शरद दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार….
रमपतिया के चिल्लाते ही बटेसर साइकिल छोड़कर अंडकोष पकड़कर लेट रहा.. वो दौड़ी.. माजरा समझा.. मदार के पत्ते लायी हल्दी चूना लगाकर दिया..कहा.. लेव बांधि लेव..कूचि आयेव.. अब हाय हाय कै रहे हव..सुद्ध साइकिलौ नाय चलाय पावत.. बटेसर ने आपदा को अवसर बनाया..गुस्सायी रमपतिया को छेड़ते हुए बोला.. तुमहे बांधि देव.. रमपतिया शरमा गयी.. बोली.. धत्.. थुल्ल क बप्पा.. तुमहू न.. अगले दिन बटेसर उठा तो देखा कि अंडकोष शुतुरमुर्ग के अंडों के बराबर हो गये.. क्या क्या नहीं किया बटेसर ने अंडकोषों को पुराने स्वरूप में वापस लाने के लिए.. चुंगी वाले डा विश्वास की चांदसी क्लीनिक गया..
डा विश्वास कमर के नीचे और घुटने के ऊपर के हर प्रकार के रोगों के विशेषज्ञ थे.. खूब चूरन चटनी चटाई.. मलहम दिया लेकिन अंडकोष वापस स्लिम नहीं हुए.. ससुराल तक में हल्ला हो गया..जीजा केरे हाइडरोसील हुई गवा..एक दिन ससुर साइकिल से घर आ पहुंचे.. हाथ में पोटली थी जिसमें कुछ बंधा था.. बटेसर ने पांव छूकर खटिया पर बैठाया.. वैसे तो अवध प्रांत में परंपरा है कि सास ससुर दामाद के पैर छूते है लेकिन बटेसर को झेंप होती थी लिहाजा जिद करके वो ही सास ससुर के पैर छूने लगा.. बस कोशिश ये करता कि ऐसा करते वक्त कोई उसे देख न पाये..एक बार हमजोली भूरे ने ससुर के पैर छूते देख लिया था.. सबके सामने इज्जत उतार दी थी.. चदऊ, ससुर क ग्वाड़ छुअति हैय.. गुलाम सार.. तब से पैर छूते वक्त बटेसर अगल बगल देख लेता है.. पैर छुआई की औपचारिकता के बाद ससुर ने गहरी सांस भरकर कहा.. भैया अब हालु कैस है? .. बटेसर इशारा समझ कर शरमा कर बोला.. कोई फायदा नाय बप्पा..
बंगाली डाकटर कहियां दिखायेन.. बड़ी गरम दवाई दिहिस.. मुल पटकि (सूजन खत्म) नाय रहे.. ससुर ने पोटली से जड़ी बूटी निकाली.. हमरे इहां रामखेलावन बैद हैंय.. उई भटकटैया केरी जड़ दिहिन हैय..कहत रहैं, पुरान ते पुरान हाइडरोसील नीक होई जात.. यहिका खावौ.. भगवान चहिहैं तौ फोता पटकि जईहै.. ससुर केवल भटकटैया की जड़ देने आये थे.. रमपतिया से हालचाल लिया और चले गये..बटेसर ने दो महीने तक ससुर का दिया नुस्खा इस्तेमाल किया लेकिन मजाल है कि अंडकोष दुबलाएं.. बीमार की परेशानी बीमार के अलावा कोई नहीं समझ सकता.. बीमार आदमी से कोई कहे कि चिरैता में नीम, करेला और कालीमिर्च मिलाकर खा जाओ तो वो महीनो खायेगा.. किसी ने कहा कि शहर में होम्योपैथी के डाक्टर बैठते है.. उन्होंने कन्हई का बवासीर ठीक कर दिया था..बटेसर उस डाक्टर के पास भी गये.. डाक्टर साहब ने एकोनिटम नैपेल्लस, ब्रोमियम, क्लेमैटिस इरेक्टा, हैमेमेलिस वर्जिनियाना, थूजा आदि प्रचलित दवाएं आजमा ली लेकिन मजाल है कि अंडकोषों का व्यास कम हो जाये..लेकिन व्यास इंच आध इंच बढ़ा ही होगा, घटा रत्ती भर नहीं.. आखिरकार बटेसर जिला अस्पताल की शरण में गया..
डाक्टर साहब ने पायजाम उतरवाया.. निरीक्षण करने के बाद हंसी दबाते हुए कहा..पानी भरा है.. आपरेशन होगा.. दस हजार रुपये लगेंगे.. बटेसर लगभग उछल पड़ा.. दस हजार रूपया! डाकटर साहेब.. हम तौ सुने रहन फिरी इलाज होत हय.. डाक्टर साहब पुराने घाघ थे.. रोजाना ऐसे मरीजों से पाला पड़ता था.. बोले.. प्राइवेट की फीस है.. सरकारी में अगर नस कट गयी तो कुछ भी हो सकता है.. आये हो पानी निकलवाने मालूम पड़े फोतों में जान ही न रह पाये.. बच्चे वच्चे हैं कि नहीं?..ये सवाल सुनकर बटेसर के होश उड़ गये.. भाग खड़ा हुआ.. प्राइवेट इलाज के लिए दस हजार रुपये नहीं थे.. सरकारी में बधिया होने का डर था.. बटेसर ने ठान लिया कि अब इसी के साथ जियेंगे.. गांव के मैकू क एक हाथ चारा खांदै वाली मशीन तेने कट गवा रहै .. का ऊ जिंदा नाय है?.. होई .. अब दर्द नाय होत.. भटकटैया केरी जड़ खाइब.. ठीक होयक होई तौ होई जाई.. नाय तौ कौनो बात नहीं.. तब से हेल्दी अंडकोष बटेसर के लिए कोई अहमियत नहीं रखते.. लेकिन गांव वाले.. वो मुरहे हैं.. मौका देखते चुहल ले लेते है.. सबसे ज्यादा खुराफात परकास को सूझती है.. का भई माखनलाल फोतेदार.. का हाल हैय? फोता का पटके नाय.. बटेसर भी जवाबी तलवार भांज देता..घरैतिन तेने पूछेव.. ऊई जनती हैंय.. का तुमका बताइन नाय.. परकास महा का बेशर्म आदमी.. हीं हीं करके निकल लेता..बहरहाल , अतीत से निकलकर वर्तमान पर आते हैं.. बटेसर साइकिल पर बैठने की जुगत कर रहा है.. सुरैंचा की बाजार जो जाना है..