Total Samachar डा. भरत राज सिह द्वारा एक और लिखित पुस्तक ‘योग विज्ञान’ का विमोचन

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इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इण्डिया), यू0पी0 स्टेट सेंटर, लखनऊ और स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज लखनऊ (एमएमएस) के द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में डा. भरत राज सिह द्वारा अध्यात्म पर लिखित चौथी पुस्तक ‘योग विज्ञान’ का विमोचन किया गया । इसके साथ वौदिक विज्ञान केंद्र, एस.एम.एस. के गौरवमीय इतिहास में उनकी एक और उपलब्धि दर्ज हुई । इसके सह-लेखक श्री सतीश कुमार सिह, अध्यक्ष, एस.एम.एस. और डा. चन्द्र मौलि द्विवेदी ने अपने-अपने अध्यात्मिक ज्ञान को उल्लेख किया ।

डा. सिह ने योग विज्ञान पुस्तक के माध्यम से पाठकों को अवगत कराया कि योग भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है, जिसकी उत्पत्ति त्रेता युग में वेदव्यास द्वारा रचित वेद से हुई । यह भी बताया कि सनातन धर्म में 4-वेद, 18-पुराण व 108-उपनिषद ग्रंथ हैं । योग की परिभाषा इसी वेद में उल्लिखित है । तदोपरांत महर्षि पतंजलि के योगसूत्र से सही तरह से जीवन-जीने के विज्ञान को उद्धरित किया जिसमें योगसूत्र को राजयोग या अष्टांग योग कहा जाता है । उक्त आठ अंगों में ही सभी तरह के योग का समावेश हो जाता है । भौतिक शरीर में योग पद्धति से मुद्राओ, वंध व चक्रों के जागृत करने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है । इस पुस्तक में आसान तरीके से मुद्रा, वंध और मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र तक क्रिया के माध्यम से महत्वपूर्ण प्राण ऊर्जा का संचार कर जीवन को सदाचारी कैसे बनायाँ जाय, बताया गया है ।
इस पुस्तक का विमोचन इं0 आर0के0त्रिवेदी पूर्व अध्यक्ष, आईईआई, यूपी स्टेट सेंटर, लखनऊ, मुख्य अतिथि डॉ0 आर0के0सिंह तकनीकी सलाहाकार, उ0प्र0 प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, विशिष्ट अतिथि, डॉ0 ज्योत्सना सिंह, निदेशक, सेंटर फॉर एक्सीलेंस रिन्यूएबल एनर्जी, लखनऊ विश्वविद्यालय, डॉ0 पी0के0भारती, विभागाध्यक्ष मैकेनिकल इंजीनियरिंग, इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ, प्रो0 (डॉ0) मनोज मेहरोत्रा, निदेशक, डॉ0 भरत राज सिंह, महानिदेशक (तकनीकी), तथा सह-निदेशक , डा. धर्मेंद्र सिंह, एस0एम0एस0, लखनऊ और डा. जसवंत सिह , मानद सचिव, आईईआई, यूपी स्टेट सेंटर, लखनऊ, ने किया ।

इस अवसर पर स्कूल ऑफ मैनेजमेन्ट साइन्सेज के सचिव व कार्यकारी अधिकारी, श्री शरद सिंह ने संस्थान की इस उपलब्धि हेतु प्रख्यात-शिक्षाविद डा0 सिंह को साधुवाद देते हुये उनकी शिक्षा जगत में इस अद्वितीय योगदान की सरहना भी की ।

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