सलिल पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, मिर्जापुर.

मिर्जापुर । भगवान विष्णु ही अनन्त भगवान हैं। पालनकर्ता हैं। भगवन विष्णु के अनन्त रूप की पूजा का अर्थ ही है कि जीवन में मानव अनन्त संभवानाओं एवं अवसरों को अपने पुरुषार्थ से बांध ले ।

31 अगस्त और 1 सितम्बर में किस दिन मनाए अनन्त चतुर्दशी

अनन्त चतुर्दशी अलग-अलग पंचांगों में अलग अलग दिन बताया गया है। निर्णय सिंधु के अनुसार सूर्य के उदयकाल से तीन मुहूर्त चतुर्दशी जरूर रहे। इस दृष्टि से 31 अगस्त को कतिपय पंचांगों ने निर्धारित किया है। जबकि कुछ में 1 सितंबर का उल्लेख है। चूंकि 1 सितंबर को सूर्योदय प्रातः 5: 34 बजे है और चतुर्दशी पूर्वाह्न 9:27 बजे तक ही है इसलिए तीन मुहूर्त का अभाव है। इस दिन पूर्णिमा की पूजा होगी जबकि 2 सितंबर को पितृपक्ष शूरू हो जाएगा । पूर्णिमा श्राद्ध इसी दिन किया जाएगा। चूंकि अलग-अलग स्थानों के सूर्योदय को मानकर तिथि में बदलाव भी रहता है लेकिन काशी पंचांग के अनुसार 31 अगस्त को यह पर्व हैं।

संकुचन नहीं अनन्त का हो जीवन

सिर्फ मनुष्य को ही अनन्तशक्तियों, अवसरों एवं उलब्धियों को प्राप्त करने का अवसर नारायण ने दिया है, इसलिए अनन्त भगवान की पूजा के माध्यम से छोटी सोच और हलकी उपलब्धि के बजाय अनन्त अवसरों की ओर उन्मुख होने का सन्देश इस पर्व से मिलता है।

दो डोर में 14 गांठें

सूत या रेशम के दो धाँगों में 14 गांठ एक प्रतीक है। एक तो सूत अत्यंत कमजोर होता है, इसलिए सर्वाधिक क्षणभंगुर जीवन में दो धागों यानी ज्ञान और कर्म के आपस में सम्मिलन का भी संकेत निकलता है। 14 गांठ का अर्थ ही है कि 10 इंद्रियों द्वारा 4 क्रियाशक्ति मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को बांध कर चलना चाहिए । मनुष्य को प्रवृत्तियों का गुलाम नहीं होना चाहिए ।

इसके अलावा 14 लोक हैं। मनुष्य धरती से 7 लोक नीचे या उपर के 7 लोकों तक दृष्टि रखे तो वह बहुत कुछ हासिल कर सकता है। वर्तमान दौर में ऐसा हो भी रहा है।

इस प्रकार अनन्त चतुर्दशी की आराधना वैज्ञानिक भी है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here