डॉ० भरत राज सिंह महानिदेशक, स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज, लखनऊ
आज शिक्षक दिवस है और देशभर में बच्चों द्वारा भविष्य रोशन करने की कलाएं प्रस्तुत की जाएंगी। इस अवसर पर भारत के महापुरूष डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की 135वीं जयंती भी मनाई जा रही है। वास्तव में उनकी जयंती को ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। परन्तु यह बहुत कम लोगों को मालूम है कि उनके पहले भी भारतीय इतिहास में एक से बढ़कर एक शिक्षक रहे हैं। राम से लेकर विवेकानंद तक जितने भी युगनायक हुए हैं, उनके पीछे किसी न किसी महान गुरु का आशीर्वाद और शिक्षा रही है। यह शिक्षण पद्धति तो आदिकाल से चली आ रही है तथा हमारे पौराणिक ग्रंथो में गुरु-शिष्य परंपरा का अक्सर जिक्र भी मिलता है | जिसमे ऋषियों मुनियों द्वारा गुरुकुल व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा का जिक्र है| गुरुकुल क्या है, आइए इसको समझने की कोशिश करे |
*1. गुरुकुल पद्धति*
प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। देवताओं के गुरु थे बृहस्पति और असुरों के गुरु थे शुक्राचार्य। भारतीय इतिहास में एक से बढ़कर एक महान गुरु-शिक्षक रहे हैं। ऐसे गुरु हुए हैं जिनके आशीर्वाद और शिक्षा के कारण इस देश को महान युग नायक मिले। कण्व, भारद्वाज, वेदव्यास, अत्रि से लेकर वल्लभाचार्य, गोविंदाचार्य, गजानन महाराज, तुकाराम, ज्ञानेश्वर आदि सभी अपने काल के महान गुरु थे|
रामायणकाल में अर्थात जब राजा दशरथ जी के चार पुत्र हुए तो उनके राज्य में बहुत खुशिया मनाई गयी क्योकि इनका जन्म राजा दशरथ के द्वारा बहुत पूजा पाठ के बाद हुआ था और वह अपने जीवन के चौथेपन पर पहुच रहे गए थे | ऐसी दशा में राजा दशरथ अपने इन बच्चो को एक पल भी अपने से अलग नहीं करना चाहते थे |
*गुरु वशिष्ठ*:
राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। त्रैतायुग में भगवान राम के गुरु रहे श्री वशिष्ठ भी भारतीय गुरुओं में उच्च स्थान पर हैं। भगवान राम की प्रतिभा और उनके सद्व्यवहार को सबसे पहले श्री वशिष्ठ ने ही पहचाना। उन्होंने भगवान राम के व्यक्तित्व को देखते हुए पहले ही घोषणा कर दी थी कि ये भविष्य में सूर्यवंश राम के नाम से ही जाना जाएगा। धर्म के मार्ग पर चलने वाले भगवान राम ने अपने तीनो भाइयों के साथ सारी वेद-वेदांगों की शिक्षा वशिष्ठ ऋषि से ही प्राप्त की थी।
*गुरु विश्वामित्र*
विश्वामित्र वन में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उत्पात को समाप्त करने के लिए महाराज दशरथ का दरबार पहुंचे| बोले, “हे राजन्! मैं आपसे आपके ज्येष्ठ पुत्र राम को माँगने के लिये आया हूँ ताकि वह मेरे साथ जाकर राक्षसों से मेरे यज्ञ की रक्षा कर सके और मेरा यज्ञानुष्ठान निर्विघ्न पूरा हो सके। गुरु वशिष्ठ ने राजा को समझाया, कि महामुनि अत्यन्त विद्वान, नीतिनिपुण और अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता हैं। इनके साथ रह कर शस्त्र और शास्त्र विद्याओं में; और भी निपुण हो जायेंगे तथा उनका कल्याण ही होगा। इस प्रकार भगवान राम को परम योद्धा बनाने का श्रेय विश्वामित्र ऋषि को जाता है। एक क्षत्रिय राजा से ऋषि बने विश्वामित्र भृगु ऋषि के वंशज थे। विश्वामित्र को अपने जमाने का सबसे बड़ा आयुध अविष्कारक माना जाता है। उन्होंने ब्रह्मा के समकक्ष एक और सृष्टि की रचना कर डाली थी।
*सांदीपनि*
भगवान श्रीकृष्ण के गुरु आचार्य सांदीपनि थे। उज्जैयिनी वर्तमान में उज्जैन मंी अपने आश्रम में आचार्य सांदीपनि ने भगवान श्रीकृष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा दी थी। भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार श्रीकृष्ण ने सर्वज्ञानी होने के बाद भी सांदीपनि ऋषि से शिक्षा ग्रहण की और ये साबित किया कि कोई इंसान कितना भी प्रतिभाशाली या गुणी क्यों न हो, उसे जीवन में फिर भी एक गुरु की आवश्यकता होती ही है। भगवान श्रीकृष्ण ने 64 दिन में ये कलाएं सीखीं थी। सांदीपनि ऋषि परम तपस्वी भी थे, उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर यह वरदान प्राप्त किया था कि उज्जैयिनी में कभी अकाल नहीं पड़ेगा।
*द्रोणाचार्य*
द्वापरयुग में कौरवों और पांडवों के गुरु रहे द्रोणाचार्य भी श्रेष्ठ शिक्षकों की श्रेणी में काफी सम्मान से गिने जाते हैं। द्रोणाचार्य ने अर्जुन जैसे योद्धा को शिक्षित किया, जिसने पूरे महाभारत युद्ध का परिणाम अपने पराक्रम के बल पर बदल दिया। द्रोणाचार्य अपने युग के श्रेष्ठतम शिक्षक थे।
*चाणक्य*
आचार्य विष्णु गुप्त यानी चाणक्य कलयुग के पहले युगनायक माने गए हैं। दुनिया के सबसे पहले राजनीतिक षडयंत्र के रचयिता आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य जैसे साधारण भारतीय युवक को सिकंदर और धनानंद जैसे महान सम्राटों के सामने खड़ाकर कूटनीतिक युद्ध कराए। चंद्रगुप्त मौर्य को अखंड भारत का सम्राट बनाया। पहली बार छोटे-छोटे जनपदों और राज्यों में बंटे भारत को एक सूत्र में बांधने का कार्य आचार्य चाणक्य ने किया था। वे मूलत: अर्थशास्त्र के शिक्षक थे लेकिन उनकी असाधारण राजनीतिक समझ के कारण वे बहुत बड़े रणनीतिकार माने गए।
*रामकृष्ण परमहंस*
स्वामी विवेकानंद के गुरु आचार्य रामकृष्ण परमहंस भक्तों की श्रेणी में श्रेष्ठ माने गए हैं। मां काली के भक्त श्री परमहंस प्रेममार्गी भक्ति के समर्थक थे। ऐसा माना जाता है कि समाधि की अवस्था में वे मां काली से साक्षात वार्तालाप किया करते थे। उन्हीं की शिक्षा और ज्ञान से स्वामी विवेकानंद ने दुनियां में भारत को विश्वगुरू का परचम दिलाया। हम भारतीयों को गर्व होना चाहिए । साथ ही इनकी कहानियां बच्चों को सुनानी चाहिए। जिसे परंपराओं के साथ-साथ रौनक भी बरकरार रहे।
*2. स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय पद्धति*
कलयुग में भी गुरु चाणक्य व महर्षि राम कृष्ण परम हंस द्वारा भी शिक्षा अपने शिष्यों को आश्रम में ही देने का जिक्र मिलता है | परन्तु समय की मांग व आर्थिक युग के पदार्पण से शिक्षा भी व्यवसायिक रूप ग्रहण कर ली और सभी नगरो व कस्बो में स्कूल व कॉलेज खोल कर शिक्षा का ज्ञान दिया जाने लगा | इसमे बारे व छोटे , ऊंच –नीच की भावना से उबर नहीं पा रहे है और न ही ज्ञान सही रूप दिया जा रहा है |
*3. शिक्षण व्यवस्था पर विचार*–
प्रश्न यह उठता है कि इस भौतिकवादी व्यवस्था में क्या हम पुराने शिक्षण प्रणाली को लागू कर सकते है | शायद यह संभव नहीं है | क्योंकि त्रेता व द्वापर युग की व्यवस्था हेतु त्याग की भावना सरोपरी है| जबकि आज का शिक्षक अपने को ही दूसरी सेवाओ के पदों के अनुरूप नीचा मानता है और शिक्षण को सेवा का अंतिम विकल्प पर रखता है | क्या इसमें सरकार व शासन को इस व्यवष्था के लिए जिम्मेदार माना जाए मेरे विचार से यह सही नहीं होगा | समाज में शिक्षको के स्तर बढाने की जरूरत है जिनमे नैतिकता का विकाश पहले बहुत जरूरी है|
डॉ० भरत राज सिंह जो स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज के महानिदेशक है, का मानना है कि किसी देश के विकास में शिक्षा का विशेष महत्व है | ऐसे में हमें शिक्षण व्वस्था में गुरुजन जिन्हें अनुभव है व वरिष्ठ हैं वह चाहे जिस शेत्र से सेवानिवृत हो समाज व राष्ट्र हित में वीणा उठाये कि वह अछे शिक्षक तैयार करेगे | उनमे नैतिक का विकाश सर्व प्रथम करेंगे | फिर शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने की बात की जाय | वर्तमान शिक्षा व्यवस्था अछे अंक, सर्टिफिकेट अथवा डिग्री दे सकता है, जो किसी भी अच्छे सेवायोजक की न्यूनतम आवश्यकता मानी जा सकती है, परन्तु उसमें नैतिकता का विकाश नहीं है तो वह उस सेवायोजक के यहाँ पहले तो नौकरी नहीं पा सकता है| यदि वह नौकरी पा भी गया तो कार्यकुशलता के आभाव में कुछ ही दिनों में अयोग्य घोषित होकर निकल दिया जायेगा |
*यंहा पर हम दो उदहारण देना चाहूँगा*-
पहला- रिओ में सिल्वर पदक पाने वाली मिस पीवी सिन्धु | उसमें क्या योग्यता पायी गयी | उसने गुरु-शिष्य परंपरा का पूर्ण निर्वहन करते हुए, भौतिकता से दूर रह कर, अपने गुरु के दिशा निर्देश में समर्पणभाव से शिक्षण प्राप्त किया | लक्ष्य एक ही था कि अपना पूर्ण ध्यान केन्द्रित कर खेल को उच्च स्तर पर पहुचाना | तीन माह से मोबाइल फ़ोन भी गुरु ने अपने पास रख लिया, जिससे उसका ध्यान खेल के अलावा कही न भटके | ऐसे शिक्षक-शिष्य को पूर्ण भारत ने सलाम किया | यही शिक्षा का स्तर, हमारे भारतवर्ष में त्रेता व द्वापर युग में भी था, जब माँ-बाप अपने बच्चो को गुरुकुल में गुरु को समर्पित कर पूर्ण शिक्षा की अभिलाषा की कामना करते थे |
दूसरा –हमारे सैनिक जो किसी भी परिस्थित में क्यों न हो, वह राष्ट्र भावना से ओत-प्रोत होकर अपने दुश्मनो को छक्के छुड़ा देते है | सलाम है ऐसे सैनिक शिक्षको-शिष्यों को जो देश के लिए अपने को नैतिकता का पाठ इस कदर पड़ाते हैं कि सैनिक अपने पूर्ण समर्पणभाव व ताकत के साथ लडाई करते हए कुर्बानि तक दे डालता है | यह भी ट्रेनिंग गुरुकुल परंपरा का एक जीता जागता उदहारण है |
*अब मै अछे शिक्षक हेतु कुछ महत्वपूर्ण बिंदु बताना चाहूँगा* –
आज के इस भातिकवादी युग में शिक्षा की गुणवक्ता का जिसमें शैक्षणिक योग्यता व अंको की महत्ता केवल 15% तथा नैतिकता विकाश– कार्य सम्पादित करने के सामर्थ्य पर 85% का सेवायोजक सन्सथानो द्वारा दिया जा रहा है | अतः शिक्षण में कौशल विकाश व रवैया का पाठ बहुत जरूरी है |
*किसी भी कार्य में सफलता की कुंजी*-
*उत्साह*-किसी भी कार्य करने में उत्साह जरूरी है| जैसे बचपन में बच्चे को पार्क ले जाने की बात पर वह पूरे दिन उत्साहित रहता है |
*चमक*- किसी भी कार्य में सफलता मिलते ही चेहरे पर चमक आ जा जाती है, हमें यह चमक शिष्य में पैदा करनी है|
*लक्ष्य*- प्रत्येक कार्य का लक्ष्य जरूर निर्धारित होना चाहिए, भले छोटा ही हो | यह गुण शिष्य में डाले, वह छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित कर सफ़लता की सीड़ी चड़ने का अभ्यस्त होगा|
*प्रचार*- अच्छे कार्य करने के गुण को शिष्य को उत्साहित करना चाहिए की दूसरो को भी बताए | इससे उसमे अधिक उत्साह व चमक उत्पन्न होगी |
*आंधी* – कार्य करने में बहुत सी रुकवाटे आती है जैसे :
*मायूसी*- किसी भी कार्य के असफलता पर मायूसी आती है , इससे आगे कार्य करने में सुविधा मिलती है अतः इसका अच्छा पहलू ग्रहण करना चाहिए|
*असंतोष* – कार्य पूर्ण न होने व अच्छे से न होने में यह महसूस होता है परन्तु आगे के कार्य हेतु शिक्षा मिलती है |
*झुझलाहट* – कार्य मन से किया , गुणवत्ता सही नहीं रही | आगे इस पर विशेष ध्यान देना है |
*एकांत* – असफल व कार्य संपादन में देरी | यह भविष्य में सुधार हेतु मौका है , सफलता अवश्य मिलेगी |
उक्त छोटी –छोटी बाते ध्यान में रख कर यदि बच्चो में अच्छी शिक्षा का विकाश करेंगे आपका शिष्य आगे बढेगा और आपका भी उसकी सफलता से नाम ऊँचा होगा | आएये शिक्षक के दायित्व का निर्वहन करते हुए अच्छे शिष्य बनाने में राष्ट्र व विश्व को अग्रणी दिशा देने में सहयोग करे तथा शिक्षक दिवस पर कर्तब्यो प्रति जागृत होने का शपथ ले| यही मेरे तरफ से आप सभी को शिक्षक दिवस पर सबसे बड़ी शुभकामना है |