डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
अखिल भारतीय अधिकार संगठन का सदैव से ही यही ध्येय रहा है कि वो सोशल मीडिया के जरिये लोगो तक सही तथ्यों के साथ पहुंचे और जनता में सकारात्मक जागरूकता जगाये |इसी क्रम में आजकल देश द्रोह को लेकर जितने मुहँ उतनी बात जबकि देश के संविधान के अनुच्छेद १९(२) में जहा बोलने या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाया गया है वही अनुच्छेद १२४ (अ )में देश द्रोह को परिभाषित किया गया है पर जनता में तकनिकी ज्ञान से ज्यादा व्यवहारिक ज्ञान की आवश्यकता होती है | इस लिए कुछ उदहारण दे रहा हूँ |
किसी घर की बहु पत्नी माँ बनने वाली है और उसको अस्पताल ले जाया जाता है वह पर डॉक्टर कहता है कि मामला जटिल है दोनों को बचाना मुश्किल है ऐसे में घर वाले या पति का यही कथन होता है कि डॉक्टर साहेब कोशिश कीजिये कि दोनों बच जाये लेकिन अगर ऐसा ना हो तो माँ को बचाइये !!!!!!!!!! कभी सोचा ऐसा क्या घर या पति कहता है क्योकि एक लम्बी उम्र तय करने के बाद कोई लड़की माँ बनने के योग्य को पति है और बच्चा का जन्म फिर सुनिश्चित हो सकता है और यही कारण है कि जिस देश को एक लम्बे इतिहास और विरासत के साथ दुनिया के सामने उच्चता प्रदान की जाती है उसको हानि पहुचने वाले उसके बच्चो का जीवन उस देश से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है |
इस क्रम में दूसरा उदहारण भी माँ का ही है एक माँ जब बच्चे को अपने गर्भ में रखती है तो उसका पोषण वो गर्भनाल से करती है पर जब बच्चा पूर्णता प्राप्त कर लेता है तो वही बच्चा उस गर्भ से नाल के साथ बाहर आता है पर जहा से नाल उखड़ती है और बच्चे का जन्म होता है वो सब एक माँ के जीवन में इतने कष्ट पैदा कर देते है कि भारत जैसे देश में ऐसी माओं की उचित देखभाल न हो पाने के कारण प्रतिवर्ष हजारों माये जीवन से हाथ ढो देती है | इसी लिए एक सौर जैसी प्रथा का प्रचलन हुआ जिसमे एक माँ को बच्चे को जन्म देने के बाद होने वाली शारीरिक क्षति के लिए अत्यंत पौष्टिक भोजन यथा हरीरा आदि दिया जाता है ताकि वो स्वस्थ जीवन जी सके इस लिए माँ चाहे देश के रूप में हो या फिर हाड मांस की हो उसकी रक्षा और सुरक्षा सम्पूर्ण समाज का दायित्व है और यदि किसी की लापरवाही से माँ के जीवन को खतरा हो रहा है तो उसके लिए जो उपचार है वो करने ही पड़ंगे यह कह कर नहीं बचा जा सकता कि आरे कौन नयी बात है ना जाने कितनी माँ मर जाती है क्योकि माँ का जिन्दा होना ही बच्चो के अच्छे जीवन जीने का प्रतिबिम्ब होता है |
एक तीसरी बात आज मैं एक नीम के पेड़ को देख रहा था जिसकी पत्तियां तेजी से पतजहद शब्द का शकर हो रही थी | वो पत्तियां जिन्होंने कल तक सूरज की रौशनी में उस पेड़ को भोजन दिया था वही आज खत्म हो रही थी | पर महत्वपूर्ण प्रशन यह हैकि क्यों नहीं पेड़ खत्म हुआ क्यों पत्तियां ही !!!!!!!!!!!! उत्तर साफ़ है प्रकृति जानती है कि पारिस्थितिकी के लिए एक लम्बे समय तक खड़े रहने वाले पेड़ का होना जरुरी है क्यकि एक पेड़ तैयार होने में वर्षो लगते है लेकिन पत्तियां दस दिन में निकल आती है इस लिए महत्वपूर्ण वो पेड़ है जिससे पूरी प्रकृति की स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सकता है और यही बात देश के लिए भी सत्य है यदि आपके कथन देश को हानि पंहुचा रहे है तो देश का रहना पेड़ की तरह जरुरी है आपका पत्ती की तरह देश के अस्तित्व को बचने के लिए झड़ना ही होगा पर कुछ लोग इस प्राकृतिक सत्य को नहीं मानना चाहते वो अभिव्यक्ति की आजड़ै के नाम पर सम्पूर्ण सांस्कृतिक पारिस्थितिकी को बर्बाद कर देना चाहते है और कहते है कि इस देश द्रोह नहीं कहा जा सकता है और जब देश में ऐसे लोग को देश द्रोह पर वकालत करते देखता हूँ तो १९७३ का स्टॉकहोम सिंड्रोम याद आ जाता है |
ये एक ऐसी स्थिति थी जब स्टॉकहोम में कुछ लोग बंदी बनाये गए और बाद में बंधक बनाये गये लोगो ने बंधक बनाने वालो के प्रति सहानभूति , समानभूति और आंदोलन तक किया और वही से ये सिंड्रोम पड़ा हुआ आज भारत में भी ये सिंड्रामे अपना असर दिखा रहा है . अभिव्यक्ति , संविधान का अपनी तरह से विश्लेषण करके लोग गलत बात और अस्थिरता पैदा करने वालो के प्रति स्टॉकहोम सिंड्रोम का शिकार हो रहे है | शायद इसी लिए देश द्रोह एक द्वैध स्थति में है | जो भी बात देश से इतर दूसरे देश के लोगो को इस बात का आभास दे कि भारत में मेरे जफ़र और जय चन्द मौजूद है और भारत को इन्ही के सहारे बर्बाद किया जा सकता है , शिराजुदौला , और पृथ्वी राज को मार कर इस देश पर कब्ज़ा किया जा सकता है वो साड़ी बात , इशारा और क्रय देश द्रोह का ह मन जाना चाहिए और अगर आप ऐसा करने वालो का समर्थन इस लिए कर रहे है क्योकि आप स्टॉक होम सिंडोरम के शिकार है तो अपना इलाज़ करवाइये लेकिन देश को नीलाम मत कीजिये ……..