सलिल पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, मिर्जापुर.
वाटिका में
लुक-छिप कर टिका है कोई ।
सहमे-सहमे पेड़-फूल हैं
सहमी-सहमी कलियां ।
बगिया उजड़ी, खुशबू गायब
‘माली’ मजे में और नशे में
‘बा-खबर’ पर
बेखबर बन
सेंट की शीशी थमा-थमा कर
कृत्रिम खुशबू फैलाने में
दल-बल के संग लगा हुआ है।
जिसके मन में दर्द हो
जननी का
जंगल की वह राह पकड़ कर
धनुष निकाले और चलाए
लंका-रावण तहस-नहस हो
इज्जत सबकी अपने वश हो
कैंडिल मार्च से नहीं रुकेगा
सत्ता का अभिमान मिटाने
सच्चे मन से प्रण करने का
दृढ़ संकल्प जो करना जाने
उनके यश में गीत सुनाने
‘सलिल’ भी अब हैं निकल पड़े।