सिद्धार्थ सिंह, मध्यप्रदेश…
आज हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसे किले के बारे में जिसका रहस्य आजतक कोई नहीं सुलझा पाया। यहां तक की वैज्ञानिक भी नहीं ।
इस किले कि कहानी जितनी रोचक है उतना ही इससे जुड़ा रहस्य या फिर कहें तो भूतिया रहस्य। यहां भूतिया शब्द का इस्तेमाल करने का सबसे बड़ा कारण है कि इस किले के अंदर आजतक जो भी गया है वो कभी लौटकर नहीं आया। दरअसल हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के निवाड़ी जिले में उत्तर प्रदेश के झांसी से 70 किलोमीटर दूर स्थित “गढ़ कुंडार” के किले की।
इस किले में कुछ तो ऐसा है की ये कौतूहल का केंद्र बना रहता है और उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है इसकी रहस्यमय बनावट और इस तक पहुंचने का रास्ता।
वैसे ये किला सात मंजिला है। 2 मंज़िल ज़मीन के ऊपर और बाकी ज़मीन के नीचे बनी हुई हैं जिन्हें अब सरकारी आदेश के बाद बंद कर दिया गया है क्यूंकि इस किले के भुलभुलैया ऐसी है कि जो भी नीचे गया है कभी लौटकर नहीं आया कहा तो यहां तक जाता है कि एक बार एक बारात यहां घूमने आई थी जिसमे लगभग 70 लोग थे पर सारे के सारे कहां गायब हो गए आजतक किसी को नहीं पता।
इतना ही नहीं जब हम इस किले तक जाने के लिए चले तो जिस रास्ते पर ये किला दिखता है अचानक उस रास्ते से ही वो गायब हो जाता है और हम कहीं और ही पहुंच जाते हैं। मतलब ना सिर्फ किले में भुलभुलैया है बल्कि यहां तक पहुंचने वाला रास्ता भी किसी भूलभूलैया से कम नहीं है।
इस किले का इतिहास भी कुछ कुछ अनबूझ पहेली जैसा लगता है. यहाँ चंदेलो का पहले से ही एक किला था। जिसे जिनागढ के नाम से जाना जाता था. खंगार वंशीय खेत सिंह बनारस से 1180 के लगभग बुंदेलखंड आया और जिनागढ पर कब्जा कर लिया. उसने एक नए राज्य की स्थापना की. उसके पोते ने किले का नव निर्माण कराया और गढ़ कुंडार नाम रखा. खंगार राजवंश के ही अन्तिम राजा मानसिंह की एक सुंदर कन्या थी। जिसका नाम केसर दे था। जिसकी सुंदरता की चर्चा दिल्ली तक थी। बस फिर क्या था दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने उस कन्या से शादी करने का प्रस्ताव भेजा। परन्तु केसर दे ने प्रस्ताव ठुकरा दिया। सन् 1347 में मोहम्मद तुगलक की सेना ने गढ़ कुंडार पर आक्रमण कर किले को अपने कब्जे में ले लिया. किले में स्थित केसर दे और अन्य महिलाओं ने अपनी अस्मिता को बनाए रखने के लिए किले के अन्दर बने कुवें में कूद कर अपनी जान दे दी थी। केसर दे के जौहर की गाथा लोक गीतों में भी पायी जाती है. मोहम्मद तुगलक ने किले और विजित भूभाग को बुंदेलों को सौंप दिया। बुंदेला शासक वीर सिंह जूदेव ने गढ़ कुंडार की मरम्मत भी करवाई थी।
एक दूसरी कहानी भी है जिसमे मोहम्मद तुगलक के आक्रमण का ज़िक्र नहीं है बल्कि सन् 1257 में सोहनपाल बुंदेला द्वारा छल कपट से खंगारों के कत्ले आम का उल्लेख मिलता है। स्थानीय लोग तो यहां तक कहते हैं कि अगर किले का रहस्य सुलझा लिया जाए तो अरबों रुपए का खजाना मिल सकता है।
लेकिन इन सब बातों इतने रहस्य और कारीगिरी के इस बेजोड़ नमूने ने सरकार की अनदेखी के कारण लगभग अपना अस्तित्व खो सा दिया है, डा. व्रिंदावन लाल वर्मा जी द्वारा लिखे उपन्यास से भी इसे समझा जा सकता है ।