वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की कलम से
आज रामलाल की कंघी उदास थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब में क्या करूं? जिस रामलाल के घर में होश संभालने के साथ आकर वह बस गई। आज वह उसी रामलाल के घर में पहले एक किनारे कोने में की गई और अब बिल्कुल बाहर ही हो गई न जाने कब कूड़े के ढेर में डाल दिया जाय पता नहीं।
करीब 40 साल रामलाल ने उसकी मदद से अपने बालों को संवारा और स्कूल कॉलेज ऑफिस सभी जगह अपनी स्टाइल के लिए वाहवाही बटोरी। आज दूध की मक्खी की तरह उसे ड्रेसिंग टेबल की ऊपरी रैक से निकालकर बगल की एक खाली टोकरी में डाल दिया गया था, जहां से उसकी अंतिम विदाई किसी भी दिन और किसी भी क्षण होनी थी। वह या तो सफाई वाले के हाथ जाती या कबाड़ वाले के। सफाई वाला उसे कूड़े के गंदे ढेर में दबाकर ले जाएगा और जाने कहां फेंक देगा पता नहीं। फिर न जाने कितने नरक भोगने होंगे यह सोचकर ही कंघी के आंसू आ गए। दूसरा विकल्प था कि उसे कबाड़ वाला ले जाए तो उसकी कल्पना से ही दिल दहल गया। ढेर सारी प्लास्टिक के बड़े सामानों के बीच मैं दबी कुचली कोने में बैठी रहूंगी जाने कितनी गर्म मशीनों के बीच उसे गलाया जाएगा, उफ्फ यह तो उसकी इहलीला ही समाप्त हो जाएगी ।नहीं बाबा, नहीं, यह कबूल नहीं हो सकता कल्पनाओं की दौड़ कुछ और आगे भागी तो सोचा कि यदि सफाई या कबाड़ वाले ने ही उसे अपना लिया तो शेष जीवन कट ही जाएगा।
काश! मैंने समय रहते अपने भविष्य के बारे में सोचा होता मैं तो इस रामलाल के ही सहारे रह गई इसने मझधार में ही छोड़ दिया फिर मन को ढांढस देते हुए कंघी कहती है इस रामलाल का भी क्या दोष? जब जन्म से जो बाल सिर में थे वह बीते 2 सालों में गायब हो गए उन्हीं बालों के कारण तो मुझे घर में जगह मिली थी अबे बाल ही नहीं रहे तो गंजे सिर में मेरा क्या काम? मुझे तो उसे 2 साल पहले ही रिटायर करना चाहिए था। उसका एहसान है कि अपनी गंजी खोपड़ी में भी आदतन मुझे चुभोता रहा। मुझे भी उसके रेशमी बालों की गायब होने का गम है। उसकी गंजी खोपड़ी में चुभन होने का दर्द मुझे भी होता था। एक बार फिर स्वार्थ का भाव आ गया कंघी के मन में। कहां रामलाल ने तमाम कबाड़ घर में रख रखा है वह दाढ़ी बनाने का पांच उस्तरा, कभी काम ना आने वाली हथौड़ी जिसकी बेंत कभी रहती ही नहीं, फ्यूज बल्ब का ढेर, टूटी चप्पलें कुछ चप्पले तो उसकी बचपन की है फिर मुझे ही घर के बाहर फेंकने का इरादा क्यों बनाया मैंने क्या बिगाड़ा है ?आदमी खुद सरकारी नौकरी करता है तो 40 साल की सेवा के बाद पेंशन लेता है मैंने तो बिना स्वार्थ उसे सजाने संवारने में मदद की। शायद रोज उसे अपने सामने देख अपने पुराने दिन याद आने लगते थे उसी के कारण उसे आंखों से दूर किया होगा।
इसी उधेड़बुन के बीच ड्रेसिंग टेबल के दराज में खटाक की आवाज के साथ कुछ गिरा कंघी चौक गई उसने झांका और आहट लेने की कोशिश की अरे यह कंघी के नए जोड़े को रामलाल ने लाकर रख दिया अब तो कंघी का गुस्सा सातवें आसमान पर था आखिर मुझ में ऐसी क्या खराबी थी कि इस मरदूदे ने मुझे छोड़ दिया इतना निर्मोही इंसान तो कभी देखा ही नहीं इधर कंघी का नया जोड़ा काफी प्रसन्न मुद्रा में था दोनों इठला रहे थे। कंघी ने मन ही मन कहा उसकी गंजी खोपड़ी को चोटिल होने से बचा कर थोड़े बचे बालों को मैं सवार देती थी यह नए फैशनेबल कंघी के जोड़े क्या इतना बचाव कर पाएंगे। यह सब सोचते कंघी सो गई। सुबह तड़ाक की आवाज के साथ नींद खुली तो वह अवाक रह गई। दोनों कंघियों के नुकीले दांतों ने रामलाल के गंजे सिर में दो जगह खरोच मार दिया था। वह आगबबूला हो दोनों को टेबल पर फेंक दिया था अपने सिर खुजलाते जाते हुए कुछ बुदबुदा रहा था। दोनों कंघियों को भी उठाकर कंघी वाले बाक्स में डाल दिया। दोनों का कंघी ने स्वागत किया नए जोड़े के आंखों में आंसू थे दोनों कह रहे थे हमारी क्या गलती हम तो बाल वालों की सेवा के लिए है उन्होंने बगैर ध्यान दिए ज्यादा दबाव दिया तो छिल गया फिर कहा जब आप यहां हैं तो हमें क्यों लाया। कंघी ने समझाया इसने 40 साल 24 घंटे जब चाहा तब मेरी सेवा ली। आज बुढ़ापे में मुझे फेंक दिया। अब मैं कभी भी कुड़े़ या कबाड़ में जा सकती हूं ?
तुम लोगों के इस बाक्स में आने के बाद चिंता हो रही है कि मैं तो 40 साल जीवन जी ली, लेकिन तुम लोग तो एक दिन भी नहीं। रामलाल की ज्यादती है ।इस बीच कूड़े वाला आया रामलाल टोकरी उठाई लेकिन पुरानी कंघी को फिर से टेबुल पर रखा, कंघी के नये जोड़े को सफाई वाले के हाथ दे दिया। कंघी फिर से रामसुंदर की सेवा में आकर खुश तो हो गई लेकिन एक नए जोड़े को सफाई वाले के यहां जाने पर दुखी हो गई लेकिन यह क्या सफाई वाले ने सामने ही बाक्स से कंघी निकाल सिर पर फेरा और मुस्कुरा दिया रामलाल से कहा बाबू नयी लगती है हां कहते हुए कहा कि लेकिन बहुत काटती है। इस पर सफाई वाला लड़का रामलाल का सिर व मुंह देख मुस्कुरा कर कंघी पाकेट में रख लिया। कंघी यह देख खुश हो गई कि चलो इन युवाओं को भी मृत्यु या नरक भोगने के बजाय काम मिल गया है।
कंघी फिर चिंता में थी की उस नए जोड़े का भला हो जो अपने नएपन की धार और तेजतर्रारी के कारण यहां नाकाम हुए जिससे उसके अनुभव को फिर से काम मिला। रामलाल को फिर से उसकी याद आ गई कभी फिर चित्त से उतरी तब तो नर्क में जाना तय है इस आदमी का भरोसा नहीं आगे भी यह मेरा विकल्प ऐसे ही तलाशेगा। इस तरह उसके लिए एक-एक पल बोझ बन गया था। पहले वाला उत्साह अब नहीं था। रामलाल ने शादी ब्याह किया नहीं था इस कारण कुल मिला कर दिन भर में एक बार सेवा देनी होती थी वह भी रामलाल के सिर में बचे कुछ गिने-चुने बालों के लिए। काश! रामलाल की पत्नी और बच्चे भी होते तो उनके सिर में भी घूमने टहलने और उन्हें संवारने का अवसर मिलता। तब तो रिटायर होने की नौबत ही नहीं आती। जब भरा पूरा परिवार होता तो मैं और मेरे अलावा कंघी वंश के कई सदस्य सेवा में होते। अब तो डर लगता है कि किसी दिन रामलाल घर बेचकर सामान समेत गांव चला गया तो मेरा क्या होगा?
गांव की उस सड़ी गर्मी में मैं कैसे रहूंगी? सुना है वहां बिजली नहीं आती, पानी न मिलने से लोग परेशान होते है वहां पहले से कंघी खानदान होगा फिर मैं वहां वहां एक कोने में फेंक दी जाऊंगी। यह अनिश्चय काटे जा रहा था कि एक दिन रामलाल किसी से फोन पर कह रहा था कि भाई मैं अभी रिटायर होने जा रहा हूं गांव जा कर रहूंगा। यह घर बेच रहा हूं लेकिन सारा सामान भी साथ बेचूंगा ।कंघी के निराश मन में उम्मीदों के पंख आ गए। चलो मुझे गांव नहीं ले जाएगा रामलाल। लेकिन शंका इस बात की कि वह बड़े सामान यहीं छोड़ दें लेकिन मेरी जैसी छोटी वस्तु को तो बैग में भरकर ले जाएगा। नए लोग आएंगे तो नई कंघी होगी। मकान देखने रोज लोग आ रहे थे।
एक परिवार से सौदा तय हुआ इस परिवार में तो एक आध नहीं दर्जनभर बच्चे थे खूब धमा चौकड़ी मचाया सभी ने मुझे अपने सिर से लगाया अब सामान ले जाने के लिए रामसुंदर पैकिंग करने लगा। उसने बातचीत में कहा कि देखिए ड्रेसिंग टेबल नहीं ले जाऊंगा , उसमें का सामान ले जाऊंगा। चलो अच्छी बात है गांव ही ले जाए वरना यह बच्चे मुझे घर में यहां-वहां फेंकते फेंकते किसी भी दिन गटर गंगा में फेंक देंगे। यह क्या रामलाल क्रीम पाउडर सब तो रखा और मुझे छोड़े जा रहा है इन उत्पाती बच्चों के भरोसे। गेट तक जाने के बाद फिर लौटा रामलाल और दराज से कंघी को निकाल बैग में रख लिया और कहा कि यह मेरी सबसे पुरानी साथी है। होश संभालने के साथ ही इसका साथ है इसे हम नहीं छोड़ेंगे यह सुन कंघी का सीना फुल गया आंखें द्रवित हो गई आंसू निकल आए। बोल पड़ी, हे! रामलाल तुम्हारी आंखें खुल गई तुमने मेरी उपयोगिता मान ली अब मेरी जो भी गत करोगे वह मुझे मंजूर होगा।
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