वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की कलम से
अब हम आते हैं सिलसिलेवार उद्यम पर जिनके सामने संकट बड़ा दिख रहा है जो पूरी तरह उखड़ सकते हैं।
होटल और रेस्टोरेंट
इसमें बड़े से लेकर छोटे सभी तरह के कारोबारी ही नहीं स्ट्रीट वेंडर्स तक भविष्य को लेकर चिंतित हैं। लाक डाउन समाप्ति के बाद भी ग्राहक उनके यहां आएंगे कहना मुश्किल है। कोरोना से सुरक्षा के सारे इंतजाम भी विश्वास कायम कर पाएंगे। इसमें संदेह है। उद्यमी के साथ काम करने वाले भी प्रभावित होंगे।
पर्यटन
होटल से जुड़ा टूरिस्ट पैकेज का काम भी पटरी पर आएगा यह कहना मुश्किल है। इस कारण भी बड़े और मझोले होटल कारोबारी मुश्किल में है। बनारसी साड़ी और कार्पेट कारोबारी कह रहे कि हमारा पूरा धंधा विदेशी टूरिस्ट से जुड़ा है जब वह नहीं आएगा तो हम कहां ठहरेंगे। ऐसे तमाम हैंडीक्राफ्ट उद्योग जो अच्छा काम कर रहे थे। वह भी ठप होंगे। इस तरह ये उद्यम ही नहीं इनमें या इनसे जुड़े काम करने वाले लाखों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट होगा। इसमें बुनकरी का काम करने वाला एक बड़ा वर्ग पूरी तरह सड़क पर आने की स्थिति में होगा।
आइसक्रीम कोल्डड्रिंक
ये कारोबार सीजनल भले है लेकिन बड़े पैमाने पर रोजगार देने के साथ ही अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी वाला भी है। लखनऊ महानगर क्षेत्र के आइसक्रीम वेंडर गुप्ता जी और उनके बेटे अंंकुुर जो अपनी सेल से हर साल एक बाइक इनाम में पाते हैं वह मिले उदास थे। बोले अप्रैल से सीजन अक्टूबर तक चल जाता है। शेष समय चुनिंदा आइसक्रीम के शौकीन आते हैं लेकिन इस कोरोना ने तो रोजी-रोटी का संकट खड़ा कर दिया है। फल की दुकान लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। वह कहते हैं मेरा ही नहीं आइसक्रीम कंपनियों की भट्ठा बैठने की नौबत है। वह सीजन की पूरी तैयारी में थे। यही हाल कोल्डड्रिंक का है।
विज्ञापन
जब बड़े कारोबार ध्वस्त होंगे तो उनके विज्ञापन से जुड़ी एजेंसियां और टीवी चैनलों व अखबारों की आय भी प्रभावित होगी क्योंकि आइसक्रीम और कोल्डड्रिंक कंपनियां नियमित विज्ञापनदाता हैं। हालांकि मीडिया को इसके एवज में कोरोना के कारण विकसित नए क्षेत्र विज्ञापन देंगे। मसलन सैनिटाइजर, हैंडवास की कंपनियों के साथ ही आयुर्वेदिक दवाओं की लेकिन पूरी भरपाई नहीं होगी। इस विज्ञापन के काम से जुड़े बहुत से लोगों के सामने नौकरी का संकट खड़ा होगा।
फिल्म उद्योग
फिजिकल डिस्टेंस की शर्त पर थिएटर खुलेंगे लेकिन उसे रफ्तार पकड़ने में वक्त लगेगा। फिल्मों की कमाई पर इसका असर पड़ेगा।
चाट गुलगप्पे व चाउमिन
शहर से लेकर कस्बे व गांव के बाज़ार तक में ठेले पर ये दुकानें सजतीं रहीं हैं। इनका अच्छा खासा कारोबार रहा है। इनके सामने भी कोरोना ने संकट ला दिया है।
चाय-पान
इनके सामने भी संकट होगा अपने ग्राहकों को संतुष्ट करना कि हम सैनिटाइज्ड हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल जनता उस पर भरोसा करेगी तब न।
इस तरह कम अधिक लगभग सभी उद्योगों के सामने अपने को फिर से खड़ा क वोरने की चुनौती है। ये कहना कि सिर्फ बड़े उद्योगपति मुश्किल में है गलत होगा। छोटे छोटे स्वरोजगारी व कामगार भी बेकारी के मुहाने पर हैं। मांग खत्म होने पर कालीन और साड़ी के बुनकरों के सामने भी भुखमरी होगी। बड़े लोग तो सरकार के पैकेज और बैंक की बैसाखी से संकट पार कर भी लेंगे लेकिन ये छोटे छोटे स्ट्रीट वेंडर, स्वरोजगारी व बुनकर मजदूरों की कौन सुनेगा। उन्हें कहां कौन पैकेज देगा।
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