डॉ दिलीप अग्निहोत्री
अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण हेतु भूमि पूजन से आध्यात्मिक चेतना का संचार हुआ है। पांच शताब्दियों के बाद ऐसा वातावरण परिलक्षित हुआ। लेकिन यह भी अनुभव किया जा सकता है कि पिछली दो दीपावली को लाखों दीपों के प्रज्वलन से यहां की उदासी दूर होने लगी थी। एक प्रकार के सकारात्मक वातावरण बनने लगा था। प्रभु राम के वनगमन के बाद अयोध्या में चौदह वर्षों तक उदासी का माहौल था। प्रभु राम के वापस लौटने पर यहां के लोगों ने दीपोत्सव मनाया था। इसी के साथ उत्साह रूपी प्रकाश का संचार हुआ था,उदासी का अंधकार तिरोहित हो गया था। भारतीय दर्शन में इसकी कामना भी की गई-
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।।
इस स्थान पर बहुत बाद में कभी श्री राम जानकी का मंदिर बना होगा। पूजा अर्चना की गूंज से आध्यात्मिक चेतना का वातावरण रहा होगा। लेकिन विदेशी आक्रांता बाबर ने इस मंदिर का विध्वंस कराया। एक तरफ जन्मभूमि को मुक्त कराने के आंदोलन समय समय पर चलते रहे,दूसरी तरफ जनमानस में मंदिर विध्वंश के कारण उदासी का भाव भी रहा होगा। कुछ वर्ष पहले तक अयोध्या में इसका अनुभव भी किया जाता था। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने इस ओर ध्यान दिया। ऐसा नहीं कि यहां पहले दीपावली नहीं होती था,लेकिन उसका स्वरूप त्रेता योग जैसा नहीं था। योगी ने अयोध्या के विकास व त्रेता युग जैसे दीपोत्सव आयोजित करने के निर्णय लिए। यह भव्य दीपोत्सव के विश्व रिकार्ड कायम हुए। पूरी दुनिया के लिए यह आकर्षण के केंद्र बन गया। यह अध्ययन व शोध का विषय हो सकता है,दो बार के दीपोत्सव से अयोध्या में उत्साह का संचार होने लगा था। इसमें बड़ी संख्या में विदेशी मेहमान भी सम्मिलित हुए थे। दो हजार अठारह में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति की पत्नी मुख्य अथिति के रूप में यहां आई थी। कोरिया के लोग अयोध्या की राजकुमारी के ही वंशज है। इसके अगले वर्ष फिजी की मंत्री वीणा भटनागर दीपोत्सव में सहभागी हुई थी। एक साथ सर्वाधिक दीपक प्रज्ज्वलित होने के रिकार्ड कायम हुए। उत्साह के माहौल में स्थान स्थान पर सजावट की गई,रामलीला के मंचन चल रहे थे। प्रभु राम,सीता जी,लक्ष्मण जी पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे थे। इसी के प्रतीक रूप में हेलीकॉप्टर का प्रयोग किया गया। प्रयास किया गया कि अयोध्या में प्रतीकात्मक रूप में त्रेता युग का प्रसंग जीवंत हो।
रामचरित मानस में गोस्वामी जी लिखते है-
आवत देखि लोग सब । कृपासिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ। उतरेउ भूमि बिमान॥
इस दृश्य की कल्पना करना ही अपने आप में सुखद लगता है। अयोध्या में ऐसा ही दृश्य प्रतीकात्मक रूप में दर्शनीय है।
प्रभु राम के वियोग में अयोध्या के लोग व्याकुल थे। अंततः वह घड़ी आ ही गई जब प्रभु राम अयोध्या पधारे। उनके वियोग में लोग कमजोर हो गए थे। उनको सामने देखा तो प्रफुल्लित हुए –
आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा॥
बामदेव बसिष्ट मुनिनायक।।देखे प्रभु महि धरि धनु सायक।
चौदह वर्षों बाद प्रभु को सामने देखा तो लोग हर्षित हुए-
प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी॥
प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी।।
इस मनोहारी दृश्य को भी अयोध्या में जीवंत किया गया। अयोध्या में दीपोत्सव जैसा दृश्य था। प्रभु राम सीता की आरती के लिए जो दीप प्रज्वलित किये गए थे, उनसे अयोध्या जगमगा उठी थी। उनके स्वागत में प्रत्येक द्वार पर मंगल रंगोली बनाई गई थी। सर्वत्र मंगल गान हो रहे थे-
करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें॥
पुर सोभा संपति कल्याना। निगम सेष सारदा बखाना
बीथीं सकल सुगंध सिंचाई। गजमनि रचि बहु चौक पुराईं।
नाना भाँति सुमंगल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे॥
प्रभु राम अंतर्यामी है, सब जानते है। वह लीला कर रहे थे। वह तो अवतार थे। इस रूप में वह जनसामान्य हर्ष में सम्मिलित थे-
जीव लोचन स्रवत जल। तन ललित पुलकावलि बनी।
अति प्रेम हृदयँ लगाइ। अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी॥
प्रभु मिलत अनुजहि सोह। मो पहिं जाति नहिं उपमा कही।
जनु प्रेम अरु सिंगार तनु धरि। मिले बर सुषमा लही।।
फिजी गणराज्य की उप सभापति एवं सांसद वीना भटनागर अयोध्या दीपोत्सव में श्रद्धाभाव के साथ सम्मिलित हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे केवल धार्मिक परम्परा या उत्सव तक सीमित नहीं रखा है। बल्कि उन्होंने इसे तीर्थ नगरी के विकास से भी जोड़ दिया था। यह परंपरा बन गई। अयोध्या दीपोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में विदेशी मेहमान की भागीदारी उत्साहजनक थी। यह भावना फिजी की मंत्री वीणा और यहां उपस्थित जनसमुदाय दोनों पर समान रूप से लागू हुई। यहां दूर दूर से आये रामभक्तों के लिए श्री राम शोभा यात्रा और राम चरित मानस की चौपाइयां कोई नई नहीं थी। इनको देखते सुनते ही लोग बड़े हुए है। लेकिन सुखद आश्चर्य तब हुआ जब फिजी की निवासी वीणा भटनागर श्री राम शोभायात्रा में न केवल सम्मिलित हुई, बल्कि वह परमरागत रूप से कलश उठा कर पैदल भी चली। उस समय वह एक सामान्य रामभक्त के रूप में ही थी। यह सब उनके लिए भी भावनात्मक रूप से सुंदर पल था। करीब दो शताब्दी पहले उनके पूर्वक यहीं कहीं से फिजी गए थे। उनके पास सम्पत्ति के रूप में केवल राम चरित मानस ही थी। फिजी गए तो वहीं के होकर रह गए। बहुत कुछ उनके जीवन मे बदला होगा। लेकिन जो एक बात नहीं बदली ,वह थी रामभक्ति। उनकी अगली पीढ़ियों ने भी इस धरोहर को संभाल कर रखा। आज तक इस धरोहर को धूमिल नही होने दिया। ये सभी लोग आज भी मानस का पाठ करते है। रामायण की चौपाई आज भी यहां गूंजती है। वीणा भटनागर ने श्री राम शोभायात्रा के बाद मंच से मानस की चौपाइयों का गायन किया।
मंगल भवन अमंगल हारी।
हरहुं नाथ मम संकट भारी।।
वीणा भटनागर पूरे भक्ति भाव से चौपाइयों का गायन कर रही थी। उसी भक्तिमय उत्साह व आंनद में वहां उपस्थित लोग इन चौपाइयों को दोहरा रहे थे। लगा ही नहीं कि कोई विदेशी मेहमान श्रीराम का गुणगान कर रहा है। यह भारतीय संस्कृति की व्यापकता है। सात समुद्र पार भी लोगों ने इस संस्कृति को सैकड़ों वर्षों से सहेज कर रखा है। इस दौरान विदेशों में प्रचलित रामलीलाओं के मंचन भी उत्साहित करने वाले थे। रामलीला का मंचन इनके लिए सामान्य अभिनय नहीं है,बल्कि यह उनके लिए श्रीराम की भक्ति का माध्यम रहा है। रामकथा के प्रति श्रद्धा भक्ति का भाव वहां के लोगों के रोम रोम में बसा है। इसके पिछले वर्ष दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे।इन की पत्नी किम जोंग सूक अयोध्या दीपोत्सव में सम्मिलित हुई थी। उन्होंने रानी सूरीरत्ना के स्मारक का शिलान्यास किया था। योगी आदित्यनाथ तीर्थाटन व पर्यटन के प्रति शुरू से गम्भीर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे विश्व में भारत की छवि बनती है,इसी के साथ स्थानीय स्तर पर परोक्ष व अपरोक्ष रोजगार का भी सृजन होता है। अयोध्या विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। योगी सरकार यहां तीर्थाटन की विश्व स्तरीय व्यवस्था बनाने की दिशा में कार्य कर रही है। दीपावली की भव्यता भी विश्व के लोगों का ध्यान आकृष्ट करने लगी है। प्राचीन भारत में ऐसा रहा भी होगा। प्रभु राम लंका विजय के बाद अयोध्या आये थे। तब यह नगरी दीपों से जगमगा उठी थी।
योगी आदित्यनाथ इसकी भव्यता व दिव्यता विश्व के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। उनके कार्यकाल में आयोजित दीपोत्सव में बड़ी संख्या में बाहर के लोग भी आते हैं। राज्य सरकार इन सभी त्योहारों का आयोजन शान्ति और उल्लासपूर्ण वातावरण में सफलतापूर्वक सुनिश्चित करना चाहती है। पर्व और त्योहार केवल आयोजन नहीं,बल्कि यह अपनी क्षमता आंकने के अवसर भी हैं। त्रेता युग में जिस प्रकार भगवान श्रीराम रावण वध करके अयोध्या नगरी लौटे थे,ठीक उसी प्रकार अयोध्या दीपोत्सव आयोजन में भी राम जी का आगमन मंचित किया गया। पावन सरयू नदी के तट पर दीपों की विशाल कतार से प्रकाश करके स्वागत किया गया। यह कोई साधारण दीप पर्व नहीं था,योगी कार्यकाल के पहले दीपोत्सव में डेढ़ लाख से अधिक दीये जलाए गए जिनसे सरयू के घाट जगमगा उठे थे। यह पूरी तरह से एक सुनियोजित एवं व्यापक पैमाने पर संचालित कार्यक्रम थे। जो देश विदेश के आकर्षण का केंद्र बना। अयोध्या नगरी की पहचान पूरे विश्व पटल में भगवान श्री राम की जन्मस्थली के रूप में ही है। निश्चित ही अयोध्या में प्रतिवर्ष और पूरे साल भर श्रीराम से संबंधित आयोजनों की श्रृंखला संचालित होती रहना चाहिये, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। इस धार्मिक नगरी के साथ आक्रांता बाबर का भी नाम जोड़ दिया गया। और अनावश्यक रूप से बाबरी मस्जिद का जिक्र जब। योगी के प्रयासों से यहां का प्रचीन गौरव रेखांकित होने लगा था। इस दिन श्रीराम,लक्ष्मण एवं सीता जी का रूप धरे कलाकारों को लेकर पुष्पक विमान के रूप में हेलीकॉप्टर उतरता है। राज्यपाल व मुख्यमंत्री योगी स्वयं राम,लक्ष्मण एवं सीता का आरती उतारकर स्वागत करते है। पुष्पवर्षा की जाती है। शंखनाद और मंत्रोच्चार के बीच पूरा वातावरण पावन होता है। शाम के समय सरयू के तट पर लाखों की संख्या में दीये जलाए गए और पूरा दृश्य दैदीप्यमान हो जाता है। पिछले दीपोत्सव पर योगी ने कहा था कि रामराज्य की जो अवधारणा त्रेतायुग में थी,उसी के निहितार्थ को वर्तमान युग में लागू करते हुए समाज के लोगों को लाभान्वित किया जाएगा।