डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
बचपन से ही हम सभी नेहा सुन रखा है कि यदि शिव से शक्ति को निकाल दिया जाए तो शेष शव बचता है और इस सत्य को जानने के बाद यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं है कि संस्कृति के दायरे में शक्ति का अर्थ अर्थात शिव के साथ खड़ी महिला कौन है निश्चित रूप से पत्नी ही शक्ति स्वरूपा है मुझे नहीं मालूम कि एक व्यक्ति के संदर्भ में मां बहन आदि का शक्ति से क्या लेना देना है लेकिन जिस दर्शन को पढ़कर एक समाज खड़ा हुआ है उसमें शक्ति का अर्थ पत्नी तक ज्यादा संदर्भित हो गया है और कौन पुरुष चाहेगा कि वह स्वयं शक्ति विहीन हो इसीलिए ज्यादातर लोक शक्ति की पूजा करते दिखाई देते हैं और शक्ति भी यह चाहती है कि उसके साथ खड़ा पुरुष शव में तब्दील ना हो जाए इसलिए वह समय-समय पर इतने व्रतों को रखती है की शक्ति का प्रवाह पुरुष की ओर केंद्रित रहे यही कारण है कि जब आप किसी से कुछ लेते हैं तो आप उसके आगे झुक कर ही चलते हैं और इसको रोज के जीवन में बहुत आसानी से महसूस किया जा सकता है अपने पति को दीर्घायु बनाने का व्रत रखने वाली शक्ति स्वरूपा अक्सर या कहते देखते मिलने लगी है कि वहां अपने सास-ससुर के साथ नहीं रह सकती है और उस शक्ति का आभामंडल ही है कि पुरुष अपने को शक्तिमान बनाने के लिए अक्सर अपने माता-पिता का हाथ पकड़कर उसे वृद्ध आश्रम का रास्ता दिखा देता है यह भी हो सकता है कि बहुत लोगों को यह सचिन ना लगता हो लेकिन यह भी सच है कि शक्ति स्वरूपा यदि या नहीं चाहती है कि वह अन्नपूर्णा बनकर सभी को खाना खिलाएं तो अक्सर घरों के बंटवारे इस बात के साक्ष्य बन जाते हैं और आखिर बनी भी क्यों ना आखिर पति को दीर्घायु जो रहना है और पति दीर्घायु बनने की चाहत में शक्ति स्वरूपा के कर्णफूल को लाने में नहीं सकता है लेकिन अपने बहनों के लिए कुछ करने में वह शक्ति स्वरूपा से अनुमति प्राप्त करना चाहता है और इस अर्थ में करवा चौथ का व्रत निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है कौन चाहता है कि अपने को मार कर वह दूसरों की खुशियों के लिए जिए इसीलिए पुरुष शक्ति की आराधना कर रहे हैं लगा है और इस बात को कहने में किसी को शायद एतराज नहीं होगा कि शक्ति का पुंज बनकर जलने वाला बल्ब हमेशा निर्वात में ही प्रकाश देता है इसीलिए आजकल घरों में निर्वात ज्यादा दिखाई देता है और उस निर्वात के कारण ही भौतिक सुख घरों में ज्यादा दिखाई देते हैं लेकिन धड़कती सांसे बुजुर्गों के आशीर्वाद नातेदारी यों का विस्तार सब कहीं उस निर्वात में खो जाता है।
यह भी एक विडंबना ही है कि लेखक द्वारा राजस्थान में अपने प्रवास के दौरान पाया गया कि अविवाहित लड़कियां भी एक बार करवा चौथ का व्रत रखती हैं क्योंकि वह चाहती हैं कि उन्हें एक सुयोग्य पति मिले अब यह विमर्श करने का विषय है कि सुयोग्यता की परिभाषा क्या है निश्चित रूप से सामाजिक न्याय के फल स्वरुप बढ़ते वृद्ध आश्रम वृद्धा पेंशन सरकार द्वारा कानून बनाकर वृद्ध माता-पिता के प्रति बच्चों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करना यह बताता है कि सुयोग्य पति कैसा होना चाहिए क्योंकि घर एक मंदिर तो तभी बन सकता है जब समाज में मंदिर देवी के कारण जान आ जाए अब उसमें यदि और देवी देवता विशिष्टता के साथ रहेंगे तो फिर शक्ति की परिभाषा कैसे हो पाएगी उत्तराखंड में लड़कियों द्वारा कोई भी ऐसा व्रत रखा ही नहीं जाता है क्योंकि वहां जौनसार बावर जैसी जनजातियां इस बात को सुनिश्चित करती हैं की बहू पति विवाह एक ऐसी परंपरा है जिसमें औरत सदैव ही शक्ति स्वरूपा बनी रहती है क्योंकि कोई ना कोई पति हमेशा मौजूद रहता है और वैसे तो फिल्म उद्योग ने इस बात को सुनिश्चित कर ही दिया है की करवा चौथ का मतलब क्या है और यह सब तो अब दकियानूसी बातें हैं कि करवा की विभिन्न आकृतियां दीवारों पर उकेरी जाए ₹10 का कैलेंडर ही काफी होता है यह दिखाने के लिए कि समय की उपयोगिता है सब कुछ तो अब बाजार से आ जाता है और सारा रिश्ता बाजार में खड़ा हो जाता है सिर्फ चार दिवारी के बीच एक ही रिश्ता रहना चाहता है जो अकेले रहकर अहम् ब्रह्मास्मि का शब्दकोश करता है लेकिन पुरुष की भी अपनी व्यवस्था है यदि उसके पास शक्ति नहीं रहेगी तो वह मृतप्राय हो जाएगा उसके शरीर पर चीटियां लगने लगेंगी मक्खियां भिन् भिनाने लगेंगी ऐसे में अपने को जीवित रखने का और दो रोटी खुद के सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा उपाय या है कि शक्ति के आगे झुक जाए आ जाए और इस बात को मान लिया जाए कि सारी छोड़ आधी को धावे आधी मिले ना पूरी पावे सभी को बटोरने से अच्छा है कम से कम शक्ति के स्रोत को तो न छोड़ा जाए अर्थ और शक्ति आएगी कैसे करवा चौथ और साल भर रखे जाने वाले व्रतों से आखिर बिना शक्ति के आप कैसे मुंहफट होकर अपने माता-पिता को घर से निकाल सकेंगे कैसे बंटवारा कर सकेंगे कैसे चूल्हे बांट सकेंगे कैसे राखी से मुंह मोड़ सकेंगे निश्चित रूप से इसके लिए ताकत चाहिए शक्ति चाहिए और उस शक्ति को पाने के लिए झुकना जरूरी है और जो झुक कर चलते हैं उन्हें सदैव मेवा मिलता है इसीलिए दीर्घायु के व्रत का आनंद लीजिए और करवा चौथ के उस घटते हुए चांद की तरह सभी रिश्तो को एक लकीर में समेट दीजिए क्योंकि पूर्णिमा का चांद बनने पर आप का दायरा चांद की तरह गोलाकार हो जाएगा और गोले का क्षेत्रफल सबसे कम होता है तो शक्ति का घाटा होगा और घाटे का सौदा किसे पसंद होता है इसीलिए चौथ के चांद की तरह रिश्तो को घटा ते हुए अपने दायरे को बढ़ाने का नाम शव को शक्ति बनाना है क्या आप अपने को शक्ति कृत मान रहे हैं तो आपको करवा चौथ के इस अद्भुत दर्शन का नमन और शुभकामना