के के उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार.
श्रीकृष्ण राग है । रंग है । रास है । नृत्य हैं । कृष्ण उन्मुक्त हैं। प्रेम हैं । कृष्ण उन्माद हैं । विराट हैं । विलक्षण हैं । वीर हैं । राजनीतिज्ञ हैं । कूटनीतिज्ञ हैं । वे मर्यादा में नहीं बंधे । राष्ट्र के लिए । समाज के लिए , वे मर्यादा तोड़ देते हैं। प्रतिज्ञा भूल जाते हैं। वे समग्र हैं । समग्रता में सृष्टि खोजतें हैं । वे सिर्फ़ रास लीलाओं में नहीं डूबे रहते । यह तो कथावाचकों ने न जाने कहाँ से जोड़ दिया । कृष्ण जाने गए कर्म के सिद्धांतों की वजह से । उन्होंने ही सबसे पहले उद्घोष किया – कर्म ही पूजा है । कृष्ण युगदृष्टा हैं । कृष्ण युद्ध के मैदान में अर्जुन से कहते हैं -“जब तक तू ऐसा मानता है कि कोई मर सकता है। तब तक तू आत्मवादी नहीं है। तब तक तुझे पता ही नहीं है कि जो भीतर है, वह कभी मरा है, न कभी मर सकता है। अगर तू सोचता है कि मैं मार सकूँगा, तो तू बड़ी भ्रांति में है। बड़े अज्ञान में है। क्योंकि मारने की धारणा ही भौतिकवादी की धारणा है। जो जानता है, उसके लिए कोई मरता नहीं है। तो अभिनय है- कृष्ण उससे कह रहे हैं-मरना और मारना लीला है। एक नाटक है।
कृष्ण अकेले ही इस समग्र जीवन को पूरा ही स्वीकार कर लेते हैं। जीवन की समग्रता की स्वीकृति उनके व्यक्तित्व में फलित हुई है। इसलिए इस देश ने और सभी अवतारों को आंशिक अवतार कहा है। कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा है। राम भी अंश ही हैं परमात्मा के। कृष्ण पूरे ही परमात्मा हैं। और यह कहने का, यह सोचने का, ऐसा समझने का कारण है। वह कारण यह है कि कृष्ण ने सभी कुछ आत्मसात कर लिया।
कृष्ण नृत्य करते हैं । वे जीवन को जीते हैं । ढकोसलों को तोड़ते हैं । वे नेगेटिव नहीं है । वे जड़ता को तोड़ते हैं । वे साहस करते हैं । इन्द्र का विरोध करने का । इंद्र को परास्त करने का । कृष्ण को संपूर्ण रूप से जान पाना मुश्किल है । सूरदास के कृष्ण बाल हैं । वे कभी बड़े ही नहीं होते । भागवत के कृष्ण अलग हैं । कृष्ण समग्र हैं । कृष्ण योद्धा हैं ।परम योद्धा हैं ।
राम के जीवन को हम चरित्र कहते हैं। राम बड़े गंभीर हैं। उनकी जीवन लीला नहीं है। चरित्र ही है। कृष्ण गंभीर नहीं है। कृष्ण का चरित्र नहीं है । वह, कृष्ण की लीला है। राम मर्यादाओं से बँधे हुए व्यक्ति हैं। मर्यादाओं के बाहर वे एक कदम न बढ़ेंगे। मर्यादा पर वे सब कुर्बान कर देंगे। कृष्ण के जीवन में मर्यादा जैसी कोई चीज ही नहीं है। अमर्यादा। पूर्ण स्वतंत्र। जिसकी कोई सीमा नहीं। जो कहीं भी जा सकता है। ऐसी कोई जगह नहीं आती, जहाँ वह भयभीत हो और कदम को ठहराए। यह अमर्यादा भी कृष्ण के आत्म-अनुभव का अंतिम फल है। कृष्ण जीवन का राग है । कृष्ण हम सब में हैं । कृष्ण सरल हैं । कृष्ण को पाना आसान है । मीरा ने इसी युग में कृष्ण को पाया । रैदास ने कृष्ण को गाया है । आज युगदृष्टा का जन्म हुआ था । कृ्ष्ण युगों युगों तक रहेंगे । हमारे अंतर्मन में । हमारी साँसों में । हमारे जीवन में । जय श्री कृष्ण ।