मुकेश पाण्डे, वरिष्ठ पत्रकार…
अशोक सिंघल राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी नेता थे। चार साल पहले ही उनका निधन हुआ है। सिंघल 20 साल तक विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कार्यकारी अध्यक्ष रहे. माना जाता है कि सिंघल ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने अयोध्या विवाद को स्थानीय ज़मीन विवाद से अलग देखा और इसे राष्ट्रीय आंदोलन बनाने में अहम भूमिका निभाई.
सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर कहा था कि, ”जीत की इस घड़ी में हमें अशोक सिंघल को याद करना चाहिए। नमो सरकार को उनके लिए तत्काल भारत रत्न की घोषणा करनी चाहिए.”।
राम मंदिर आंदोलन में 1990 के दशक में बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी सबसे प्रमुख चेहरा बने इसीलिए जब सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फ़ैसला आया तो केंद्र में बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिव सेना के मुखिया उद्धव ठाकरे ने कहा कि वो आडवाणी से मिलने जाएंगे और उन्हें बधाई देंगे, “उन्होंने इसके लिए रथ यात्रा निकाली थी. मैं निश्चित रूप से उनसे मिलूंगा और उनका आशीर्वाद लूंगा.”
बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने ट्वीट कर अशोक सिंघल और आडवाणी का अभिनंदन किया। उमा भारती अदालत का निर्णय आने के तुरंत बाद आडवाणी से मिलने उनके घर गईं, उन्होंने मीडिया से कहा कि “आज आडवाणी जी के सामने माथा टेकना ज़रूरी है.”
उन्होंने ट्वीट कर कहा है, “लालकृष्ण आडवाणी जी का अभिनंदन जिनके नेतृत्व में हम सब लोगों ने इस महान कार्य के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था”
खुद उमा भारती भी राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी थीं और राजनीति में प्रवेश के बाद मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रहीं और बीजेपी से बग़ावत की और फिर बीजेपी में लौट आईं। वो नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में मंत्री भी रहीं। सवाल उठता है कि राम मंदिर के मामले में किसी एक को कैसे श्रेय दिया जाए क्योंकि इसके कई चेहरे रहे हैं। सु्प्रीम कोर्ट के फैसले से पहले अयोध्या मामला कई पड़ावों से होकर गुजरा और इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से जुड़े कई वरिष्ठ नेताओं की अहम भूमिका रही थी।
ऐसे नेताओं में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, प्रवीण तोगड़िया और विष्णु हरि डालमिया के नाम प्रमुख रहे हैं। इनमें गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी प्रमुख चेहरा थे।
राम मंदिर की मांग को लेकर चले आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वालों में ये रहे शामिल :
अशोक सिंघल :
मंदिर निर्माण आंदोलन चलाने के लिए जनसमर्थन जुटाने में अशोक सिंघल की अहम भूमिका रही। कई लोगों की नजरों में वे राम मंदिर आंदोलन के ‘चीफ़ आर्किटेक्ट’ थे। वे 2011 तक वीएचपी के अध्यक्ष रहे और फिर स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। 17 नवंबर 2015 को उनका निधन हो गया।
लालकृष्ण आडवाणी :
लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की थी। हालांकि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर ज़िले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। चार्जशीट के अनुसार, आडवाणी ने छह दिसंबर 1992 को कहा था, ”आज कारसेवा का आखिरी दिन है.” आडवाणी के ख़िलाफ़ मस्जिद गिराने की साज़िश का आपराधिक मुकदमा अब भी चल रहा है।
महंत अवेद्यनाथ :
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु गोरक्षनाथ पीठ के महंत रहे अवेद्यनाथ मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरा थे। वे ‘श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति’ के अध्यक्ष थे। महंत अवेद्यनाथ के दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस के साथ बेहद अच्छे संबंध थे। रामचंद्र परमहंस राम जन्मभूमि न्यास के पहले अध्यक्ष भी थे, जिसे मंदिर निर्माण के लिए गठित किया गया था।“माना जाता है कि छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने का प्लान उनकी देखरेख में तैयार किया गया था. मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद ने इलाहाबाद में जिस धर्म संसद (साल 1989 में) का आयोजन किया, उसमें अवैद्यनाथ के भाषण ने ही इस आंदोलन का आधार तैयार किया।
मुरली मनोहर जोशी :
1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय मुरली मनोहर जोशी आडवाणी के बाद बीजेपी के दूसरे बड़े नेता थे। छह दिसंबर 1992 को घटना के समय वह विवादित परिसर में मौजूद थे। गुंबद गिरने पर उमा भारती उनसे गले मिली थीं। वह वाराणसी, इलाहाबाद और कानपुर से सांसद रह चुके हैं। इस समय वह बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हैं।
कल्याण सिंह :
छह दिसंबर 1992 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे। उनपर आरोप है कि उनकी पुलिस और प्रशासन ने जान—बूझकर कारसेवकों को नहीं रोका। बाद में कल्याण सिंह ने बीजेपी से अलग होकर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई लेकिन वो फिर बीजेपी में लौट आए। कल्याण सिंह का नाम उन 13 लोगों में शामिल था जिन पर मस्जिद गिराने क साज़िश का आरोप लगा है।
विनय कटियार :
राम मंदिर आंदोलन के लिए 1984 में ‘बजरंग दल’ का गठन किया गया था और पहले अध्यक्ष के तौर पर उसकी कमान आरएसएस ने विनय कटियार को सौंपी थी। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने जन्मभूमि आंदोलन को आक्रामक बनाया। छह दिसंबर के बाद कटियार का राजनीतिक कद तेजी से बढ़ा। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव भी बने। कटियार फ़ैज़ाबाद (अयोध्या) लोकसभा सीट से तीन बार सांसद चुने गए।
साध्वी ऋतंभरा :
साध्वी ऋतंभरा एक समय हिंदुत्व की फायरब्रांड नेता थीं। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में उनके ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश के आरोप तय किए गए थे। अयोध्या आंदोलन के दौरान उनके उग्र भाषणों के ऑडियो कैसेट पूरे देश में सुनाई दे रहे थे जिसमें वे विरोधियों को ‘बाबर की आलौद’ कहकर ललकारती थीं।
उमा भारती :
मंदिर आंदोलन के दौरान महिला चेहरे के तौर पर उनकी पहचान बन कर उभरीं। लिब्रहान आयोग ने बाबरी ध्वंस में उनकी भूमिका दोषपूर्ण पाई। उनपर भीड़ को भड़काने का आरोप लगा जिससे उन्होंने इनकार किया था। वह केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रहीं, हालांकि ने 2019 के संसदीय चुनावों से अलग रहीं और बीजेपी की जीत के बाद वो मंत्री भी नहीं रहीं।
प्रवीण तोगड़िया :
विश्व हिंदू परिषद के दूसरे नेता प्रवीण तोगड़िया राम मंदिर आंदोलन के वक्त काफी सक्रिय रहे थे। अशोक सिंहल के बाद विश्व हिंदू परिषद की कमान उन्हें ही सौंपी गई थी। हालांकि हाल ही में वीएचपी से अलग होकर उन्होंने अंतराष्ट्रीय हिंदू परिषद नाम का संगठन बनाया।
विष्णु हरि डालमिया :
विष्णु हरि डालमिया विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ सदस्य थे और वह संगठन में कई पदों पर रहे। वह बाबरी मस्जिद ढहाए जाने मामले में सह अभियुक्त भी थे। 16 जनवरी 2019 को दिल्ली में गोल्फ लिंक स्थित उनके आवास पर उनका निधन हो गया।
ये सूची और लंबी है, लेकिन श्रेय चाहे किसी को दिया जाए, एक बात बिल्कुल साफ़ है कि इस आंदोलन ने राजनीतिक रूप से हाशिए पर रही बीजेपी को वो राजनीतिक समर्थन दिलाया जिस पर सवार होकर वो केंद्र में पहले गठबंधन और फिर अपने बूते सरकार बनाने में सफल रही।