काशी के दत्त मंदिर का अद्भुत रहस्य
विश्वनाथ गोकर्ण, वरिष्ठ पत्रकार.
काशी इस सृष्टि का एकमात्र ऐसा शहर है जहां देव दर्शन मात्र से असाध्य रोग दूर हो जाते हैं। यहां एक ऐसा देवालय है जहां दर्शन करने से सफेद दाग जैसी असाध्य बीमारी से मुक्ति मिल जाती है। यह मंदिर है भगवान दत्तात्रेय का। काशी में पक्का महाल में एक इलाका है ब्रह्माघाट। इसी मोहल्ले में मकान नम्बर के. 18/48 आबाद है। इसी में स्थित है गुरू दत्तात्रेय भगवान का मंदिर। यहां से पास में ही गंगा किनारे घाट पर जाने का रास्ता भी है। मोहल्ले के पुराने बांशिदों का कहना है कि मंदिर का इतिहास दो सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। लेकिन मंदिर के मुख्य द्वार पर लगा पत्थर इस देवालय के डेढ़ सौ साल पुराना होने की तस्दीक करता है।
इस मंदिर के इतिहास को समझने से ज्यादा यहां भगवान दत्तात्रेय की दैवीय शक्ति के सामने दंडवत होने की जरूरत है। भगवान दत्तात्रेय को फकीरी का देवता माना जाता है। उनका अवतरण सतयुग में हुआ था। दक्षिण और पश्चिम भारत में भगवान दत्तात्रेय बहुत पूज्य हैं। सो, वहां इनके मंदिर भी बहुत हैं। लेकिन वहां इन मंदिरों में भगवान दत्तात्रेय का कोई विग्रह नहीं है। देवालय के गर्भ गृह में सिर्फ दत्त देवा की चरण पादुका ही रखी है। वहां इसी की पूजा अर्चना की जाती है। अगर कहीं किसी मंदिर में दत्त देवा विग्रह रूप में विराजमान हैं भी तो उनके तीन मुख है। ये मुख ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं। काशी अकेला ऐसा स्थान है जहां भगवान दत्तात्रेय का एकमुखी विग्रह स्थापित है।कहते हैं कि भगवान दत्तात्रेय ने आज तक देहत्याग नहीं किया है। वो पूरे दिन सृष्टि के अलग अलग भागों में विचरते रहते हैं। वो हर रोज प्रातःकाल ब्राह्म मुहूर्त में गंगा स्नान के लिए काशी आते हैं। अपने गंगा स्नान के लिए उन्होंने जो जगह चुन रखी है वो है काशी का मणिकर्णिकाघाट। इस घाट पर गंगा किनारे भगवान दत्तात्रेय की एक चरण पादुका रखी है। यह इस बात का प्रमाण है कि दत्त देवा हर रोज काशी आते हैं।
काशी के एकमुखी दत्तात्रेय के दर्शन करने से सफेद दाग से मुक्ति की सैकड़ों कहानियां हैं। मंदिर के पास में ही राजमंदिर मोहल्ले में स्थित भोरकर वाड़ा के इर्द गिर्द रहने वाले एक परिवार में ऐसा चमत्कार देखने को मिला था। घटनाएं तो बहुत सी हैं लेकिन किसी को आपत्ति न हो इसके लिए यहां उनकी पहचान गोपनीय रखी जा रही है।
कहते हैं कि महर्षि परशुराम ने मां ललिताम्बा त्रिपुर सुन्दरी की साधना का गुरू मंत्र भगवान दत्तात्रेय से प्राप्त किया था। दत्त देवा ने ही बाबा कीनाराम को अघोर मंत्र की दीक्षा दी थी। आप नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरू गोरक्षनाथ के भी गुरू थे। साई बाबा को उन्हीं का अवतार माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय अवधूत दर्शन और अद्वैत दर्शन के प्रवर्तक हैं। उन्होंने इन दर्शनों के जरिये मनुष्य को स्वयं की तलाश का मार्ग दिखाया। कहते हैं कि गूलर के वृक्ष में भगवान दत्तात्रेय का वास होता है। इसी कारण गूलर के वृक्ष की पूजा की जाती है। ब्रह्माघाट के मंदिर में दत्तात्रेय भगवान के प्रदक्षिणा का अत्यंत महत्व है। कहते हैं कि अगर सच्चे मन से गुरू दत्तात्रेय का आज भी स्मरण किया जाए तो वे मुखातिब हो जाते हैं। वो मन मांगी मुराद देने वाले देवता हैं।