डॉ आलोक चाटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

भारत विश्व में एक ऐसा देश है जहां पर उस धरती को हम मां कहते हैं और यही नहीं अपने सामान्य से अभिवादन में भी जय राम जी की करते हैं सीता और राम का क्या महत्व है इसको आज इस देश में समझाने की आवश्यकता नहीं लेकिन इसी सीताराम के संयोजन को अपने नाम के रूप में जोड़कर जिस सीताराम तिवारी ने अपने घर में एक बालक के जीवन को दिशा दी थी उस बालक चंद्रशेखर तिवारी निर्देश गर्भ में अपने जीवन का स्पंदन महसूस किया था वह भी कोई एक सामान्य सा नाम नहीं था जगरानी और इस नाम से ही ऐसा प्रतीत होता है कि एक ऐसी महिला जिनके माता-पिता ने इसलिए इस नाम को रखा था कि उनकी बेटी पूरे जग की रानी बन कर रहेगी शायद चंद्रशेखर तिवारी को जन्म देकर वह जग की रानी तो बन गई लेकिन भारत जैसे देश में जहां परोपकार के बहुत बड़े बड़े शंखनाद हुए हैं जहां पर मानवता के ना जाने कितने कार्य हैं उस मां भारती के गोद में पिता सीताराम तिवारी और मां जगरानी ने जिस बालक को स्वतंत्रता की दिशा को सुनिश्चित करने के लिए जन्म दिया 23 जुलाई 1906 को जन्मे उस बच्चे ने पूत के पांव पालने से ही दिखाई देने वाली है कहावत को चरितार्थ भी कर दिया चाहे चंद्रशेखर तिवारी से चंद्रशेखर आजाद बनने में अंग्रेजो के द्वारा कूड़े खाने के बाद भी अपने नाम काम सभी में आजाद के स्वर को मुखरित करने वाला वह बालक जयचंद और मीर जाफर की परंपरा में मुखबिरी का शिकार हो गया।

भारत की इतिहास में इस बात का दर्द सदैव ही रहना चाहिए की सिर्फ रोटी के लिए कई बार हमने देश के साथ गद्दारी किया है सिर्फ रोटी के लिए सच का साथ देने से हमने बचने का प्रयास किया है सिर्फ रोटी और आराम की जिंदगी के लिए हमने संघर्ष के रास्तों को छोड़ दिया है लेकिन अपने जीवन को मां भारती के लिए समर्पित करने वाले बालक चंद्रशेखर तिवारी ने 17 साल की उम्र में जब आजादी की लड़ाई का पद अपनाया तो वह 27 फरवरी 1931 को ही समाप्त हुआ मात्र 24 साल की उम्र में एक ही युवा उस देश में मुखबिरी का होकर शहीद हुआ था जहां पर इस बात का संदेश दिया जाता है कि हम सब एक हैं हम सब भाई बहन हैं लेकिन यथार्थ के धरातल पर उस नौजवान के साथ यह कथन झूठा साबित हुआ कहानी यहीं पर समाप्त नहीं हुई वह युवा पहले भी अपने बड़े भाई को अकाल मृत्यु की तरफ जाते देख चुका था अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने अपने मित्रों से कहा था कि यदि मेरी मृत्यु हो जाए तो मेरी मां का ख्याल रखना यह भी इस देश की एक उच्च कोटि की परंपरा रही है कि चाहे विवेकानंद हो जिन्होंने राजा खेतड़ी से इस बात का निवेदन किया था कि वह उनकी मां को हर महीने ₹100 देते रहें ताकि उनकी मां को परेशानी ना हो उसी परंपरा में चंद्रशेखर आजाद बीए चाहते थे कि जब वह मां भारती के लिए न्यौछावर हो जाएं तो उनकी मां को कोई कष्ट ना रहे पिता की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी लेकिन मां जगरानी के जीवन की सुध किसी ने ली ही नहीं जिस मां के दर्शन को भारत जैसे देश में बार-बार स्थापित करने की बात कही गई है वह मां बाजरा जैसे मोटा खाना खाकर रहता था जिस भंवरा गांव में वह रह रही थी उस गांव के लोग उन्हें डकैत की मां कहते थे यही नहीं जब जन शेखर आजाद के मित्रों ने 1951 में उस महा मां की मृत्यु के बाद झांसी में उनकी मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए तो अंग्रेजों से विजया जब बर्बरता करके तत्कालीन सरकार ने ना सिर्फ गोली चलवाई कर्फ्यू लगवाया बल्कि उस मूर्ति की स्थापना नहीं होने दी 3 लोगों की मृत्यु हुई दर्जनों घायल हुए यहां तक कि चंद्रशेखर आजाद की मां की स्मृति में जो प्याऊ चल रहा था उसको भी ध्वस्त कर दिया गया क्या मां के प्रति सम्मान का यही दर्शन इस देश में शेष देखना बाकी था एक मां का सम्मान करें जाने पर इतनी आपत्ति क्यों क्या तत्कालीन समाज सरकार सिर्फ अंग्रेजों की पिट्ठू बनकर स्वतंत्र भारत में भी रह रही थी कैसी।

इस बात को समझने का प्रयास किया जाए कि आखिर जगरानी जी के सम्मान से तत्कालीन सरकार को क्या आपत्ति थी क्या अंग्रेजों के साथ इतनी ज्यादा सांठगांठ हो गई थी कि किसी भी क्रांतिकारी की स्थापना करने की तत्कालीन सरकारी छुट्टी नहीं थी जैसे सुभाष चंद्र बोस एक गुमनामी जीवन में रह गए थे ऐसे ही चंद्रशेखर आजाद के परिवार को गुमनाम रखने का प्रयास क्यों हो रहा था आज आवश्यकता इस पर विवेचना करने की है क्या कारण है कि क्रांतिकारियों की इतिहास को स्वतंत्र भारत में एक वह सर्वोच्चता नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी या किसी मां के लिए आसान कार्य नहीं था कि वह अपने बच्चे को राष्ट्र के लिए समर्पित करते हैं ऐसे देश में जहां पर आज भी लोग या नहीं चाहते कि राष्ट्र के लिए उनके परिवार का बच्चा समर्पित हो जाए सिर्फ एक नौकरी कर ले शादी कर ले परिवार बसा ले इसी अभिव्यक्ति में जीने वाले भारत में यदि एक मां का लाल देश में समर्पित हो गया था धोखाधड़ी का शिकार हो गया था और यही नहीं उस स्वाभिमानी मां ने कभी किसी से कुछ नहीं कहा सरकार से कोई गुहार नहीं लगाई अपनी गरीबी और अपने अपमान में जीने वाली जगरानी देवी का यदि चंद्रशेखर आजाद के मित्र सम्मान करके उन्हें इस राष्ट्र में स्थापित कर देना चाहते थे तो उसने गलत किया था क्या तत्कालीन सरकार को मां शब्द से इतनी चिढ़ थी कि वह मां शब्द को ध्वस्त करने के लिए पूर्व में बांटे गए देश की तरह ही हर मां की स्थापना का विरोध करने लगी थी।

आज चंद्र शेखर आजाद की पुण्यतिथि पर इस बात को समझने की आवश्यकता है यह एक वर्तमान के परिवेश में अत्यंत सुखद पल है कि हम क्रांतिकारियों के बारे में इस देश में पुनः सोचने लगे लेकिन प्रतीकात्मक रूप से सिर्फ उस क्रांतिकारी को जय हिंद जय भारत हम बोलकर भी समझने लगे हैं लेकिन उसके जीवन में उसके परिवार में क्या घटित हुआ यह भी जानना आवश्यक है इसके लिए सरकार को क्रांतिकारी सहयोग बैंक की स्थापना करनी चाहिए जिसमें प्रत्येक भारतीय द्वारा प्रतिवर्ष ₹1 लिया जाए ताकि प्रतिवर्ष करीब एक अरब ₹350000000 उस बैंक में एकत्र हो और देश में जितने भी क्रांतिकारी हैं उनकी एक लिस्ट बनाई है और यदि उनका परिवार कष्ट में है गरीबी में है गुमनामी में है तो कम से कम ₹5000000 प्रति वर्ष उस परिवार को सहायता राशि के रूप में दिया जाए जिससे राष्ट्र में क्रांतिकारी होने वाले व्यक्तियों के प्रति सम्मान पैदा हो और उन क्रांतिकारियों के परिवार को भी राष्ट्र में गरिमा का एहसास हो यही चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि पर सबसे महत्वपूर्ण श्रद्धांजलि होगी और इस पर हम सभी को विचार करना होगा

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