Total Samachar श्रावण मास में शिव पूजा का जानिये वैज्ञानिक महत्व

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डॉ. भरत राज सिंह,
महानिदेशक (तकनीकी), स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज, लखनऊ

शास्त्रों में कहा गया है कि श्रावण(सावन) का महीना भगवान शिव का महीना होता है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस महीने में भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा जी पाताल लोक में रहते हैं, इसी वजह से इस महीने में भगवान शिव ही पालनकर्ता होते हैं और वहीं भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा जी के भी कामों को देखते हैं, यानि सावन के महीने में त्रिदेवों की सारी शक्तियां भगवान शिव के पास ही होती है। यह जानकारी वैदिक विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ भरत राज सिंह ने एक बातचीत में दी। उनका मानना है कि वर्षा ऋतु के आने के उपरान्त सभी ताल-तलैया, नाले और नदियो में गंदा पानी एकत्रित होकर समुद्र में मिलता है । चूकि शेषनाग पर भगवान विष्णु वहाँ पर आसीन रहते हैं और ब्रह्मा भी उनकी नाभि से जुडे रहते है अर्थात पृथ्वी जो भरण-पोषण करती है वह भी कीडे – मकोडो के उत्सर्जन से धार्मिक आस्था में कमी आ सकती है, ऐसे में भगवान शिव व भगवान ब्रह्मा जी वहाँ से हटकर पाताल लोक चले जाने का धार्मिक शास्त्रो में उल्लेख किया गया है और भगवान शिव को वर्षा ऋतु में त्रिदेव के रूप में आराध्य माना जाता है।

सावन में भगवान शिव की पूजा का खास महत्त्व

डॉ सिंह बताते हैं कि शिव को देवों का देव महादेव कहा जाता है। वेदों में इन्हें रूद्र नाम से पुकारा गया है। अब आपको कुछ ऐसे काम बताते है, जिन्हे सावन में करने से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं जैसे सावन के महीने में शिवलिंग की पूजा की जाती है, लिंग सृष्टि का आधार है और शिव विश्व कल्याण के देवता है। शिवलिंग से दक्षिण दिशा में ही बैठकर पूजन करने से मनोकामना पूर्ण होती है। शिवलिंग पूजन के समय भक्त को भस्म का त्रिपुण्ड लगाना चाहिए, रूद्राक्ष की माला पहननी चाहिए और बिना कटेफटे हुये बेलपत्र अर्पित करने चाहिए। शिवलिंग की कभी पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए, आधी परिक्रमा करना ही शुभ होता है।

सावन में शिव की पूजा का वैज्ञानिक कारण

स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज , लखनऊ के निदेशक डॉ. भरत राज सिंह का कहना है कि शिव ब्रह्माण्ड की शक्ति के द्योतक हैं। शिवलिंग काले पत्थर का ही होता है, जो वातावरण व ब्रह्माण्ड से ऊर्जा अवशोषित करता रहता है। इस ऊर्जा को पूर्ण रूप से शिवलिंग में समाहित करने के लिए इसको साफ सुथरा रखने व जल, दूध आदि से अभिषेक करने की प्रथा शुरू हुई हैं, जिससे पूजा अर्चना के समय आप को उपयुक्त ऊर्जा प्राप्त हो और प्रदूषित ऊर्जा समाप्त हो जाए।

डॉ सिंह बताते हैं कि सावन का महीना ऐसा होता है जब बरसात से मौसम का एक माह से ज्यादा समय गुजर चुका होता है, उसके बाद मौसम में नमी व काफी सुहावनापन आ जाता है। बरसात के मौसम में शुरु के एक महीने में वातावरण में मौजूद विषाक्त गैसें व कार्बन आदि धरती पर पानी के कणों के साथ आ जाती हैं और अक्सर स्त्रियों व बच्चों में त्वचा सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इन रोगों को दूर करने हेतु ही सावन में औरतों द्वारा शिवलिंग पर अभिषेक (जल, दूध, बेलपत्र, घी, शहद आदि से) किया जाता है। जिससे त्वचा रोग के जर्म बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं और शरीर निरोगी हो जाता हैं।

सावन के महीने में शिव पार्वती की पूजा – अर्चना से दांपत्य जीवन में प्रेम और तालमेल बढ़ता है। सावन माह में सम्पूर्ण वातावरण में पेड़ – पौधों , खेतो, झाड़ियों व गार्डेन आदि में हरियाली आ जाती है, जिससे मनुष्यमात्र ही नहीं वरन जीव – जन्तुओं में भी प्रसन्नता बढ़ती है। सावन माह में औरतें समूह में झूला भी झूलती हैं और आपस में गायन कराती है, जिससे उनमें प्रसन्नता बढ़ती है।
शास्त्रों में अंकित है सावन के महीने में शिवलिंग की पूजा इसलिए की जाती है। यह लिंग सृष्टि का आधार है और औरतो द्वारा इस माह में किया गया गर्भ धारण अत्यंत प्रभावशाली व व्यक्तित्व का धनी होना पाया गया है, क्योंकि शिव विश्व कल्याण के देवता है।

पुष्पपत्र अर्पण की विधि व फल

बेलपत्र चढ़ाने से जन्मान्तर के पापों व रोग से मुक्ति मिलती है। कमल पुष्प चढ़ाने से शान्ति व धन की प्राप्ति होती है। कुशा चढ़ाने से मुक्ति की प्राप्ति होती है।
दूर्वा चढ़ाने से आयु में वृद्धि होती है। धतूरा अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति व पुत्र का सुख मिलता है।
कनेर का पुष्प चढ़ाने से परिवार में कलह व रोग से निवृत्ति मिलती हैं। शमी पत्र चढ़ाने से पापों का नाश होता, शत्रुओं व शमन व भूतप्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।

शिव पूजा में किन वस्तुओं का उपयोग बिल्कुल वर्जित

डॉ भरत राज सिंह बताते है कि शिव पूजा में निम्नलिखित वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए।
शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल अर्पित नहीं करने चाहिए क्यों ब्रह्म देव के झूठ में उनका साथ देने के वजह से शिव ने केतकी के फूलों को श्राप दिया था।
तुलसी पत्तों को शिवलिंग पर नहीं चढ़ना चाहिए , क्योंकि शिव द्वारा तुलसी के पति जरासंध का वध हुआ था।
नारियल तो ठीक है लेकिन शिवलिंग पर नारियल के पानी से अभिषेक नहीं करना चाहिए।
हल्दी का सम्बन्ध स्त्री सुन्दरता से है इसलिए शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ानी चाहिए।
भगवान शिव विनाशक हैं और सिंदूर जीवन का संकेत। इस वजह से शिव पूजा में सिंदूर उपयोग नहीं होता।

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