सिद्धार्थ सिंह, मध्यप्रदेश..
आप सोच रहे होंगे की हम आपको वही सलीम – अनारकली की कहानी सुनाने वाले हैं, लेकिन ऐसा नहीं है ये कहानी है एक ऐसे राजा और रानी की जिन्होंने अपनी जान देकर इसे अमर बना दिया । ये कहानी है मध्यप्रदेश के धार जिले में प्राकृतिक सौंदर्य से नहाए हुए विंध्याचल पर्वत पर स्थित “मांडू या मांडवगढ़” की मांडू के अंतिम स्वतंत्र मुस्लिम शासक सुल्तान बाज बहादुर और उनकी हिन्दू पत्नी, प्रेमिका रानी रूपमती की ।
दरअसल रानी रूपमती सारंगपुर की रहने वाली थी और अपने नाम को चरितार्थ करती हुई सौंदर्य और सुरीले कंठ की मल्लिका थी और वहीं मांडू के सुल्तान बाजबहादुर थे कलाप्रेमी जब उन्होंने रूपमती को देखा तो अपने आप को रोक ना सके और उनके सौंदर्य में ऐसे खोए की उस लड़की के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया ।
दोनों का विवाह हो गया पर विवाह के बाद भी रानी रूपमती ने अपना हिन्दू धर्म नहीं छोड़ा और सुल्तान बाजबहादुर ने इसका सम्मान किया इतना ही नहीं रानी रूपमती कभी भी मां नर्मदा के दर्शन किए बिना अन्न ग्रहण नहीं करती थी, इसके लिए भी उनके प्रेमी बाजबहादुर नर्मदा नदी के जल को नहर के जरिए महेश्वर से मांडू किले तक लाए और उसके किनारे रानी रूपमती का महल बनवाया जिससे वो रोज मां नर्मदा के दर्शन कर सकें।
रानी रूपमती जितनी सुंदर थी उतना ही सुरीला उनका कंठ भी था जिससे वो जब गायन करती तो ना सिर्फ बाजबहादुर बल्कि पूरा मांडू खिल उठता लोग तो यहां तक बताते हैं की रानी का सौंदर्य ऐसा था कि आईना भी उनके सौंदर्य से चिढ़कर फूट जाता था, रानी रूपमती और बाजबहादुर का प्रेम इतना गहरा था कि दोनो एक दूसरे के मन की बात बिना कुछ बोले ही समझ जाते था, धीरे – धीरे इन दोनो की प्रेम कहानी और रानी के सौंदर्य के चर्चे सब कहीं होने लगे।
लेकिन हर प्रेम कहानी की तरह इसमें भी एक खलनायक का प्रवेश हुआ और वो कोई और नहीं हिंदुस्तान का बादशाह अकबर था , जब अकबर ने रानी रूपमती के बारे में सुना तो अपने साम्राज्य के दंभ में चूर अकबर की बुरी नज़र इन दोनो की प्रेम कहानी को लग गई, अकबर ने बाजबहादुर को एक खत लिखा। खत में रानी रूपमती को दिल्ली दरबार में भेजन का हुक्म था। इस खत को पढ़कर बाजबहादुर तिलमिला उठे। उन्होंने अकबर को पत्र लिखकर कहा कि वे अपने हरम की रानियां मांडू भिजवा दें। लेकिन अपने अहंकार से चूर अकबर ये समझ ही नहीं सका की वो एक राजा से उसकी रानी एक प्रेमी से उसकी प्रेमिका को देने को कह रहा था।
ऐसा जबाव सुनकर अकबर अपना आपा खो बैठा और वही हुआ जो हमेशा से ऐसे शासक करते आए हैं, अकबर ने अपने सिपहसालार आदम खां को मालवा पर चढ़ाई करने का हुक्म दे दिया। आदम खां ने मालवा में खूब कत्लेआम मचाया और बाज बहादुर अपनी छोटी से सेना के साथ उसका मुकाबला नहीं कर पाए भीषण युद्ध में बाजबहादुर की हार हुई और आदम खां ने सुल्तान को बंदी बना लिया। इसके बाद अकबर के सिपाहियों ने रानी के महल की ओर कूच की वे रूपमती को लेने रानीपुर की ओर चल पड़े। इसकी सूचना जैसे ही रानी रूपमती को चली, उन्होंने खुद को अकबर के हाथों में सौंपने की जगह हीरा निगलकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
रानी रूपमती की मौत की खबर जब अकबर को मिली तो वह भी रानी के सम्मान में झुक गया और पश्चाताप के कारण उसने बाजबहादुर को कैद से आजाद कर दिया। बाज बहादुर ने कहा कि वह वापस अपनी राजधानी सांरगपुर जाना चाहते हैं। सांरगपुर जाने के बाद बाजबहादुर ने अपनी प्रेमिका रानी रूपमती की मज़ार पर सिर पटक-पटक कर अपनी जान दे दी। इस घटना के बाद अकबर को अपने किए पर बेहद पछतावा हुआ।
शर्मिंदिगी से भरे अकबर ने 1568 में सांरगपुर के समीप इन प्रेमियों के लिए एक मकबरे का निर्माण करवाया । बाज बहादुर के मकबरे पर अकबर ने ‘आशिक ए सादिक’ और रूपमती की समाधि पर ‘शाहीद ए वफा’ लिखवाया।
कुछ ऐसी थी ये अनूठी प्रेम कहानी जहां एक हिन्दू रानी ने अपना धर्म ना छोड़ते हुए पत्निवृता धर्म का पालन किया और वहीं दूसरी तरफ एक मुस्लिम सुल्तान ने अपनी प्रेमिका के लिए माँ नर्मदा के जल को मांडू तक ला दिया और जब इनके प्यार की परीक्षा की घड़ी आई तो दोनो ने अपनी जान देकर भी अपने प्रेम को अमर कर दिया।
आज भले ही ये दोनों यहां नहीं है लेकिन सदियों बाद भी इनकी प्रेम कहानी वैसे ही अमर बनी हुई है, मांडू का पत्ता – पत्ता इनके अमर प्रेम की गवाही देता नज़र आता है ।