डॉ दिलीप अग्निहोत्री
महात्मा गांधी को हम व्यक्ति के स्तर पर समझने का प्रयास करते रहे है। व्यक्ति में निहित विचार स्वार्थ होते है। इसी के अनुरूप उनको भी समझने का प्रयास होता है। इसलिए उनको पूर्णता में आज तक समझा नहीं गया। क्योंकि महात्मा गांधी ऐसी सामान्य मानवीय सीमाओं से परे थे। उड़ीसा प्रवास के दौरान उन्हें एक परिवार की तीन महिलाओं के पास मात्र एक साड़ी होने की सूचना कस्तूरबा गांधी के माध्यम से मिली। महात्मा यह गरीबी देख कर विचलित हुए। सामान्य व्यक्ति होता तो उस परिवार को सहायता पहुंचा सकता है। लेकिन महात्मा की दृष्टि में तो सभी गरीब परिवार थे। अगली सुबह वह आश्रम से निकले तो वह एक धोती को ऊपर से नीचे तक पहने थे। उनका कहना था कि मैं सबको पूर्ण वस्त्र नहीं दे सकते। लेकिन उनकी तरह रह तो सकते है। यही विचार उनको सामान्य व्यक्ति से अलग करता है।
कुमार स्वामी फाउंडेशन ने वार्षिक संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया। भुवनेश चन्द्र मिश्र व्याख्यानमाला की सोलहवीं श्रंखला पर प्रो अम्बिका दत्त शर्मा का व्यख्यान दिया। उन्होंने कहा महात्मा इन मेकिंग पर व्यापक विचार आवश्यक है। इसी माध्यम से उनको समझा जा सकता है। वैसे उनका जीवन पारदर्शी था,खुली किताब जैसा है। उनके विचारों में समय समय पर बदलाव हुआ। उन्होंने इनको प्रकट भी कहा। यह रणनीतिक भी कहा गया। वह समाज जीवन में थे,राजनीति में सक्रिय थे। लेकिन इतने मात्र से उनका मूल्यांकन नहीं हो सकता। विकसित होते हुए गांधी नहीं, अभिव्यक्त होते हुए ही वस्तुतः महात्मा गांधी है। महात्मा इन मेकिंग से उनको समझने का मार्ग गहन है। उनके विषय में परस्पर विरोधी विचारों की भरमार है। प्रचलित मान्यताओं के मर्म को समझना आवश्यक है। इसमें भावातिरेक नहीं है। वैज्ञानिक तक उनकी प्रशंसा करते है। आइंस्टीन और गांधी के व्यक्तित्व अलग थे। लेकिन वह वैज्ञानिक महात्मा के मर्म को समझते थे। गांधी किसी राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व नहीं कर रहे थे। इस धरातल पर वह अलग दिखते है। रविन्द्र नाथ टैगोर का भी उनके विचार में अनौपचारिक है। गांधी जी के आलोचक भी कम नहीं है। किसी व्यक्ति को उसके विरुद्ध ही उद्धरित किया गया। नेहरू जी ने लिखा कि गांधी जी में आत्मविरोध भी है। वह दार्शनिक अराजकतावादी है। महात्मा गांधी अपने निर्णय व कदमों से भी चौकाते है। वह अपने हत्यारों को माफ करते है। अपने प्रति उसकी घृणा को समझना चाहते थे। हिंसा के कारण चौरीचौरा आंदोलन बन्द कर देते है। संघर्ष को वह विरोधी पर प्रहार रूप में नहीं देखते थे। उनके लिए संघर्ष सत्मार्ग पर चलने का संकल्प होना चाहिए। गांधी को समझने में भूल हुई है। गांधी को अपनी सीमा में रह कर समझा नहीं जा सकता। उन्हें देखकर सनातन भारतीय परंपरा को समझा जा सकता है। ऐसे महापुरुष भारत में ही हो सकते थे। उनके पहले स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु साधन पर विचार नहीं किया गया। महात्मा गांधी ने साधन की पवित्रता का मार्ग दिखाया। वह भारत की स्वतंत्रता में दुनिया का स्वातंत्र्य लाभ देखते थे। उनका आंदोलन इसी विचार के अनुरूप था। वह स्वतन्त्रता के ऊपर सत्य को वरियता देते थे। इससे उनके अनेक बड़े नेताओं का विरोध झेलना पड़ा। लेकिन वह विचलित नहीं हुए। उनका यह चिंतन अभूतपूर्व था।