शरद दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार…

बटेसर दहेजू साइकिल लेकर डगर पर आ गया..स्टैंड लगाया.. घर के भीतर गया और बरोठे में रखी धान की बोरी उठायी.. धान बेचकर जो रूपये मिलेंगे उसी से जरूरी खरीदारी होगी और चाट चूट खाई जायेगी.. भगनू की चाट.. कुरकुरी टिक्की.. सोचते ही बटेसर के दिमाग के न्यूरॉन सिग्नल जनरेट करने लगे और लार ग्रंथि ने मुंह को लार से भर दिया..और ठीक उसी वक्त मुंह में पानी वाली कहावत बटेसर पर फिट बैठ गयी.. न्यूराॅन, सिग्नल जैसी जैविक प्रक्रियाओं से अनजान बटेसर बोरी कैरियर में बांधकर निकलने के लिए तैयार हो रहा था कि पीछे से उसकी मेहरुआ रमपतिया मीठी जुबान में चीख के बोली..थुल्ल क बप्पा.. बटेसर का रोआं रोआं जल गया.. पलटकर बोला.. तुम का धीरे तेने बात नाय कहि पइतिव? ..रमपतिया और तुनक गयी.. हां हां, अब तुमका हमरी बोली नीक नाय लागत.. सुनौ.. पव्वा भर भांटा लै आयेव.. आलू धरे हैं.. आज केरी सब्जी हुई जाई.. कल्लि बदै जौन चाहेव तौन लै लियेव..बटेसर तेजी से बोला.. ठीक.. फिर भुनभुनाया..या औरत हमका जियै नाय देहै.. जू खाये रहत है.. याक बार म नाय बताय पावत.. चलत बेरिया टोकत हैय.. बाधाएं खत्म हो चुकीं थीं.. कपड़ा बंधी साइकिल की सीट बटेसर की तशरीफ की राह देखते देखते थक गयी थी..

साइकिल पर सवार होना ही बटेसर के लिए सबसे कठिन था.. क्यों? इसका सही जवाब हाइड्रोसील का मरीज दे सकता है.. हाइड्रोसील की वजह से हर बार साइकिल पर चढ़ना उतरना माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने उतरने से कम नहीं होता.. शुतुरमुर्ग के अंडे से अंडकोष हो गये थे.. पीड़ा बहुत थी.. पर समझने वाला कोई नहीं.. गांव का परकास तो उसे बटेसर की जगह माखनलाल फोतेदार कहता था..अगर किसी के सामने साइकिल पर चढ़ना पड़े तो बड़ी फजीहत होती थी.. सामने वाला हंस देता था.. गांव के लौंडें उसे देखते ही तफरी लेने लगते थे.. एक बार की गलती की वजह से अंडकोषों की हेल्थ बढ़ गयी.. गलती दो साल पहले कातिक के महीने की है.. बटेसर बाजार हाट करके पुरानी प्रेमिका पूनम के गांव चला गया.. पूनम परमोद से ब्याही थी.. परमोद की अम्मा बटेसर की दूर की चाची लगती थी.. लड़के बच्चों के झंझट में फंसी पूनम बटेसर को देखकर खिल जाती थी और राब के शर्बत से उसकी खातिरदारी करती.. बेना(पंखा) हांकती..हाथ मार मारकर ठहाके लगाती..

उस दिन बटेसर को समय का ख्याल न रहा.. चकल्लस करने के बाद जब वापस अपने गांव कोकनामऊ जाने लगा.. रात होने लगी थी.. बटेसर सोचने लगा कि घर पर आज नरक हो जायेगा.. रमपतिया खून पी जायेगी.. पूछेगी.. कहां मरि गये रहव?..क्या जवाब दूंगा..बटेसर तेजी से पैडल चलाने लगा..सन्नाटे में झींगुरों की आवाज का शोर सुनकर लगता था शायद इस गांव में झींगुरों के अलावा कोई नहीं रहता… बटेसर बेचैनी मे पैडल मारने की रफ्तार बढ़ाता गया.. पहले सीट पर बैठे बैठे पैडल मार रहा था फिर जल्दी के चक्कर में नयी उम्र के लौंडों की तरह तशरीफ सीट पर से उठा ली और कूल्हों को दायें बायें करके साइकिल दौड़ाने लगा.. साइकिल का चिमटा, पहिये सब तांडव करने लगे.. खड़ खड़ खड़ खड़.. चैन चर्र चूं.. चर्र चूं करने लगी.. हाय ये क्या.. कमबक्त बेयरिंग फेल कर गयी.. चैन फ्री हो गयी.. बटेसर की आधी तशरीफ सीट पर गिरी आधी आगे हवा में लटक गयी.. अंडकोष कुचल गये.. असहनीय दर्द हुआ.. साइकिल छोड़ बटेसर जमीन पर आ गया… पूनम ने जो खुशी दी थी वो काफूर हो गयी.. हाय अम्मा.. हाय अम्मा करते बटेसर अंडकोष पकड़कर लेट रहा.. काफी देर दर्द से तड़फता रहा.. दर्द जब कम हुआ तो साइकिल पकड़कर किसी तरह अम्मा बप्पा करते घर पहुंचा.. रमपतिया भरी बैठी थी.. चिल्ला उठी.. कहां मरि गा रहै.. आगे कुछ कह पाती देखा कि बटेसर साइकिल छोड़कर अंडकोष पकड़कर लेट रहा.. वो दौड़ी.. माजरा समझा.. मदार के पत्ते लायी हल्दी चूना लगाकर दिया..कहा.. लेव बांधि लेव..

अगला भाग बहुत ही जल्द…..

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