डॉ दिलीप अग्निहोत्री
दिल्ली सीमा पर छह महीने पहले शुरू हुआ आंदोलन वस्तुतः असत्य पर आधारित था। क्योंकि इसे किसान आंदोलन का नाम दिया गया,लेकिन इसमें किसानों के हित का कोई उद्देश्य ही नहीं था। तीन कृषि कानूनों के माध्यम से किसानों को अधिकार प्रदान किये गए थे। जो विकल्प दिए गए वह बाध्यकारी नहीं थे। कॉन्ट्रैक्ट केवल उपज का था। आंदोलन के नेताओं ने इसे जमीन का कॉन्ट्रैक्ट बता कर गलत फहमी फैलाई थी। अब तो कृषि कानूनों का क्रियान्वयन भी शुरू हो गया।
अप्रिय अध्याय
इन कानूनों का किसानों को लाभ भी मिलने लगा। ऐसे में यह आंदोलन पूरी तरह निराधार व अप्रासंगिक हो गया है। इसके नेताओं ने अभी काला दिवस मनाया था। किंतु यह शब्द अपर्याप्त है। इसका तो काला अध्याय है। जिसमें गणतंत्र दिवस पर लाल किले की अराजकता थी,जिसमें विदेश के भारत विरोधी तत्वों हस्तक्षेप था,जिसमें आतंकी तत्वों के प्रति हमदर्दी के बैनर थे।
असत्य साबित हुई आशंकाएं
किसानों की जमीन छीन जाने की आशंका निर्मूल थी। कृषि कानूनों के लागू होने के बाद सच्चाई सामने आ गई। इसमें जमीन को अधिक संरक्षण मिला। यह किसानों के हित में है। इस तरह किसानों के नाम पर चल रहा आंदोलन असत्य व निरर्थक साबित हो चुका है। इसका दायरा छह महीने में ही सिमट गया। जिन बारह पार्टियों ने इसे समर्थन दिया,उनमें से अनेक सत्ता में रह चुकी है। उनके समय में करीब तीन प्रतिशत अनाज की खरीद कृषि मंडियों से होती थी। अब ये लोग किसान हितैषी बने है। कह रहे है कि देश के किसान आंदोलन कर रहे है। जबकि आंदोलन के नेताओं का ये पिछलग्गू बन कर अपनी राजनीति कर रहे है। किसानों के नाम पर इनकी पार्टियों के कार्यकर्ता ही हंगामा करते रहे है। इस बार तो वह भी ट्वीट तक ही सीमित रहे है।
बिचौलिया विहीन व्यवस्था
पंजाब से इस आंदोलन को सर्वाधिक ऊर्जा मिलती रही है। लेकिन इसी पंजाब में कृषि कानूनों के अनुरूप हुई गेंहू खरीद का रिकार्ड कायम हुआ। इतना ही नहीं पहली बार खरीद में बिचौलियों की कोई भूमिका नहीं थी,पहली बार किसानों के खाते में शत प्रतिशत धनराशि का भुगतान हुआ। जाहिर है कि कृषि मंडी की व्यवस्था ज्यादा मजबूत हुई है,किसानों को ज्यादा लाभ मिला।आंदोलन का सर्वाधिक असर यहीं था। लेकिन कानून लागू होने के बाद कृषि मंडी से सर्वाधिक खरीद हुई। यहां नौ लाख किसानों से एक सौ तीस लाख टन से अधिक की गेहूं की खरीद की गई। कृषि कानूनों के कारण पहली बार खरीद से बिचौलिए बाहर हो गए। यही लोग आंदोलन में सबसे आगे बताए जा रहे थे। नरेंद्र मोदी सरकार की नीति के अनुरूप तेईस हजार करोड़ रूपये का भुगतान सीधे किसानों के बैंक खातों में किया गया। नए कानून के अनुसार सरकार ने किसानों को अनाज खरीद नामक पोर्टल पर रजिस्टर किया गया। पंजाब देश का पहला राज्य बन गया है जहां किसानों के जमीन संबंधी विवरण जे फार्म में भरकर सरकार के डिजिटल लॉकर में रखा गया है। इससे किसी प्रकार के गड़बड़ी की आशंका दूर हो गई। कृषि कानून लागू होने से पहले सरकारी एजेंसियां आढ़तियों बिचैलियों के माध्यम से खरीद करती थी। केबल पंजाब में करीब तीस हजार एजेंट थे। खरीद एजेंसी इनकी कमीशन देती थी। ये किसानों से भी कमीशन लेते थे। अनुमान लगाया जा सकता है कि कृषि कानूनों से किसको नुकसान हो रहा था।
किसानों को मिला अधिकार
किसानों को तो अधिकार व विकल्प दिए गए थे। केंद्र सरकार ने पहले ही कह दिया था कि किसानों को सीधे भुगतान की अनुमति नहीं दी गई तो सरकार पंजाब से गेहूं खरीद नहीं करेगी। इसके बाद ही पंजाब सरकार किसानों के बैंक खातों में सीधे अदायगी पर तैयार हुई। जाहिर है कि किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन की सच्चाई सामने आ गई है। यह भी आन्दोलन जीवियों की ही गतिविधि थी। पिछले छह वर्षों में ऐसे लोग बहुत सक्रिय है। इनको निराधार मुद्दों पर महीनों आंदोलन चलाने की महारथ हासिल है। ये बात अलग है कि समय के साथ ये खुद बेनकाब हो जाते है।