डॉ दिलीप अग्निहोत्री

कोरोना आपदा ने शिक्षा की परंपरागत व्यवस्था को बाधित किया है। भारत में तो आदिकाल से गुरुकुल शिक्षा प्रणाली रही है। जिसमें विद्यार्थी आश्रम में निवास करते थे। यहीं गुरु के द्वारा उनको शिक्षा प्रदान की जाती थी। इसके बहुत बाद में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की गई। आधुनिक काल में इसी पर अमल चल रहा था। लेकिन कोरोना आपदा ने इस पर विराम लगाया है। प्रत्यक्ष शिक्षा की व्यवस्था निकट भविष्य में सुचारू होने की संभवना भी नहीं। कुछ देशों ने स्कूल कॉलेज खोले,लेकिन उनका यह प्रयास विफल साबित हुआ। कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा को ही श्रेयस्कर समझा गया। यह सही है कि यह प्रत्यक्ष शिक्षा का बेहतर विकल्प नहीं हो सकता,लेकिन वर्तमान परिस्थिति में इसके अलावा अन्य कोई विकल्प भी नहीं है। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने ठीक कहा कि शिक्षा की क्रमबद्धता बाधित हुई है। ऐसे में देश के भावी कर्णधारों के समक्ष भविष्य का प्रश्न अत्यंत स्वाभाविक है। इसीलिए शिक्षण प्रक्रिया में ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था को लाया गया है। इसने शिक्षाशास्त्र के नए प्रारूपों को गति दी है। आनन्दी बेन पटेल स्वयं शिक्षक रही है। वह सदैव अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहती थी। कुलाधिपति के रूप में उन्होंने कहा कि शिक्षक ही शिक्षा की वह धुरी है, जो समस्त सुधारों और दूरगामी लक्ष्यों को जमीनी स्तर पर मूर्त रूप देता है। शिक्षक व विद्यार्थी अपने कौशल एवं मूल क्षमताओं के सर्वश्रेष्ठ उपयोग से भारत को विश्व गुरू रूप में प्रतिष्ठित कर सकते है। आनन्दी बेन ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के अपने लाभ हैं। शिक्षकों की मदद करने और ई लर्निंग को प्रोत्साहन देने के लिए शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता में सुधार करना होगा।

ई पाठशाला ई पुस्तक आदि ऐसी ही शिक्षण सामग्री की पहुंच दूरस्थ अंचलों के छात्रों तक बनानी होगी। एक बेबीनार में राज्यपाल ने कहा कि शिक्षक समाज में सदैव से ही पूजनीय रहा है। वह एक शिल्पकार के रूप में अपने विद्यार्थी का जीवन गढ़ता है। शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। वह मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है। समाज को सही राह दिखाता रहता है। आदर्श शिक्षक के सभी व्यवहारों का असर उसके शिष्य पर पड़ता है। बच्चों में देशप्रेम,अनुशासन और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को विकसित करना चाहिए। कुलाधिपति ने एक अन्य बेबीनार में संस्कृत भाषा के संबन्ध में विचार व्यक्त किये। कहा कि संस्कृत भाषा को नई शिक्षा नीति में विशेष स्थान प्राप्त हुआ है। इससे संस्कृत की प्रासंगिकता को नई दिशा मिल सकती है। स्कूली शिक्षा में अब त्रिभाषा सूत्र चलेगा। इसमें संस्कृत के साथ तीन अन्य भारतीय भाषाओं का विकल्प होगा। इससे आज की युवा पीढ़ी संस्कृत भाषा के अध्ययन।अध्यापन से लाभान्वित होगी। नई शिक्षा नीति के सम्पूर्ण क्रियान्वयन एवं सफलता का उत्तरदायित्व शिक्षकों एवं ज्ञानसाधकों पर है। उन्होंने कहा कि संस्कृत वस्तुतः हमारी संस्कृति का मेरूदण्ड है। जिसने सहस्त्रों वर्षों से हमारी अनूठी भारतीय संस्कृति को न केवल सुरक्षित रखा है,बल्कि उसका संवर्धन तथा पोषण भी किया है। संस्कृत अपने विशाल साहित्य,लोक हित की भावना तथा उपसर्गों के द्वारा नये।नये शब्दों के निर्माण क्षमता के कारण आज भी अजर अमर है। यह भाषा हमारी वैचारिक परम्परा,जीवन दर्शन, मूल्यों व सूक्ष्म चिन्तन की वाहिनी है।

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