- ऑफिसरों की राय : बिना पिस्तौल मुलजिम का कोई मतलब नहीं ?
- जो पिस्तौल करेगा बरामद जरूर पाएगा ईनाम
मिर्जापुर । चुनार के इंजीनियर जीवनेन्दु रथ की जान लेने वालों के जीवन को फिलहाल वरदान मिलता दिख रहा है। पुलिस हत्या में प्रयुक्त पिस्तौल के बिना मुल्जिमों की गिरफ्तारी नहीं करेगी और पिस्तौल का मिलना दूभर लग रहा है। क्योंकि पिस्तौल ही मिल गया तो हत्यारे भी सही सही मान लिए जाएंगे और सजा से बच भी नहीं पाएंगे । यदि बिना पिस्तौल के अभियुक्तों की गिरफ्तारी पुलिस दिखाती है तो जनता यही कहेंगी कि सिर्फ फ़ारमिलिटी (औपचारिकता) निभाई गई है। इसी लांछन को अपने माथे पर पुलिस लगने देना नहीं चाहती।
कुछ पुलिस वाले निबट सकते हैं
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चुनौतीपूर्ण घटना में सरकार अपनी झुंझलाहट निकालने के लिए कुछ पुलिस वालों को ‘बलि का बकरा’ बनाकर हलाल कर सकती है। हलाल की कार्रवाई होती है तो बीट के पुलिसजन तो शायद ही बच पाएं ।
मुगलसराय (चंदौली) तक चक्रमण करना पड़ेगा
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इस काण्ड के अभियुक्तों की तलाश के लिए मुगलसराय तक पुलिस को अपना जाल फैलाना पड़ेगा। क्योंकि व्यवसाय में माल (वस्तु) को लेकर प्रायः व्यापारियों में प्रतिद्वंद्विता रहती है। खासकर धातु (लोहा, पीतल, सोना आदि) की फैक्ट्री में दूसरी कम्पनी का कच्चा माल दूसरी कम्पनी प्रयोग कर लेती है और आग में गला देने के बाद धातु की पहचान खत्म हो जाती है । धौंहा की फैक्ट्री में इस बात को लेकर कतिपय व्यापारियों के बीच मनमुटाव रहा है । जनवरी ’20 में मुगलसराय के व्यापारी धौंहा तक आए थे। इसमें रेलकर्मियों की भी भूमिका रहती है।
चार दिनों बाद भूलने लगते हैं लोग
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किसी भी घटना में चार दिनों तक उलझाव बना रहा तो उसका हश्र समापन कार्यक्रम की तरह होने लगता है। मिर्जापुर में 12-13 साल पहले ASP के गनर की हत्या नगर के लोहन्दी मुहल्ले में फिल्मी अंदाज में हुई थी। गनर तत्कालीन ASP को रात में बंगले पर छोड़कर बाइक से लोहन्दी स्थित घर की ओर चला। पीछे से रस्सी का फंदा उसके गले में फेंका कर खींचा गया। उसे पेड़ पर लटका दिया गया और AK-47 लूट ली गई थी जिसका पर्दाफ़ाश अंततः नहीं ही हो सका । असलहा भी नहीं बरामद हुआ।