केले की पवित्रता व पूजन

 

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रघोत्तम शुक्ल
लेखक,कवि एवं पूर्व प्रशासनिक अधिकारी

हिंदू समाज  में कदली या केले की पवित्रता सर्वस्वीकार्य है। मांगलिक अवसरों पर केले के द्वार बनायें जाते हैं । महिलाएं बृहस्पतिवार को कदली पूजन करती हैं। बृहस्पतिवार को कदली पूजन करती है। इसके पत्तों में भोजन किया जाता है।इसके फल पौष्टिक और सुस्वाद होते हैं। कवियों ने कदली के तने से नारी की जंघाओं की उपमा दी है क्योंकि केले का तना सुकोमल और स्निग्ध होता है ।

 

कदली की इतनी पवित्रता – पूजनीयता क्यों ?

कदली अपना वंशक्रम स्वयं बनाये रखता है , केले में एक निरंतरता है जो स्वचालित संसार चक्र का प्रतीक है। कदली पूजन सृष्टि चक्र और उसके रचनाकार की अर्चना है । कपूर जैसा सुगंधित धवल निष्कलंक और आत्मोत्सर्ग करने वाला पदार्थ इसी के गर्भ से उत्पत्र होता है।

श्री हनुमान जो शाश्वत अजर अमर और सर्वव्यापी हैं,कदलीवन में वास करते हैं। महाभारत के वनपर्व के अंतर्गत आये प्रंसगानुसार जब भीमसेन द्रोपदी के लिए सौगंधिक कमल लेने हेतु गंधमादन पर्वत पर गये तो वहां कदलीवन में उनकी भेंट हनुमान जी से हुई ।उसी जगह से स्वर्ग को रास्ता जाता था। हनुमान जी ने उन्हें आगे बढ़ने से मना किया ताकि भीम को कोई अभिशप्त न कर दे ।

हनुमान जी ने बताया ” हे भीम ! इस जगह ( कदली वन में) गन्धर्व और अप्सराएं वीरवर रघुनाथ जी का चरित्र गाकर मुझे आंनदित करते रहते हैं। इस प्रकार कदलीवन स्वर्ग का द्वार हनुमान जी का निवास स्थान तथा भगवान राम के चरित्रगान के स्वरों से भरपूर है।

वराह पुराण के अध्याय 145 के वर्णनानुसार शालग्राम क्षेत्र में कृष्ण गाडकी और त्रिशूल गंगा के बीच का क्षेत्र सर्वतीर्थकदम्बक है। यहां भी सुदंर कदली वन है। जिसका सेवन सर्वपापनाशक है। पद्म पुराण पाताल खण्ड के अनुसार शालग्राम क्षेत्र नेपाल का मुक्तिनाथ है। यह है केले की पवित्रता और शुभ प्रकृति।

 

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