डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
आज कुछ भी लिखने का मन नहीं है क्योकि जो मैं कहना चाहता हूँ वो आप सुनना नहीं चाहते शायद आप का दिमाग गंगा कीतरह हो गया है या फिर बसंत से पहले का प्रभाव आपको अपने अंदर समेट चुका है और ये सही भी है क्योकि जब आप को नए नए शब्द सुनने की आदत पद चुकी है तो आप आज क्यों सुने किसी की क्या आप ने कभी गौर किया कि फेस बुक हर साल आपके यादगार पल या फिर साल की रिपोर्ट में क्या दिखाता है सिर्फ और सिर्फ आपकी कुछ फोटो ग्राफ्स फेसबुक कभी भी ये नहीं बताता कि पिछले साल आपने कौन सी अच्छी पोस्ट लिखी थी और उसको कितने लोगो ने देखा या लाइक किया था अब इसके बाद क्या आपसे कहना कि फेसबुक भारत में क्या देख रहा है और क्या दिखाना चाहता है और ज्यादातर समझदार भारतीय फेसबुक की मंशा समझ कर इसके अलावा वर्ष भर कुछ करते भी नहीं है और शायद इसी लिए इस देश में लिखने का महत्व कम है उससे कोई क्रांति नहीं होती यहाँ पर क्रांति के लिए सब कुछ उल्टा करो उल्टा बोलो पर कुछ गंभीर कहोगे तो कालिदास और कल्हण के लिए है।
आम नागरिक के लिए तो फेसबुक रिफ्रेश होने का साधन मात्र है कोई करवा चौथ की फोट लगता है तो कोई खाना कहते हुए तो कोई अपने बच्चे बीवी बेटे की शादी जन्मदिन नौकरी आदि की ख़ुशी बांटता घूमता है फेसबुक पर लेकिन वो कभी नहीं सोचता कि जब आज कोई अपने परिवार में किसी की बात नहीं सुन रहा है तो आप किसको अपनी ख़ुशी सुना रहे है !!!!!!!!!!!! हा क्योकि अब जीवन बाजार से शुरू होकर बाजार पर खत्म हो जाता है तो हम सबको खुद को बाजार में खड़ा करना जरुरी है | जिस देश में लड़की को देख भर लेने पर बाप भाई किसी को मार पीट डालते है उसी देश में भाई बाप लड़की की फोटो उसकी ख़ूबसूरती के वर्णन को करते बायोडाटा को शादी.कॉम पर या घर हर में लेकर घूमते मिल जायेंगे जब अपनी बेटी का सौंदर्य खुद वर्णित करते है तो कोई बुराई नहीं इस देश में पर जब लड़की खुद अपने अनुरूप किसी को धुंध ले तो खाप पंचायत बैठ जाती है और लड़का लड़की का कत्ल हो जाता है और ऐसे कत्ल पर जब कोई फेस बुक पर बात आती है तो बीएस एक सन्नाटा सा पसरा मिलता है क्योकि टाकीज और रेलवे की खिड़की पर लगी भीड़ की तरह हम अपनी बात फेस बुक पर कहे या किसी की सुने आज पता नहीं क्यों मुझे एस अलग रहा है जैसे कोई माँ अपने अनचाहे गर्भ को किसी नाली या कूड़ेदान में फेंक संतोष कर लेती है कि चलो एक काम निपटा और कोई कुत्ता उसको खाकर या वो अजन्मा साद कर इस देश में समाप्त हो जाता है।
वैसे ही इस देश में फेस बुक किसी भी संवेदनशील बात का लिखना है !!!!!!!!! आप कभी सोच कर देखिएगा कि क्या अब हम सिर्फ इस होड़ में नहीं फस गए है कि हमने फेस बुक पर क्या किया जबकि हम सब इस सोशल मीडिया से देश की सूरत बदल सकते थे | जो बेवजह जुड़े है और जिन्दा होकर भी मरे के समान है वो कृपया खुद को उंफ़्रिएंड करके अपने घर में मुर्दे की तरह रहे | मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आप फेस बुक पर नहीं भी रहेंगे तो आपका ये मुर्दापन एक दिन आपको जरूर आपके प्रयास का परिणाम देगा और आप सच में मर जायेंगे तबके लिए भी परेशान न होइए क्योकि कुछ तो होंगे जिनको आपसे लगाव रहा होगा भारत में चूहा लोग नही मारते इस लगाव के कारण तो आपके लिए वो भी हो जायेगा पर अपने मुरडेपन से मुझको न मुर्दा बनाइये क्योकि मैं जिन्दा रहना चाहता हूँ क्योकि बहुत लालची हूँ मुझे थोड़ा और जीने दीजिये और अपने मुर्दे सानिध्य को मुझसे दूर कीजिये ताकि फेसबुक को आपके फेस की बुक बनाने के बजाये मैं इस देश का फेस बन असकुं क्या आप मेरी इतनी मादा करेंगे !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!