Total Samachar प्रेम एक अवधारणा

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डॉ आलोक चांटिया

प्रेम एक ऐसी अवधारणा है जिसमें व्यवहार की विविधता है क्योंकि यह सामाजिक सांस्कृतिक दायरे में बनने वाले नातेदारी और काल्पनिक नातेदारी आदि सभी स्थितियों में देखने को मिलता है लेकिन उन सब के बीच में प्रेम की वही स्थिति सबसे महत्वपूर्ण स्थिति बनकर आज पूरे वैश्विक पटल पर विमर्श का कारण है जो विपरीत लिंगी यों के मध्य में संबंध की उस क्रिया पर आधारित होती है जो संतति के पैदा होने और प्रजनन की स्थितियों को परिभाषित करते हैं यह भी हो सकता है कि दो विपरीत लिंगी मानसिक रूप से एक दूसरे से जुड़ जाए और वह प्रजनन की किसी क्रिया में संलग्न ना हो लेकिन यह सब कुछ शरीर की रासायनिक क्रियाओं के प्रतिक्रिया का ही परिणाम होता है लेकिन क्या कारण है कि पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीव जंतुओं में मानव ने संस्कृति बनाने के बाद भी अपनी संस्कृति की असफलता को भी प्रत्यक्ष रूप से देखना आरंभ कर दिया है जिस तरह से विवाह टूट रहे हैं जिस तरह से संबंध विच्छेद हो रहे हैं जिस तरह से महिला का उत्पीड़न हो रहा है या अन्य विचार हो रहा है बलात्कार हो रहा है

उससे यह बात स्पष्ट होने की तरफ ज्यादा बढ़ जाती है कि क्या मानव ने संस्कृति के योन आधारित संबंधों को जबरदस्ती बना दिया या फिर प्रकृति के उन सारे जीव जंतुओं की तरह ही केवल प्रजनन काल में ही मानव भी अपनी विपरीत लिंग के साथ प्रजनन के लिए जुड़ता था और उसके बाद वहां संतान उत्पत्ति के बाद प्रकृति में ही एक सामान्य जीवन जीने लगता था और अपनी किसी भी कर्तव्य निर्वहन से वह स्वतंत्र होता था वैसे पशु जगत में मादा इस क्षेत्र में हमेशा अग्रणी की भूमिका में रही है कि वह नर के पास उपलब्ध ताकत के आधार पर यह सुनिश्चित करती थी कि उसे प्रजनन में किसके साथ रहना है लेकिन चाहे पेंग्विन हो या फिर हंस या चील यह लोग जब किसी विपरीत लिंगी के साथ एक बार जुड़ जाते हैं तो पूरे जीवनकाल उसी से जुड़े रहना चाहते हैं और ऐसी ही काम ना आपको मानव संस्कृति में गाए जाने वाले खासतौर से भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू विवाह में गाए जाने वाले गीत में सुनाई दे सकती है जिसमें वह कहते हैं दो हंसों का जोड़ा बिछड़ गयो रे

जिससे यह स्पष्ट है कि मानव ने हंस के आदर्श संबंधों के आधार पर ही अपने प्रजनन आधारित विपरीत लिंग के संबंध को स्थापित करने का प्रयास किया है लेकिन जिस तरह से संबंधों में अब एक विचलन और विघटन दिखाई देता है उससे एक्शन एंथ्रोपोलॉजी के अंतर्गत यह समझने में सहायता मिल सकती है कि वास्तव में मानव विपरीत लिंग के साथ जुड़े रहने में किस तरह के जीवन को पसंद करता था यहां इस लेख में यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण है कि क्या आज के विवाह या प्रेम संबंध इसलिए जल्दी टूट जाते हैं क्योंकि हम अपनी सांस्कृतिक जटिलताओं में अब इतना समय ही नहीं पाते हैं कि अपने विपरीत लिंगी साथी के बारे में ज्यादा जान सकें और समाजशास्त्रीय तकनीकी सर्वेक्षण की तरह ही सिर्फ इस बात पर ही अपने प्रेम को निर्भर बना लेते हैं कि किसी व्यक्ति ने आपसे यह कहा है कि वह आपसे प्रेम करता है या फिर उसने कुछ प्रेम आधारित व्यवहार करने में आपके साथ कुछ क्षण बिताया है जिसके आधार पर व्यक्ति द्वारा यह मान लिया जाता है कि सामने वाला व्यक्ति उस से प्रेम करता है लेकिन इस सर्वेक्षण यानी एक अल्पकालिक साक्षात्कार या वार्ता के माध्यम से उत्पन्न होने वाला संबंध किसी भी व्यक्ति को सामने वाले व्यक्ति की संपूर्णता में व्यवहारिक जानकारी नहीं दे पाता है और यही कारण है कि जब ऐसे व्यक्ति जोड़ते हैं और कालांतर में उन्हें सहभागी अवलोकन के माध्यम से पता चलता है कि प्रेम करने वाले व्यक्ति के व्यवहार में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो उसके जीवन के अनुकूल नहीं है तो वह उस जीवन का प्रतिकार करता है प्रतिरोध करता है और विवाह में विघटन दिखाई देने लगता है ।

प्रेम में विघटन दिखाई देने लगता है लेकिन यदि मानव शास्त्रीय तकनीकी के सहभागी अवलोकन जिसमें एक लंबे समय तक इस बात की अपेक्षा की जाती है कि जिस व्यक्ति समूह से जुड़ा जा रहा है अध्ययन किया जा रहा है उस पर एक लंबा समय दिया जाए और उस आधार पर यदि प्रेम करने की स्थिति में कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से सिर्फ अल्पकालिक संप्रेषण साक्षात्कार के माध्यम से कहे जाने वाले कि मैं तुमसे प्रेम करता हूं पर विश्वास ना करके उसके साथ एक लंबे समय तक भिन्न-भिन्न समय पर समय बिताने पर वह उसके व्यवहार के उन दूसरे पक्षों को भी जानने का अवसर पाया जाता है जिससे उसे सकारात्मक नकारात्मक उन सारे तथ्यों की जानकारी मिलती है जो उसने सर्वेक्षण तकनीकी के दायरे में प्रेम को प्राप्त करने के लिए या तो छुपा लिया था या फिर प्रेम करने वाले व्यक्ति ने ही उसको जानने का प्रयास नहीं किया था और यदि इस आधार पर संस्कृति आधारित विवाह का विश्लेषण किया जाए जिसमें माता-पिता द्वारा विस्तार से घर खानदान लड़के के बारे में पता किया जाता था आसपास के लोगों मोहल्ले गांव में पता किया जाता था नातेदार रिश्तेदारों से सारी जानकारी हासिल की जाती थी तब उन शादियों में मुख्य रूप से केवल परिवार की प्रतिष्ठा और चारित्रिक विशेषताओं को ही जाना जाता था मूल रूप से जिन लड़के लड़की को जुड़ना होता था उनकी चारित्रिक विशेषता जानना तब भी अधूरी रह जाती थी क्योंकि किसी भी समाज में लड़के लड़की को विवाह से पूर्व मिलना एक तरह का निषेध माना जाता है यही कारण है कि आज जब सशक्तिकरण के दौर में यह स्थितियां पैदा हुई हैं कि लोग समाज परिवार से इधर व्यक्तिगत स्तर पर किसी स्त्री या पुरुष के जीवन में प्रवेश करते हैं उससे जुड़ते हैं तो उन्हें यदि प्रेम के स्थायित्व के आधार पर प्रयास करने का संकल्प लिया गया है तो सर्वेक्षण के बजाय सहभागी अवलोकन के आधार पर अपने साथी के बारे में जानने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि कोई भी व्यक्ति आदर्श स्थिति में नहीं होता है जैसे पृथ्वी पर ही सब कहीं हरियाली नहीं है।

वैसे ही हर व्यक्ति में सब कुछ अच्छा हो या जरूरी नहीं है लेकिन पहले से ही सकारात्मक और नकारात्मक बातों को जान लेने से जीवन को एक उभयनिष्ठ विचारों व्यवहारों के आधार पर चलाना ज्यादा सुगम हो जाता है और यही उभयनिष्ठ विचार का अभाव आज प्रेम को सिर्फ कुछ क्षण एक दूसरे के साथ शारीरिक आनंद बिताने वाला विषय बनाई दे रहे हैं जो समाज में विचलन और कुंठा भर रहा है यही कारण है कि आज यह बहुत आवश्यक हो गया है कि जब लड़के लड़की स्वयं अपने निर्णय लेने के लिए आगे बढ़ रहे हैं या फिर परवल लोग भी शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं विधवा विवाह में आगे बढ़ना चाहते हैं तो उन्हें एक पर्याप्त समय देकर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों को दृढ़ता के साथ सहभागी अवलोकन के द्वारा समझना चाहिए ताकि मानव व्यवहार और जीवन में स्थिरता तथा सर्वेक्षण के कारण उत्पन्न हुई कुंठा विचलन मानसिक अवसाद जैसी स्थितियों से दूर रहने का एक विकल्प प्रस्तुत हो सके शायद इसी का विचार किया जाना प्रेम जैसे विषय पर आज की तारीख में आवश्यक है आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन (लेखक द्वारा विगत 2 दशकों से मानवाधिकार विषय पर जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है)

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