रहस्यों से भरा मन्दिर…
आज आपको टोटल सामाचर की टीम भारत के एक ऐसे मन्दिर के बारे में बातने जा रहा हैं जो कि भारत के ही नही बल्कि पूरे दुनिया के वैज्ञानिकों के लिये एक बहुत बड़ा रहस्य बना हुआ हैं। पूरे दुनिया से न जाने के कितने वैज्ञानिक इस मन्दिर में आये लेकिन इस मन्दिर के चमत्कार कहे या फिर रहस्य के आगे हाथ जोड़ लिये। ऐसा कहा जाता हैं कि आज तक ये मन्दिर वैज्ञानिको के लिये एक रहस्य बना हुआ हैं।
जी हां हम बात कर रहे हैं भारत के उडीसा राज्य के पूरी में स्थिती भगवान जगन्नाथ के मन्दिर की। आज टोटल समाचार की टीम आपको बताने जा रही हैं कि पूरी के जगन्नाथ मन्दिर के कुछ अनसुलझे अनकहे रहस्य। जिसके बारे में शायद ही सब को पता हो।
- हवा के विपरीत लहराता झण्डां- श्री जगन्नाथ मंदिर के गुम्बद पर लगा लाल झण्डां हमेशा हवा के दिशा के ठीक विपरीत दिशा में लहराता है। ये एक ऐसा रहस्य या चमत्कार हैं जिसकी आगे सभी नतमस्तक हो जाते हैं । यही चमत्कार रोज शाम मन्दिर के ऊपर लगे झण्डे को वहां के सेवकों के द्वार उल्टा चढ़कर बदला जाता हैं। मन्दिर के ऊपर लगा झण्डा बहुत ही भव्य होता है। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।
- मन्दिर के गुंबद की परछाई नहीं बनती – ऐसा कहा जाता हैं कि पूरी का ये जगन्नाथ मन्दिर दुनिया का सबसे ऊंचा और भव्य मन्दिर हैं, जो कि 4 लाख स्कायर फुट बना हुआ हैं। और इस मन्दिर की ऊचाई लगभग 214 फुट हैं। मन्दिर के करीब खड़े हो कर मन्दिर के मुख्य गुम्बद को देख पाना नामुमकिन हैं। मुख्य गुम्बद की छाया हर अदृश्य ही रहती हैं।
- भगवान जगन्नाथ का चमत्कारिक सुदर्शन चक्र – इस सुदर्शन चक्र की खास बात ये हैं कि इस चक्र को आप पूरी के किसी भी हिस्से से आप देखेगें तो ये चक्र आपके हमेशा आपके सामने ही नजर आयेगा। सुदर्शन चक्र को नीलचक्र के नाम से भी जाना जाता हैं। सुदर्शन चक्र अष्टधातु से बना हुआ हैं। इस चक्र को बहुत ही पावन और पवित्र माना जाता है।
- हवा चलने की दिशा – सामान्य दिनों में चलने वाली हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है। लेकिन पुरी में ऐसा नही होता। अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है। लेकिन पूरी में हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है।
- मन्दिर के गुम्बद के ऊपर नही उड़ता कोई भी पक्षी – पूरी के इस मन्दिर का एक बहुत बड़ा रहस्य ये भी हैं कि इस मन्दिर के गुम्बद के ऊपर से आज तक कोई भी पक्षी उड़ता हुआ नही दिखाई दिया। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं।
- इस मन्दिर में दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर – इस मन्दिर में बने रसोईघर का अन्दाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि रसोई में 800 रसोइए 300 उनके साथ काम करने वाले काम करते हैं। इस रसोई में लगभग 350 सवको द्वारा बनाया जाता हैं भगवान जगन्नाथ जी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन।कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है। है न चमत्कार!
- समुद्र की आवाज – मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।
- रूप बदलती मूर्ति – यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ नाम से भी जाना जाता हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।
- विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा – आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलोमीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ के परम भक्त राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी थी इसीलिए रानी को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है। अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष है। देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन है और भाई बलभद्र का रक्ष तल ध्वज है। पुरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू बुहारते हैं जिसे छेरा पैररन कहते हैं।
- हनुमान जी करते हैं जगन्नाथ की समुद्र से रक्षा – माना जाता है कि 3 बार समुद्र ने जगन्नाथ जी के मंदिर को तोड़ दिया था। कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ ने वीर मारुति (हनुमानजी) को यहां समुद्र को नियंत्रित करने हेतु नियुक्त किया था, परंतु जब-तब हनुमान भी जगन्नाथ-बलभद्र एवं सुभद्रा के दर्शनों का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे। वे प्रभु के दर्शन के लिए नगर में प्रवेश कर जाते थे, ऐसे में समुद्र भी उनके पीछे नगर में प्रवेश कर जाता था। केसरीनंदन हनुमानजी की इस आदत से परेशान होकर जगन्नाथ महाप्रभु ने हनुमानजी को यहां स्वर्ण बेड़ी से आबद्ध कर दिया। यहां जगन्नाथपुरी में ही सागर तट पर बेदी हनुमान का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है। भक्त लोग बेड़ी में जगड़े हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते हैं।
महान सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए गए स्वर्ण से कहीं अधिक था। पांच पांडव भी अज्ञातवास के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आए थे। श्री मंदिर के अंदर पांडवों का स्थान अब भी मौजूद है। भगवान जगन्नाथ जब चंदन यात्रा करते हैं तो पांच पांडव उनके साथ नरेन्द्र सरोवर जाते हैं। कहते हैं कि ईसा मसीह सिल्क रूट से होते हुए जब कश्मीर आए थे तब पुन: बेथलेहम जाते वक्त उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए थे।
9वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने यहां की यात्रा की थी और यहां पर उन्होंने चार मठों में से एक गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। इस मंदिर में गैर-भारतीय धर्म के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है।
माना जाता है कि ये प्रतिबंध कई विदेशियों द्वारा मंदिर और निकटवर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ और हमलों के कारण लगाए गए हैं। पूर्व में मंदिर को क्षति पहुंचाने के प्रयास किए जाते रहे हैं।