हॉस्पिटल की नौकरी छोड़कर बॉलीवुड में कुछ कर गुजरने के लिए भर ली थी ऊंची उड़ान !

अमित मिश्रा ( मुम्बई ब्यूरो चीफ )

कठिन से कठिन परिस्थितियों को झेलने की तैयारी, संघर्ष के लिए समर्पित भाव , कड़ी मेहनत और फिर थोड़ा सा लक….बॉलीवुड में कुछ कर गुजरने व अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते हुए सफ़लता की ओर बढ़ते रहने का ये मूल मंत्र रहा है। कुछ इसी मन्त्र ने युवा व टैलेंटेड डायरेक्टर  पार्थसारथी मन्ना को भी न सिर्फ बॉलीवुड में आने व बने रहने के लिए प्रेरित किया बल्कि सफलता की ओर बढ़ते रहने की सही राह भी दिखा दी है ।

आज पार्थसारथी दादा के पास कई फिल्मों के साथ – साथ, एक सुकून  भी है कि उन्होंने बॉलीवुड की ओर कदम बढ़ाया था तो वह कदम न सिर्फ सार्थक कदम साबित हुआ बल्कि उसने वह राह भी दिखा दी जिसपर चलते हुए बॉलीवुड के अनंत आसमान से अपने हिस्से का एक मुट्ठी आसमान कोई अपने पास अधिकारपूर्वक रख सकता है।

वेस्ट बंगाल के मिदनापुर स्थित छोटे से गांव काँटाई में जन्मे और वहीं से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर चुके पार्थसारथी ने बैचलर ऑफ हॉस्पिटल मैनेजमेंट की डिग्री ली है । इसी डिग्री के बाद कुछ माह तक सी एम आर एल हॉस्पिटल को उन्होंने अपनी सेवाएं भी दीं । उसी काम के दौरान बचपन का फिल्म मेकर-डायरेक्टर बनने का उनका सपना उनके भीतर कसमसाता रहा कि उनकी दुनिया हॉस्पिटल नहीं बल्कि बॉलीवुड है। वे बॉलीवुड में अपने संघर्ष व टैलेंट के बूते पर अपनी मंज़िल तलाशना चाहते थे। उन्होंने हॉस्पिटल का काम छोड़ दिया और आत्मविश्वास से भरे हुए पार्थसारथी वर्ष 2007 के आखीर में मुम्बई आ गए। यहां उनके गांव के कुछ लोग जो दूसरे प्रोफेशन में थे ,वही इनके शरणदाता बने और उनके साथ रहते हुए पार्थसारथी ने बॉलीवुड में काम ढूंढना शुरू कर दिया।

 

न तो उनका फिल्मी बैकग्राउंड था न यहां कोई गॉडफादर। उन्हें काम मिलने में जो दिक्कतें हुईं और उस दौर में रोजीरोटी के लिए जितना संघर्ष करना पड़ा उसे बताते हुए पार्थसारथी स्वर कांप उठता है। यहां एक बात अच्छी रही थी कि उनकी सोच पॉज़िटिव थी और संघर्ष पर डंटे रहने का उनके भीतर ज़ज़्बा था ।वे घबराकर वेस्ट बंगाल वापस नहीं जाना चाहते थे। उनके भीतर की लगन उन्हें यहिं जमे रहने के लिए प्रेरित करती रही।


बॉलीवुड के ढेर सारे लोगों,फ़िल्म मेकर्स व डायरेक्टर्स से तब वे मिले । पर हर बार या तो इंकार मिला या झूठा आश्वासन। पार्थसारथी ने तब भी हिम्मत नहीं हारी और काम की तलाश करते रहे। कुछ बनने और बॉलीवुड में पैर जमाने का उनका सपना उन्हें जोश और ऊर्जा देता गया। उनकी ईमानदारी और समर्पण उनके पथ के काँटे चुनता गया।

जहां चाह-वहां राह, ये कहावत तब चरितार्थ हुई जब ऊपर वाले ने उनकी सुन ली। पहले असिस्टैंट डायरेक्टर के रूप में एक काम मिला फिर दूसरा-तीसरा और फिर काम का अंबार लग गया। बतौर असिस्टैंट डायरेक्टर फिर एसोसिएट डायरेक्टर के रूप में वे काम भी करते रहे और अपने सपनों को आकार देने के लिए योजनाएं बनाते चले गए।

शुरुवात में सचिन कारन्डे ( पे बैक, विकल्प, जैक-न-दिल), इरफान कमल( थैंक्स मां ), रजनीश ठाकुर ( लूट ) और यतेंद्र रावल के सहायक के रूप में पार्थसारथी ने काम किया। असिस्टैंट डायरेक्टर बने फिर एसोसियेट  डायरेक्टर। फ़िल्म मेकिंग की इनसे बारीकियां सीखीं। पर वे हमेशा जूनियर बनकर  नहीं रहना चाहते थे। उन्हें तो अपनी प्रतिभा अपने ढंग से सोलो डायरेक्टर बनकर पेश करनी थी।

इसी  कड़ी में लगभग 2 दर्जन फिल्में करने के बाद पार्थसारथी ने डायरेक्टर के रूप में  लगातार 2 बांग्ला फीचर फ़िल्में क्रमशः ऑस्कर और मिस्टी छिले दुष्टो बुद्धि बनाने में सफल रहे। सोलो डायरेक्टर के रूप में पहचान बनी, जिसके बाद पार्थसारथी 6-7 शार्ट फ़िल्म व करीब 15-20 टी वी सी, एड फिल्में भी बनाते गए।  उनके एवार्ड्स की बात करें तो उनकी शार्ट फ़िल्म होप मामी में तो 2017 में उनकी फिल्म काइट – द मैसेंजर तथा 2019 में उनकी फिल्म गंध ,फ़िल्म फेयर जैसे प्रतिष्ठित एवार्ड के लिए नॉमिनेट हुई थी।

फिलहाल एक बड़े प्रोडक्शन हाउस की फ़िल्म औऱ एक वेब सीरीज़ पूरी करने में पार्थसारथी व्यस्त हैं। सपनों को रंग देकर सेल्युलाइड के पर्दे पर जीवंत करने की उनकी कोशिशें अब भी जारी हैं।

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