भूपेन्द्र-पाठक, ब्यूरोचीफ
कभी कभी मुझे भी लगता है कि हम लोग जनभावना की आड़ में बात का बतंगड़ बनाने लगे है। इसी को “ओवर एक्टिविज़्म” कहा जाता हैं। कई बुद्धजीवियों ने इससे बचने की सलाह भी कई बार दी हैं। । जनभावना हमेशा सही हो, ये ज़रूरी नहीं। नेतृत्व भी हमेशा समय परिस्थिति लाभ हानि जैसे कुछ अन्य फैक्टर देखकर ही जनभावना का अनुसरण करता है।
अर्णब गोस्वामी “कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी के कुशासन” का शिकार हुआ। भाजपा नेताओं ने अर्णब गोस्वामी का समर्थन किया। कई जगह सड़कों पर अर्णब के समर्थन में भाजपा नेता ही थे। लेकिन ज्यादा समझदार समर्थको ने इस तथ्य को पूरी तरह इग्नोर करके उल्टा मोदी और भाजपा को ही धमकी दे डाली। ये है “ओवर एक्टिविज़्म”..!!
अर्णब के मामले में हम लोगों ने “जान का खतरा” चिल्ला चिल्ला कर सच मे अर्णब की जान पर संकट पैदा कर दिया है। ज्यादा समझदार समर्थको ने “भाजपा पर थूकता है भारत” ट्रेंड करा कर भाजपा को संदेश तो दे दिया। लेकिन भावुकता में आपने दुश्मन को क्या संदेश दिया है ?
आपका प्रचंड क्रोध देखकर ऐसा लग रहा है कि अगर अर्णब को कुछ हुआ तो भाजपा समर्थक ही भाजपा का समूल नाश कर देंगे और यकीन मानिये दुश्मन तो यही चाहता है.. भाजपा का नाश। आपने दुश्मन का काम कितना आसान कर दिया है। भाजपा के आला कमान के साथ साथ राष्ट्र निर्माण में लगे कार्यकर्ताओं को भी इस बात पर विचार करना चाहिये कि कही “घर का भेदी लंका ढाये” ये कहावत उन पर ही चरितार्थ न हो जाये।