारे ने विख्यात नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगा दी थी। कई दिनों तक सुलगती ज्वाला में भारत का प्राचीन ज्ञान भंडार भस्म हो गया था। उनकी किताबें राख हो गई। मगर नीतीश कुमार ने कि मुस्लिम वोटों की लालच में अपने चुनाव क्षेत्र के इस स्थान से डकैत बख्तियार का नाम नहीं मिटा था। चाहते तो उसके संस्थापक पांचवी सदी के गुप्त सम्राट कुमारगुप्त के नाम पुनः रख सकते थे। इस बख्तियार ने इस महान अध्ययन-केंद्र पर हमला कर वहां संग्रहित नब्बे लाख पांडुलिपियों को जला डाला था। कई हफ्तों तक धुआं उठता रहा था। इस खिलजी लुटेरे की खुन्नस यह थी कि नालंदा का एक सामान्य अध्यापक भी उसके दरबारी आलिम से अधिक ज्ञानी थे। अर्थात भारत में सत्ता के बल पर किए गए ऐतिहासिक अन्यायों को मोदी युग में नहीं सुधारेंगे तो क्या नेहरू के नवासापुत्र आकर करेंगे ?
इस अमृत उद्यान का सर्वाधिक दिलचस्प पहलू यह है कि सभी पंद्रह राष्ट्रपतियों ने इसे अपने तरीके से संवारा। मसलन आठवें राष्ट्रपति वैष्णव विप्र रामास्वामी वेंकटरमण ने इन क्यारियों में कंटीली नागफनी (केक्टस) लगवाई थी। इस यूनानी पौधे का नाम मूलतः अरस्तू के शिष्य और वनस्पतिशास्त्र के जनक थियोफ्रेस्ट्स मेलंतास ने रखा था। इसका विशद अध्ययन किया था डेनमार्क से भारत पधारे बोटेनिस्ट कोहन गेहीर्ड कोनिग ने जो अठारहवीं सदी में मद्रास में ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार में अधिकारी रहे।
राजधानी नई दिल्ली के साम्राज्यवादी शिल्पी लुतियन्स के उद्यान निदेशक विलियम मस्टोसेन थे। तभी का उल्लेख है कि स्वाधीनता सेनानी और उत्तर प्रदेश की प्रथम राज्यपाल श्रीमती सरोजिनी नायडू ने सुझाया था कि स्वतंत्र्योपरांत मुगल गार्डन का नाम “एकता उद्यान” कर दिया जाए। मगर नेहरू सरकार को यह अमान्य रहा।
डॉ जाकिर हुसैन गुलाबों के अत्यंत शौकीन थे। उन्होंने देश-विदेश से गुलाब की कई किस्में मंगवाकर यहां लगवाई। वी.वी.गिरी और नीलम संजीव रेड्डी की बागों तथा बागवानी में खास दिलचस्पी नहीं थीं। ज्ञानी जैल सिंह को मुगल गार्डन खूब भाया। वे सुबह पाँच बजे ही इस बगीचे में सैर के लिए आ जाया करते थे। यहां पर उनके सचिव उन्हें गुरवाणी तथा रामायण का पाठ सुनाया करते थे। यहां पर जो डहेलिया अपनी मनमोहक छटा बिखेर रहा है, वह उन्हीं के प्रयासों से कलकत्ता के राजभवन से लाया गया था।
मियां फखरूद्दीन अली अहमद को तो कतई नही, लेकिन उनकी बेगम आबिदा को यह गार्डन बहुत भाया। वे घंटों इस बाग में फूलों को निहारती, उनसे बातें किया करती। डॉ शंकर दयाल शर्मा को फूलों से अधिक उनकी खुशबू से प्यार था। उन्होंने बाग में अनेक खुशबूदार फूलों को लगाने पर बल दिया था। चम्पा, चमेली, हरसिंगार जैसे भारतीय फूल इसी दौरान इस बाग में लगाए गए। वैज्ञानिक राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने प्राचीन भारतीय जड़ी बूटी के पौधे यहां रोपवाये। “आरोग्य वनम” इसका नाम रखा। प्रकृति प्रेमी डॉ कलाम को इस बाग के बोन्साई पेड़ बहुत अच्छे लगते थे। वे लगभग प्रतिदिन इस बाग में सैर करने आते थे। प्रथम भारतीय अध्यासी गवर्नर-जनरल चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने इस पंद्रह एकड़ के बगीचे के एक भाग में गेहूं उपजाया था। तब भारत मे अन्न संकट का दौर था।
फिलवक्त कथित इतिहासज्ञ रोमिला ने इस नाम परिवर्तन की आलोचना की है। रोमिला के आंकलन में बादशाह आलमगीर औरंगजेब आदर्श शासक रहा भले ही उसने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया था। गौहत्या को अनिवार्य कर दिया था। छत्रपति शंभाजी को धोखे से मरवा डाला था। संगीत को दफना दिया था। अपने सगे अग्रज दारा शिकोह का सर कलम कर पिता शहंशाह को आगरा किले को जेल में नाश्ते के वक्त तश्तरी में पेश कराया था। औरंगजेब इस मुगल गार्डेन में कभी नहीं रहा था। क्योंकि यह तब बना ही नहीं था। बना होता तो इसका नाम अवश्य “सुन्नी गुलिस्तां” होता। भारत बच गया !