डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

लखनऊ विश्वविद्यालय शताब्दी समारोह के अंतर्गत सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला भी संचालित कर रहा है। इनके माध्यम से लोकशैली की अनेक विधाओं से खासतौर पर विद्यार्थियों को परिचित भी कराया जा रहा है। पिछले दिनों अवध में प्रचलित लोक संगीत गजल,कत्थक आदि की मनमोहक प्रस्तुति की गई थी। चतुर्थ दिवस की संध्या में सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसिद्ध निर्देशक,लेखक और रंगमंच की प्रसिद्द हस्ती सलीम आरिफ द्वारा निर्देशित “पासा” नामक नाटक का मंचन किया गया। यह नाटिका पवन कुमार द्वारा रचित अंग्रेजी काव्य “युधिष्ठिर और द्रौपदी” पर आधारित है। इस नाटक में आरिफ की पत्नी और लोकप्रिय टीवी और थियेटर कलाकार लुबना सलीम और अभिनेता अमित बहल भी प्रमुख भूमिका में थे। बकुल ठक्कर ने यक्ष की भूमिका निभाई। यह नाटिका द्रौपदी और युधिष्ठर के जीवन में एक सुंदर अंतर्दृष्टि है। यक्ष के साथ उनकी बातचीत के बाद उनका रिश्ता कैसे बदल जाता है।

सलीम आरिफ ने लखनऊ विश्वविद्यालय से १९८० में स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा देश के प्रसिद्द नाटककारों के साथ कार्य किया है। इसके अलावा सलीम आरिफ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के पूर्व छात्र है। भारतीय रंगमंच और फिल्म्स के क्षेत्र में एक बहुत ही जाना-माना नाम है, वह वर्तमान में व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल, मुंबई में सांस्कृतिक अध्ययन विभाग के प्रमुख हैं। हबीब तनवीर, बी.वी. कर्णार्थ, रतन थियम, और के.एन. पनिक्कर के कामों के संदर्भ में पारंपरिक और समकालीन भारतीय रंगमंच के विषय पर काम करने के लिए उन्हें NSD फेलोशिप से सम्मानित किया गया। ।दृष्टिकोण में अभिनव, सलीम आरिफ ने आपकी सोनिया, गालिबनामा, खराशीन, ताज महल का टेंडर, कैफी साब, पीपल पत्तों का बान, दिल चाहता है, श्याम रंग,अगर और मगर, बयाने ग़ालिब, रक़त कल्याण, परवाज़ बयाना, काछे लामे, अठन्नीयन, लेकरेइन, चौरंगी, हम-सफर, सुनते हो, अरे ओ हेनरी, मंटो मंत्र, पांसा, गोगली झनक झायिन, ताजमहल का उदघटन, नागर जी की नागरी, पिनकोचियो, चक्कर जैसे नाटकों का निर्देशन किया है।

इस नाटिका में द्रौपदी विवाह, कौरवों और पांडवों के मध्य द्युत क्रीड़ा, द्रौपदी चीर-हरण, पांडवों का वन वास और अज्ञात वास तथा युधिष्ठिर के यक्ष के साथ हुए संवाद का सार्थक प्रस्तुतिकरण किया गया। युधिष्ठिर की भूमिका में अमित बहल द्वारा यक्ष के द्वारा पूछे गए प्रश्नो के उत्तर का दिया जाना इस नाटिका का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष था। यक्ष द्वारा पूछे गए प्रश्न “सबसे अच्छा मित्र कौन है ” का जवाब जब युधिष्ठिर ने “पत्नी” दिया तो द्रौपदी को इस बात का भान हुआ की सारे पांडवों में सिर्फ युधिष्ठिर के एक पत्नी है। उसे याद आता है की युधिष्ठिर की सिर्फ एक गलती थी की उसने कौरवों के साथ द्युत क्रीड़ा की थी इसके अलावा युधिष्ठिर ने कोई त्रुटि आज तक नहीं की थी। युधिष्ठिर द्वारा दिया गया उत्तर “पत्नी मित्र भी होती है, माँ भी होती है , पांच उँगलियों में भी बट कर भी सबको एक रखती है” ने श्रोताओं को आनंदित कर दिया। युधिष्ठिर द्वारा नकुल को जीवित करने का प्रकरण भी महाराज युधिष्ठिर का सबको सामान रूप से देखने का प्रसंग भी यथार्थ लग रहा था। अंत में यक्ष जो की असल में धर्मराज का चारो पांडवों को जीवित करना भी तथा द्रौपदी का युधिष्ठिर के प्रति सम्मान तथा नवीन प्रेम का सचार अत्यंत मनोरम था। इस नाटिका में कुल चालीस कलाकारों ने प्रतिभाग किया। निर्देशक सलीम आरिफ जी ने समस्त कलाकारों का परिचय दिया। उन्होंने कुलपति अलोक कुमार राय को इस नाटिका के प्रस्तुतीकरण के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। इसके बाद आदरणीय कुलपति जी ने सारे कलाकारों को विश्वविद्यालय प्रांगण में इस नाटिका को प्रस्तुत करने के लिए सारे विश्वविद्यालय परिवार की तरफ से धन्यवाद ज्ञापित किया और प्रमुख कलाकारों को स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया। कार्यकम का सञ्चालन प्रोफेसर राकेश चंद्रा ने किया। इन मनोरम प्रस्तुति के समय विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक, छात्र एवं मीडिया के प्रतिनिधि मौजूद थे।

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