मुम्बई से अमित मिश्रा की रिपोर्ट…
सिंगर व म्युज़िक डायरेक्टर शिवराम परमार से टोटल समाचार के वरिष्ठ सहयोगी अमित मिश्रा की खास बातचीत के प्रमुख अंश
शिवराम परमार का नाम आज बॉलीवुड और म्युज़िक एलबम इंडस्ट्री में सम्मान के साथ लिया जाता है. पंडित नरेंद्र शर्मा और अनिल विश्वास जैसे दिग्गजों के साथ काम कर चुके शिवराम ने करीब तीन हजार गानों की धुन बनाई है बल्कि दर्जनों अलबमों-फिल्मों में संगीत देकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. वे अच्छे सिंगर भी हैं और एक अच्छे इंसान भी. प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
कुछ आप अपने बारे में बताइए शिवराम जी ?
मेरा जन्म गुजरात के राजपिपला गांव में हुआ. मेरे माता-पिता दोनों शिक्षक हैं. घर में शुरू से भक्ति-भाव तथा भजन का माहौल रहा है. मेरे पिताजी को पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी के हाथों से सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुका है . मेरे घर में स्वाध्याय का माहौल था . पिताजी भाईलाल भाई परमार स्वाध्याय तथा भजन के दौरान हारमोनियम बजाते थे. तब मैं भी हारमोनियम बजाने की कोशिश करते-करते सीख गया. रात को सोते समय रेडियो पर पुराने गाने सुनता और 13-14 साल की उम्र से ही मैंने मन ही मन यह तय कर लिया था कि एक दिन मुंबई जाकर संगीतकार बनूँगा. मेरी मेहनत व संघर्ष रंग लाया और आज नतीजा आपके सामने है.
संगीत का सफर कैसे शुरू हुआ था ?
स्कूल की पढ़ाई के बाद मैंने बरोड़ा जाकर म्युज़िक कॉलेज में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया. राजपिपला की महारानी रुकमणी देवी और मेरे स्कूल के प्रिंसिपल दिनशा घम्मिर जी के प्रोत्साहन से कॉलेज के बाद पुणे जा कर माणिकबुआ ठाकुर दास और आशावरी पटवर्धन से गुरु शिष्य परंपरा के तहत मैंने संगीत की तालीम ली. उसके बाद मुंबई आकर पंडित नरेंद्र शर्मा और अनिल विश्वास जी के साथ करीब तीन हजार से भी ज्यादा गानों की धुन बनाई.
मुंबई में आकर क्या आपको कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
जब मैं पहली बार मुंबई आया तो विरार से काफी दूर एक खंडहर जैसी जगह थी जहां मैं रहता था. मुंबई में पैसा कमाने के लिए शुरू में मैंने लोगों को संगीत सिखाना शुरू किया. जिस दिन क्लास नहीं होती उस दिन फिल्मी लोगों से जाकर मिलता व काम मांगता था . यह सिलसिला तकरीबन 3-4 साल तक चला. रोज विरार से चर्चगेट वाली मुंबई की लोकल ट्रेन में दो डिब्बों के बीच बैठकर सफर करता. चुनौतियां काफी आईं पर हर रात सोने से पहले अपने आप से यही कहता कि हारकर वापस अपने गांव राजपिपला नहीं जाऊंगा. यहीं संघर्ष करूँगा.
बतौर म्युज़िक डायरेक्टर आपको कैसे ब्रेक मिला?
सात-आठ सालों तक कई बड़ी म्युज़िक कंपनिओंऔर स्टूडियोज़ में एक असिस्टेंट के तौर पर काम किया और सीखा. शुरू में सभी प्रोजेक्ट में एक असिस्टेंट के तौर पर ही काम किया था, लेकिन 2010 के बाद मुझे अपने काम की वजह से सीधे साइन किया जाने लगा. बतौर म्युज़िक डायरेक्टर मेरी पहली हिंदी फिल्म लेडिस फर्स्ट थी जो इतनी चली नहीं लेकिन उसका संगीत पसंद किया गया था . उसके बाद कई प्रोजेक्ट मिलना शुरू हो गए.
संगीत के सफर में अब तक आपने कितना काम किया है ?
मेरे हिसाब से अब तक मैंने जो काम किया है उससे कई ज्यादा मुझे काम करना है. मेरे सफर की यह पहली सीढ़ी है, मुझे काफी दूर जाना है. मेरे सफर की बात करें तो 2015 में मैंने अपना खुद का स्टूडियो “ShivAmee Music Factory” अंधेरी में खोला और तकरीबन तीन से चार फिल्में और 15 से 20 एल्बमों में अपना संगीत दिया . मेरी हिंदी फिल्म ” टर्निंग प्वाइंट ” का संगीत काफी लोकप्रिय हुआ था. जावेद अली ,पलक मुच्छल ,अलका याग्निक, साधना सरगम ,अनुराधा पौडवाल ,कुमार सानू ,विनोद राठौड़ करसन सागठीया ओसमान मीर व उदित नारायण जैसे लोकप्रिय गायकों के साथ काफी काम किया है.कुछ मारवाड़ी व भोजपुरी फिल्मों में भी मैंने संगीत दिया है.
सुना है आप सरकारी काम भी काफी करते रहे हैं ?
जी अमित जी, जब भी मौका मिले देश के लिए , सरकार के लिए कुछ ना कुछ करने की कोशिश करता हूं. 2014 में विधानसभा चुनाव में हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लिए मैंने काफी गाने बनाए थे,जो चुनावी अभियान में उपयोग में लिए गए. उनमें से मोदी वर्सेस ओबामा काफी हिट हुआ था . Statue of unity का थीम सॉन्ग “सरदार वल्लभ भाई पटेल” भी मैंने ही बनाया है जो काफी लोकप्रिय हुआ है.
अपने भविष्य के काम के बारे में भी कुछ बताइए ?
फिलहाल मैं पद्मश्री डॉ सोमा घोष के साथ मिलकर कुछ बड़ी फिल्मों और कुछ गज़ल एल्बमों में अपना संगीत दे रहा हूं. 1-2 फिल्में फिलहाल ऑन लोकेशन शूट पर हैं.
आजकल के दौर के संगीत के बारे में आपका क्या ख्याल है?
हम पश्चिमी संगीत में डूबते जा रहे हैं . मेरा मानना है के भारतीय संगीत अपनी छवि भारत में ही खो रहा है और मैं उसी संगीत को भारतीय लोगों में फिर से बिखेरना चाहता हूं. हमारे संगीत में जो रूह है जो सुकून है वह किसी भी देश के संगीत में नहीं है. यह बात हमें भूलनी नहीं चाहिए.
आप इस lockdown के दरमियान क्या कर रहे हैं?
इस lockdown में 22 मार्च से रोजाना रात 8:00 बजे अपने फेसबुक पर लाइव जाकर लोगों को एंटरटेन करने की कोशिश कर रहा हूं. हर रोज एक नए राग व उनकी कुछ जानकारियों के साथ दर्शकों को भारतीय संगीत के बारे में कुछ दुर्लभ बातें बताते आ रहा हूं. मेरे हिसाब से यह ऐसे कठिन समय में सकारात्मक ऊर्जा देने का एक प्रभावी जरिया है.
आपके हिसाब से एक संगीतकार का क्या कर्तव्य है ?
राग-रागिनियों और शास्त्रीय प्रतिभा से पूर्ण संगीत जो हमारे भारत का एक अमूल्य खजाना है ,उसी संगीत को वापस जागृत करना हर एक संगीतकार का कर्तव्य है. इसी सोच के साथ अपने हर एक गाने में मैं वही मेलडी ,वही मिठास और वही अमरता लाने की कोशिश करता हूं.