डॉ. ध्रुव कुमार त्रिपाठी, एशोसिएट प्रोफेसर.

मद्यपान को समझने के लिए दो प्रकार के मतावलम्बियों पर विमर्श करना पड़ेगा। शराब की पैरोंकारी में आधी आबादी यानी महिलाएं कभी नहीं चाहती कि शराब के विक्रय किसी रूप में चलती रहे। इसके क्या कारण है। इस पर आगे हम चर्चा करेंगे, पहले तो यह समझना है कि शराब के प्रतिबंध के पक्ष में खड़े लोग कौन हैं।  धर्मावलंबी भी शराब प्रतिबंध के पक्ष में हमेशा खड़े रहते हैं। 10% लोग जो शराब को हानिकारक मानते हैं। वह भी शराबबंदी के पक्ष में खड़े होते हैं। वहीं दूसरी तरफ यदि आप देखें तो शराब की खूबियां गिनाते बहुत लोग मिल जायेगें। बहुतेरे तो दूध से ज्यादा उपयोगी पदार्थ के पक्ष में अनेकों उदाहरण देने से भी गुरेज नहीं करते। मन को शांति एवं चिंता की हरण अचूक दवा के रूप में शराब का प्रयोग करते हैं।  महत्वपूर्ण कार्य कराने के लिए दिए जाने वाले रिश्वत  के रूप में शराब प्रचलन में हैं। संबंधों की निकटता बढ़ानी हो तो यह संजीवनी बूटी की तरह काम करती है। वही सरकार शराब को राजस्व प्राप्ति का ब्रह्मास्त्र समझती है. तभी तो शराब और पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। कुल मिलाकर शराब बिक्री के पक्ष में खड़े होने वालों की कोई कमी नहीं है। कोई भी व्यक्ति शराब बिक्री पर सवाल उठाता है, तो उसे राष्ट्रद्रोही कहा जा सकता है। यह सही है कि भारतीय संविधान में हमें खाने-पीने की पूर्ण स्वतंत्रता स्वयं प्रदान है। हम क्या खाएं क्या न खाएं। यह स्वयं तय कर सकते हैं। लेकिन सवाल तो कुछ और उठेंगे जो पूछे जायेगें। कुछ मुखर रूप से तो कुछ दबी जुबान से।

कुछ सवाल सरकार से पूछे जाने चाहिये

  1. शराब की आय से कौन लोग लाभान्वित हो रहे हैं।
  2. शराब ठेका प्रथा समाप्त करके शराब की बिक्री की खुली छूट देने में क्या कठिनाई है।
  3. यदि शराब की बिक्री का विकेंद्रीकरण कर दिया जाए, तो वह कौन लोग हैं जिनकी आय प्रभावित होगी।
  4. शराब से किन आय वर्ग के लोगों की मृत्यु ज्यादा होती है।
  5. शराब से मृतक व्यक्ति के परिजनों को शराब द्वारा प्राप्त आय की एक निश्चित राशि परिवार के भरण-पोषण के लिए दिए जाने की योजना क्यों नहीं बनाई गई।
  6. यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि शराब की आय से कुछ रसूखदार नेता, ठेकेदार, कुछ पत्रकार (मौन रहने वाले), शराब व्यवसाई और नौकरशाहों के निकटस्थ व्यक्ति आनंद उठा रहे हैं। यह जानते हुए भी कि शराब पीकर बलात्कार के केस, चोरी, डकैती और सड़क दुर्घटना, धारदार हथियार से हमला जैसे अपराध बढ़ रहे हैं। सरकार मौन क्यों है।

इस प्रकार के सवाल सरकार से पूछने पर शराब भक्त को बहुत बुरा लगता है। सरकारोॆ को भी बुरा लगता होगा। लेकिन यही यथार्थ सत्य है। जिसे हम सभी को स्वीकार करना ही पड़ेगा। स्वतंत्रता के पहले से ही शराब पर अनेक उपबंध किए गए हैं। दिसंबर 1947 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी को एक पत्र लिखा।

मेरे प्रिय जवाहरलाल,                                                                               3 दिसंबर 1947

नई दिल्ली.

मुझे इस समय काफी निमंत्रण पत्र मिल रहे हैं। जो शराब या कॉकटेल पार्टी की है। यह निमंत्रण विदेशी दूतावास, सेना प्रमुख के साथ साथ अनेक प्रशासनिक अधिकारियों, जन सेवकों के यहां से आता है। हम चाहते हैं कि इन्हे बताया जाए की शराब वाली पार्टी में मेरा जाना संभव नहीं है। मेरा सुझाव है कि मंत्री परिषद की बैठक बुलाकर मद्य निषेध नीति पर विचार करना चाहिए।

                                                                                                            आपका

                                                                                                      सरदार वल्लभ भाई पटेल

उस समय शराबबंदी पर अनेक आरोप-प्रत्यारोप हो रहे थे। मगर विराट व्यक्तित्व युक्त प्रधानमंत्री तनिक भी विचलित नहीं हुए। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा ‘लोक कल्याण के लिए शराबबंदी करने वाले राज्यों को शराब राजस्व का आधा भाग केंद्र सरकार द्वारा दिया जाएगा” यह तो आज भी हो सकता है लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए। वर्तमान भारत में शराब बंदी गुजरात बिहार तक ही सीमित है क्यों। राजस्व उगाही की लत/आदत कब से पड़ा। यहां यह जानना जरूरी है  1770 में पहली बार आबकारी के नियमों का गठन किया गया। भारत उस वक्त गुलाम था। अंग्रेज शासक शराब के राजस्व से प्राप्त आय उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करते थे। 1871 केशव चंद्र सेन जी ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन चलाया। गोपाल कृष्ण गोखले, राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती जैसे समाज चिंतकों ने शराब का पुरजोर विरोध किया। 1919 के बाद जब चुने हुए भारतीयों को मंत्री बनाया गया। तब अंग्रेजों द्वारा कहा गया कि शराब की आय से शिक्षा विभाग चलेगा। 1920-21 में भारत की महिलाओं ने शराब की दुकानों पर धरना प्रदर्शन किया अट्ठारह सौ नवासी में ब्रिटिश पार्लियामेंट में शराब द्वारा राजस्व प्राप्त करने की निंदा भी हुई 1925 में पूर्ण शराबबंदी का प्रस्ताव पास कर दिया गया। गांधी जी हमेशा शराब बन्दी का विरोध करते थे। साथ ही शराब की आय से किसी भी शिक्षा के विरोध में हमेशा खड़े हुए ।

महात्मा गांधी जी ने इस निर्णय का विरोध किया और कहा शराब बंद करने के लिए यदि जनता को शिक्षा प्राप्त की सुविधा से वंचित होना पड़े तो भी मुझे मंजूर है। ऐसी शिक्षा हमें नहीं चाहिए।

1960 में बाल गंगाधर तिलक ने शराब बिक्री के खिलाफ आंदोलन चलाया महात्मा गांधी ने शराब बिक्री को असहयोग आंदोलन का मुद्दा बना दिया।  गांधी इरविन समझौता के समय शराब की दुकानों पर पिकेटिंग जारी रखने का प्रयास किया गया। शराबबंदी को लेकर गांधीजी चिंतित रहते थे।

 

महात्मा गांधी 15 -5 -1921 शिमला में दिये भाषण के अंश

गांधी जी ने कहा मैं ऐसा महसूस करता हूं कि भगवान ने बिना मांगे ही हमारे लिए ये आंदोलन (शराबबंदी) तैयार कर दिया। इसको लेकर काफी हंगामा मचा गया। आंदोलन के हिंसक रूप धारण कर लेने का अंदेशा कम नही था। लेकिन जब तक सरकार (अंग्रेजी हुकूमत) शराब की दुकानों को खुला रखने पर आमादा है। तब तक हमें रात दिन एक करके गलत रास्ते पर चलने वाले अपने भाई बहनों को समझाना होगा कि शराब से अपना मुंह गंदा ना करें।

 

शराब बिक्री का अर्थशास्त्र?

आज भारत में हर व्यक्ति शराब के धंधे में उतरना चाहता है। बेहिसाब और अकूत दौलत से लबरेज यह व्यापार ना केवल शहरों को अपितु गांव को भी प्रभावित किया है। आए दिन लाखों लीटर अवैध शराब बनाए जाने की घटनाएं सोचने को विवश करती हैं कि आखिर इसमें कितना लाभ है। जो सभी शराब का ही व्यवसाय करना चाहते हैं। आपने टेलीविजन पर आने वाले विज्ञापनों को ध्यान से देखा होगा। धोखे से शराब का प्रचार चलाया जाता है। सोडा और पानी के बोतल के प्रचार के बहाने ब्रांडेड शराब का प्रचार यह प्रमाणित करता है की शराब में धनार्दन की शक्ति असीम है। शराब से सरकार को राजस्व के रूप में प्राप्त टैक्स जरूर मिलता है। लेकिन वह पैसा अनेक समस्याओं पर सरकार द्वारा खर्च किया जाता है। जिसको सरकारें विकास के नाम पर खर्च बताती हैं। अर्थशास्त्र का सार्वभौमिक सिद्धांत है लागत लाभ अनुपात किसी भी व्यवस्था उद्योग व्यवसाय को लगाने से पहले इसका निर्णय किया जाता है कि व्यय धन पर कितना लाभ होगा।

अमेरिकी सरकार द्वारा समिति गठित की गई। जिसमें शराब पीने से उनके परिवार, पड़ोसी, रिश्तेदार, समाज को जो हानियां होती हैं उसका आकलन किया गया। जिसमें चौकानेवाले परिणाम निकले। शराब से यदि $1 आय प्राप्त होता हैं। तो शराबी द्वारा उत्पन्न समस्याओं (दुर्घटना, हॉस्पिटल, हत्या, बलात्कार, पारिवारिक हिंसा) के समाधान पर सरकार को 3.5 डालर खर्च करना पड़ता है। वास्तविकता तो यह है की यही आंकड़ा थोड़े कम ज्यादा रूप में सभी देशों पर समान रूप से लागू होता है।

व्यवसाय अल्प जोखिम भरा है.

यह व्यवसाय सबसे कम जोखिम भरा है। पहले तो सरकारें शराब का दाम कम करके लोगों को आकर्षित करती हैं। आदती बना देती हैं। जब बिना शराब के उनका जीवन मुश्किल हो जाता है। तब ऊंचे दाम या मनमाने मूल्य वसूल करती हैं। देखा जाए तो यह एक अमानवीय कृत्य है। आपने देखा होगा लॉकडाउन के दौरान 20 मार्च से सभी व्यवसाय बंद थे। सभी चिंतित थे, अब क्या होगा, कैसे जीवन चलेगा। दुकान का किराया, कर्मचारियों की सैलरी, उधारीयों की देनदारी, बैंक का कर्ज कैसे अदा किया जाएगा। उपर्युक्त सभी सवालों से शराब व्यवसाई निश्चिंत थे। उन्हें पता था कि जिस दिन दुकान खुलेगी सामान बेचने की अनुमति मिलेगी। मेरा सारा घाटा पूरा हो जाएगा और हुआ भी वही।  लोग लाइन में लग गए शराब खरीदने के लिए। शराब का व्यवसाय आम आदमी नहीं कर सकता है। सिर्फ कुछ चुनिंदा लोग जिनमें पूंजीपति रसूखदार नेता के रिश्तेदार, बड़े अधिकारियों के करीबी नामचीन ठेकेदार ही इन व्यवसाय में लगे हैं।  मदिरा का दाम बढ़ाने पर कोई आंदोलन का डर नहीं होता। रेट से ज्यादा दाम लेने पर भी इक्का-दुक्का ग्राहक सवाल करता है। अमूमन सभी ग्राहक सिर्फ सामान पर ध्यान देते हैं। उसके मूल्य पढ़ने पर ध्यान नही देते। अब तो कुछ राज्यों में ऑनलाइन बिक्री की अनुमति भी दी जा रही है। सरकार जब चाहे घाटा को पूरा करने के लिए शराब का मूल्य बिना सूचना के बढ़ा सकती है। कोई संस्था, संगठन या संघ इसकी मुखालफत नही करते। इसके खिलाफ आंदोलन नहीं होता।  इस प्रकार समाज के सभी व्यक्तियों से निवेदन है की कम से कम इस शराब को अपने घर के अंदर ना आने दे क्योंकि यह संबंधों को खराब करने का कारण बनेगा। पारिवारिक रिश्तो में बिखराव पैदा करेगा। पत्नी बच्चों का भविष्य अंधकार में करने का कारण बनेगा। सब कुछ भला बुरा आप जानते हैं हम सिर्फ आपको याद दिला रहे हैं आप की स्मृति को ताजा कर रहे हैं क्योंकि जागरूकता ही बचाव है स्वस्थ रहें, मस्त रहे।

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