शरद दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार….

बटेसर सुरैंचा की बाजार के लिए निकल पड़े.. कडुआ तेल चुपड़कर खींचे बाल, इकहरे बदन पर फिटिंग का कुर्ता लेकिन बेहद ढीला चौड़ी मोहरी का पायजामा, पैरों में लवरटी की हवाई चट्टी.. दहेज में मिली साइकिल बरोठे से बाहर निकाली.. साइकिल भी एंटीक पीस बन चुकी थी.. पिछला मडगार्ड गायब था.. चैनकवर एक बार गलकर खत्म हुआ तो आजतक चैन को चैनभरा आसरा नहीं मिला.. बस ब्रेक नयी लगी थीं.. उसकी भी अपनी कहानी है.. पिछली बार ककैयापारा के मोड़ पर भानू सिंह की मोटरसाइकिल में बटेसर मय साइकिल घुस गये थे.. ब्रेक बहुत दबायी.. मगर ससुरी लगी ही नहीं.. अच्छा, ब्रेक भी क्या करें.. उनकी रबड़ घिस चुकी थी लोहा ही बचा था.. भानू जो कंटाप रसीदे कि बटेसर सबसे पहले छोट्टन के यहां जाकर नये ब्रेक कसवाये.. खैर, इतिहास तो इतिहास हो चुका आज का घटनाक्रम ये है कि ऐतिहासिक साइकिल लेकर बटेसर डगर पर आ गये..

अगला भाग बहुत ही जल्द…..

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