डॉ दिलीप अग्निहोत्री
केंद्र सरकार के कृषि कानूनो के माध्यम से उनकी समस्याओं का समाधान हो सकेगा। प्रधानमंत्री ने अगले दो वर्ष में किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस दिशा में कार्य किया जा रहा है। जब लागत कम होगी तो आय बढ़ेगी। इसके लिए विगत छह वर्षो के दौरान अनेक कदम उठाए गए। फसल की कीमत किसान स्वंय तय कर सकेंगे,अपनी मर्जी से उसे कहीं भी बेच सकेंगे।
परम्परागत कृषि उत्पाद आवश्यक है,लेकिन यहीं तक सीमित रहना जमीन और आय दोनों पर प्रतिकूल असर भी डालते है। अत्यधिक रासायनिक खादों के प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियां भी जन्म ले रही है। जमीन की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है। कानून में कृषि मंडी व न्यूनतम समर्थन मूल्य को जारी रखते हुए किसानों को नए अवसर दिए गए। फसल को अपनी मर्जी से कहीं भी बेचने का अधिकार दिया गया। कॉन्ट्रेक्ट कृषि भी किसानों को अवसर प्रदान करेगी। यह कॉन्ट्रेक्ट केवल फसल का हो सकता है। किसान की जमीन का इससे कोई मतलब नहीं है। एक तरफ किसानों में भ्रम फैला कर आंदोलन किया जा रहा है,दूसरी तरफ किसानों को जागरूक बनाने के भी आयोजन किये जा रहे है।
यूपी की प्रादेशिक फल,शाकभाजी एवं पुष्प प्रदर्शनी के माध्यम से भी जागरूकता का सन्देश दिया गया। बदलते परिवेश में इस तरह के प्रयासों की मदद से हमें पर्यावरण संरक्षण करने में भी मदद मिलती है। कोरोना काल में औषधीय एवं सगंध पौधों की ओर जनमानस का ध्यान गया है। इससे बचाव में प्राकृतिक जड़ी बूटियों से बना काढ़ा बहुत कारगर साबित हुआ। इस अवधि में चिकित्सा क्षेत्र के वैज्ञानिकों एवं आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा भी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये जाने हेतु औषधीय एवं सगंधीय पौधों के उपयोग पर बल दिया गया। ऐसा नहीं कि यह केवल आपदा के समय ही उपयोगी था। आयुर्वेद को नियमानुसार जीवनशैली में शामिल किया जा रहा है।