लॉकडाउन में फंसे मजदूरों को स्पेशल ट्रेन से घर भेजने पर किराया माफी को लेकर गरमाई सियासत की हकीकत इस ट्रेन के यात्रियों ने उजागर कर दी है। सोमवार की देर रात अहमदाबाद से जौनपुर पहुंची ट्रेन के यात्रियों ने किराया माफी के दावों को खारिज कर दिया। मजदूरों ने बताया कि उनसे अहमदाबाद से जौनपुर की यात्रा के लिए 710 रुपये लिए गए।
इसमें से 60 रुपये रास्ते में खाना-पानी के लिए लिए था, लेकिन 24 घंटे के सफर में उन्हें एक बार खिचड़ी और दो बोतल पानी ही दिया गया। ट्रेन का टिकट 630 रुपये का है, जबकि यात्रियों से 710 रुपये लिए गए। उन्हें यह बताया गया था कि बाकी पैसे से रास्ते में खाने की व्यवस्था होगी।
हालांकि यात्रा की तमाम दुश्वारियों के बावजूद यात्रियों में इस बात का सुकून था कि वह अपने घर लौट रहे हैं। ज्यादातर यात्रियों को थर्मल स्क्रीनिंग के बाद रोडवेज बसों से रात में ही घर भेज दिया गया, जबकि कई बसें सुबह रवाना हुईं।
यूपी-बिहार के कई जिलों के 1250 यात्री इस स्पेशल ट्रेन से रात करीब पौने एक बजे जौनपुर जंक्शन स्टेशन पहुंचे। रेलवे वाराणसी मंडल के अधिकारियों के साथ ही डीएम दिनेश कुमार सिंह, सीडीओ अनुपम शुक्ल, एसडीएम नीतीश कुमार, सिटी मजिस्ट्रेट सहदेव मिश्र सहित अन्य अफसर भारी फोर्स और स्वास्थ्य टीम के साथ पहले ही मौजूद रहे।
प्लेटफॉर्म पर उतरने के बाद आठ स्वास्थ्य टीमों ने यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग की। इसके बाद उन्हें स्टेशन से बाहर खड़ी रोडवेज की बसों में बैठाकर संबंधित जिले के लिए रवाना किया गया। यात्रियों को ले जाने के लिए रोडवेज की 50 बसें लगाई गई थीं। ट्रेन में सर्वाधिक 165 यात्री जौनपुर के थे। इनके अलावा अमेठी, प्रतापगढ़, गोरखपुर, जालौन, औरैया के मजदूरों की संख्या भी अधिक रही। आठ यात्री बिहार और एमपी के सवार थे।
कर्ज लेकर दिया ट्रेन का किराया
स्पेशल ट्रेन से यात्रा करने वाले मजदूरों ने लॉकडाउन के कारण परदेश में होने की दुश्वारियों का जिक्र किया तो उनके गले रुआंसे हो गए। कई यात्रियों के पास ट्रेन का किराया चुकाने को भी पैसे नहीं थे। अन्य सहयोगियों से उधार लेकर उन्होंने ट्रेन का टिकट खरीदा। औरैया निवासी सर्वेश कुमार ने बताया कि अहमदाबाद में फैक्ट्री बंद होने के बाद कमरे के अंदर कैद होकर रह गए थे। जेब में जो भी पैसे थे, वह धीरे-धीरे खत्म हो गए। लग रहा था कि अब यहीं जिंदगी खत्म हो जाएगी।
इसी बीच ट्रेन के बारे में जानकारी मिली। उधार लेकर टिकट खरीदा और ट्रेन में सवार हो गया। अच्छा है कि अब अपनों के बीच पहुंच जाऊंगा। फैब्रिक का काम करने वाले अनिल यादव का कहना था कि कारखाना बंद हो गया था, कब तक शुरू होगा यह भी पता नहीं। ऐसे में वहां रखकर भूखों मरने से अच्छा था कि घर पहुंच जाएं।
सुमित ने बताया कि 710 रुपये में ट्रेन का टिकट खरीदा है। जेब मे यही पैसे ही बचे थे। अब यहां तक आ गए, आगे की कोई चिंता नहीं। सीधे घर नहीं जाएंगे, जिससे घर वालों में संक्रमण की आशंका बने। डोभी के अर्पित पटेल ने बताया कि ट्रेन के किराए में भी 60 रुपये रास्ते मे खाने और पानी के लिए भी लिया गया था, मगर भोजन के नाम पर सिर्फ एक बार खिचड़ी मिली। दिहाड़ी मजदूर पिंटू ने बताया कि काम जब तक चालू था तब तक सेठ ने उनका ख्याल रखा। लॉक डाउन होने के बाद हमारे हाल पर छोड़ दिया।
रविवार रात करीब 1 बजे ट्रेन में बैठे थे। कटनी के पास पहुंचने पर खिचड़ी और एक बोतल पानी मिला था। पूरा सफर इसी के सहारे कटा है। जलालपुर की पूनम ने बताया कि वह तीन लोग लॉकडाउन लागू होने के बाद से ही फंसे थे। काफी जद्दोजहद के बाद किसी एक को भोजन मिलता था, उसे ही तीनों लोग खाते थे। स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ रही थी। अश्वनी कुमार ने बताया कि काम बंद होने के बाद से उनकी सुध कोई लेने वाला नहीं था। सरकार का धन्यवाद, जो उन्हें घर पहुंचा दिया। यहां तो जैसे भी जी लेंगे।